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Incest MAA के सामने इस तरह की गंदी बात

वैशाली के अपने बेटे अभिमन्यु की नंगी चौड़ी छाती से टेक लगाकर बैठने के उपरान्त जो कुछ बदलाव उसे तत्काल महसूस हुए उनमे मुख्यतः बेटे की छाती के भीतर तीव्रता से धड़कते उसके ह्रदय की जोरदार धमक का स्पष्ट अहसास उस माँ को अपनी पीठ पर हो रहा था, दूसरे उसके तपते और पसीने-पसीने हुए अग्र शरीर से वैशाली का ब्लाउज क्षणमात्र मे भीग चुका था। तीसरे उस अत्यंत कामलुलोप माँ को अपने जवान बेटे का बेहद कठोर व निरंतर तेजी से फड़फडा़ता लंड सीधे अपनी गुदाज गांड की गहरी दरार के भीतर प्रवेश करने का दुस्साहस करता हुआ-सा प्रतीत होने लगा था, वह तो ठीक था जो उस वक्त माँ-बेटे अपने निचले धड़ से नंगे नही थे वर्ना उनके संग वह तात्कालिक वक्त भी अपनी रही सही मर्यादा का हरसंभव त्याग कर चुका होता।

"उफफ! मॉम रिलेक्स होकर बैठो, तुम्हें कोई तकलीफ नही होने दूंगा" अपनी माँ के अधनंगे कामुक बदन का सम्पूर्ण भार अपने नंगे सीने और टांगों की जड़ पर पाकर अभिमन्यु फौरन सीतकारते हुए कहता है, वैशाली के खुले व लंबे केश उसके अपने कंधों के साथ ही जहां-तहां उसके बेटे के भी कंधों और छाती पर फैल गए थे जिसके नतीजन उसके बालों से उठती एक विशेष जनाना गंध उसके बेटे के पूरे शरीर को एकाएक आनंदित करने लगी थी। उसने सहसा अपनी बाईं हथेली को अपनी माँ के नंगे सपाट पेट पर रखकर उसे बलपूर्वक पीछे खींचा और जिससे उसकी जॉकी के भीतर ठुमकता उसका विशाल लंड उसकी माँ की छोटी--सी कच्छी मे कैद उसकी मांसल व मुलायम गांड पर बरबस ठोकरें मारने लगता है, वह तो भाग्य वैशाली के पक्ष मे था वर्ना उसके बेटे का आलूबुखारे समान अत्यंत सूजा सुपाड़ा वाकई उसकी जॉकी और उसकी माँ की पतली--सी कच्छी को छेदकर सीधे उसकी गांड की दरार को चौड़ाते हुए उसके किसी भी नाजुक अंग को बड़ी सरलता से भेद सकता था।

"मन्यु ...उन्ह! मन्यु" सिसकती वैशाली तत्काल अपना निचला धड़ आगे को सरकाने का प्रयत्न करती है मगर बेटे के बाएं हाथ को अपने चिकने पेट से बलपूर्वक भी नही हटा पाती। अभिमन्यु उसकी गहरी व गोल नाभि के आसपास अपना बायां अंगूठा गोल-गोल आकृति मे घुमाने लगा था और साथ ही अपने दाएं की उंगलियों से वह अपनी माँ के रेशमी काले बालों को भी सहलाना शुरू कर देता है।

"तुम बहुत खुशबूदार बासती हो माँ, हम्म! हम्म! ...पहले पता होता हम्म! ...तो दिनभर बस तुम्हें ही सूंघता रहता" वह वैशाली के बालों मे अपना सम्पूर्ण चेहरा घुसेड़ते हुए जोरदार गहरी-गहरी सांसें खींचकर कहता है, वह यहीं रुक जाता तब भी ठीक था मगर ज्यों ही उसे अपनी नाक पर अपनी माँ की सुंदर, पतली व पसीने से लथपथ गर्दन का स्पर्श महसूस हुआ वह बिना किसी अतिरिक्त झिझक के फौरन अपने कंपकपाते होंठ उसकी गर्दन से चिपका देता है।

"उफ्फऽऽ पिज्जा ....पिज्जा ठंडा हो रहा है मन्यु" जिस तरह कोई हिंसक, शक्तिशाली पशु किसी निरीह पशु को दबोचकर उसका भक्षण करने से पूर्व उसके स्वादिष्ट कच्चे मांस की गंध को मन भरकर सूंघता है ताकि तत्काल उसकी भूख मे चौगुना इजाफा हो जाए और चाहते हुए भी उस निरीह की असहाय चीख-पुकार उसके खूंखार ह्रदय को ना पिघला सके ठीक उसी प्रकार वैशाली को भी अपने बेटे की नाक का लगातार फुसफुसना और उसके सूंघने से पैदा होता अजीब--सा रोमांचक स्वर एकाएक असहाय, दुर्बल करने लगा था। अपना कथन कहकर वह अपनी गर्दन को झटकने लगती है मगर तभी अभिमन्यु अपना दायां अंगूठा उसकी गहरी नाभि के भीतर प्रवेश करवा देता है।

"तुम्हारा हक है माँ तो तुम ही खिलाओ मुझे" अभिमन्यु ने पुनः गहरी सांस खींचते हुए कहा, जिसके मूक उत्तर मे वैशाली उनके दाईं और रखे डिनर को खाने हेतु तैयार करने लगती है। हालांकि अभिमन्यु ने उसे स्वयं अपने हाथों से खिलाने की चाह जताई थी पर कहीं वह अपनी चाह की आड़ मे अपनी माँ से और अधिक छेड़छाड़ करना आरंभ ना कर दे कुछ ऐसा सोच वह जल्द से जल्द डिनर को निपटने मे व्यस्त हो जाती है। उसने पिज्जा के ऊपर सारी उपस्थित सीजनिंग डाली और तीव्रता से दोनो तरह के सॉसेजिस भी उड़ेलने लगती है, वहीं उसका बेटा उसकी व्यस्तता को सफलतापूर्वक भुनाने मे जुटा हुआ था। वह अपनी माँ की गर्दन को महज सूंघने के अलावा अब चूमने लगा था और साथ ही उसकी नाभि के भीतर अपने अंगूठे के नाखून की हल्की-हल्की खुरचन भी देना शुरू कर देता है।

"खाने ...खाने पर कॉन्सनट्रेट किया करो मन्यु, जवान लड़के खाने से अपना जी नही छुड़ाते" हकलाते स्वर मे ऐसा कहकर वैशाली पिज्जा की एक तिकोनी स्लाइस अपनी गर्दन से चिपके उसके बेटे के दाएं कान के समकक्ष ले आई मगर जैसे उसके कथन और कार्य को सफा भुलाते हुए अभिमन्यु पर उनका कोई खास असर नही पड़ता और शीघ्र ही वह अपने होंठों को खोल अपनी गीली जीभ बाहर निकालकर, उसे लपलपाते हुए अपनी माँ की गर्दन पर निरंतर एकत्रित होते पसीने की नमकीन बूंदों को अविराम चाटने लगता है।

"मन्यु ...उन्ह! खाओ इसे, खाने पर कॉन्सन्ट्रेट करो बेटा" वह अपनी ठोड़ी और गर्दन को आपस मे दबाते हुए सिहर पड़ती है लेकिन इसका परिणाम पहले से अधिक घातक सिद्ध हुआ, अभिमन्यु का चेहरा उसकी गर्दन और ठोड़ी के बीच फंसकर रह जाता है और जिसके कारण अब उसने अपनी माँ की गर्दन की अत्यंत नाजुक त्वचा को बेकाबू होकर चूसना भी आरंभ कर दिया था। वैशाली अपने जबड़े भींचकर अपनी चूत के अंदरूनी संकीर्ण मार्ग पर होते अविश्वसनीय स्पंदन को झेलने पर विवश थी, उसके ब्लाउज और ब्रा के भीतर कैद उसके मम्मे भी उसके निप्पल समान कठोरता पाने लगे थे और वह सहसा मात्र एक लघु अंगड़ाई लेने तक को तड़प उठती है, जो की उसके बेटे के बलिष्ठ हाथों की जकड़न से मजबूर वह चाहकर भी नही ले पाती।

"भूख ही तो मिटा रहा हूँ मॉम। अपनी और तुम्हारी, हम दोनो की" अपना चेहरा अपनी माँ की गर्दन से पीछे खींच अभिमन्यु बोला, उसका विस्फोटक कथन एकसाथ दोनो को चौंका गया था।

"लाओ लाओ खिलाओ, मैं परेशान हूँ तो जरूरी नही कि तुम्हें भी होना पड़े" अपने इस सामान्य कथन की आड़ मे वह अपने पिछले कथन की ज्वलनशीलता को कम करने का झूठा प्रयास करता है और अपनी माँ के हाथ से पिज्जा स्लाइस अपने दाएं हाथ मे लेकर वह फौरन उसे उसके बंद होंठों से सटा देता है। बड़े जतन के उपरान्त वैशाली अपने भींचे जबड़ों को ढ़ीला छोड़ पाई थी और अपने होंठ खोल पिज्जा का छोटा--सा नुकीला भाग काटकर वह पुनः अपने होंठ सी देती है।

"कैसी परेशानी? हम्म! और ऐसे काम नही चलेगा, तुम भी खाओ चुपचाप" अभिमन्यु को ना खाते देख वैशाली उसके हाथ से पिज्जा स्लाइस छीनकर उसे डांटते हुए बोली और जबरदस्ती स्लाइस उसके अधखुले होंठों के भीतर ठूंस देती है। तत्पश्चात उसने बड़ी सफाई से अपनी चौड़ी टांगों को आपस मे चिपकाया ताकि उसकी चिकनी नंगी जांघों का निचला भाग बेटे की नंगी बालों भरी जांघों के ऊपर से हट जाए, जिसपर पनपे पसीने के चिपचिपे अहसास से लगातार उसकी चूत पनिया रही थी।

अपनी माँ के कथन मे शामिल प्रश्न को सुनकर अभिमन्यु उसका जवाब सोचते हुए पिज्जा चबाने लगा, वह एकाएक इतना अधिक ध्यानमग्न हो गया था कि अपनी माँ की टांगों का एकदम से हिलना-डुलना भी महसूस नही कर पाता और जब वैशाली उसे पुकारते हुए पुनः उसकी ओर पिज्जा बढ़ती है तब कहीं जाकर वह अपनी गहरी सोच से बाहर निकल पाता है।

"मॉम! मेरा लंड इस बुरी तरह दुखने लगा है कि मुझसे ठीक से खाया भी नही जा रहा" वह बेझिझक बोला और पिज्जा की अगली फरमाइश को फौरन ठुकरा देता है, उसके इस लज्जाहीन कथन को सुनकर तो जैसे वैशाली का रोम-रोम सिहर उठा था और स्वयं अपने बेटे समान उत्तेजित वह कामलुलोप माँ तत्काल भावनाओं के वशीभूत होकर अपनी हाल मे ही जोड़ी हुई जांघों को बलपूर्वक आपस मे घिसना शुरू कर देती है।

"माँ तुम्हारी चूत मे भी खुजली मच रही है ना? वहां, उस शीशे मे साफ दिख रहा है" अभिमन्यु ने एकाएक जोरों से हँसते हुए कहा, वह अपने दाएं हाथ की प्रथम उंगली से बिस्तर के ठीक सामने स्थापित ड्रेसिंग टेबल के बड़े--से दर्पण की ओर इशारा करता है। अपने बेटे के अश्लील प्रश्न को सुन वैशाली ने भी अत्यंत तुरंत अपनी उड़ती निगाहें उसके ड्रेसिंग टेबल के कांच पर डा़ली और उसमे खुद को अपने ही बिस्तर अपने पर सगे जवान बेटे से टिक कर बैठे देख वह आंतरिक शर्म से पानी-पानी हो जाती है, सबसे विशेष विचारने योग्य बात कि उस वक्त वह दोनो ही अपने-अपने निचले धड़ से लगभग पूरे नंगे थे जो ना तो उस वक्त के अनुकूल था और ही उसके मर्यादित पवित्र रिश्ते के। उस माँ ने अपनी और अपने बेटे की बैठक स्थिति पर भी गौर किया तो पाया कि वह किसी भी कोंण से अभी एक माँ नजर नही आ रही थी, आ रही थी तो कोई अधेड़ उम्र की वैश्या जिससे दूना छोटा उसका ग्राहक उसके पीछे बैठा उसे अपनी मजबूत बांहों मे जकड़कर उनकी आगामी चुदाई की चाह मे खुद भी बेहद उत्तेजित व उत्साहित हो रहा था।

"उठने दो मन्यु, मुझे भी भूख नही है" अपने बेटे के दोनो हाथ अपने बदन से झटकने का प्रयास करते हुए वैशाली ने अपनी जगह उठना चाहा मगर हरबार की तरह इसबार भी वह अभिमन्यु पर अपने स्त्री बल का कोई खास प्रभाव नही दिखा पाती, बिस्तर से उठना तो दूर वह अपनी जगह से हिल भी नही पाई थी।

"अच्छा! अच्छा! मेरे कुछ सवालों का सही जवाब दो तो तुम्हें जाने दूंगा" कहकर अभिमन्यु ने पुनः उसे अपनी ओर खींचा और थोड़ा बहुत अंतर जो उनके शारीरिक स्पर्श मे आया था वह दोबारा से मिट जाता है, एकबार फिर माँ-बेटे एक-दूसरे से बुरी तरह चिपक जाते हैं।

"तुम कब से नही चुदी?" उसने बिना समय गंवाए पूछा।

"अठारह दिनों से, अब खुश ...अब मुझे उठने दो" समय व्यतीत करने का कोई विशेष लाभ नही मिलने की वजह से वैशाली भी बिना सोचे-विचारे अतिशीघ्र जवाब दे देती है।

"पापा तुम्हें चोदते नही क्या? वह तो इस बीच दो रातें घरपर रुके थे और अपनी ये टांगें चौड़ाओ" अभिमन्यु का अगला सवाल जैसे पहले से ही तैयार था और साथ ही वह अपने दोनो हाथ अपनी माँ की जुड़ी हुई जांघों पर रख देता है। उसने दोबारा अपना चेहरा वैशाली के खुले बालों के भीतर कर दिया और पलभर मे पुनः उसकी गर्दन को चाटना शुरू कर देता है।

"मन्यु गलत है ये, तुम मुझे कमजोर कर रहे हो। बेटा अपनी माँ से ऐसे निजी सवाल नही करता, उफ्फ! मैं क्या करूं इस लड़के का" एकसाथ कई हमलों से बहकने के चरम पर पग धरती वह माँ कुंठा भरे स्वर मे बोली। यह उसपर बेटे की कोई जबरदस्ती नही थी, जबरदस्ती तब कैसे मानी जाती जब वह अपने बेटे की निकृष्ट इच्छा व आज्ञा के समर्थन मे बिना उसकी जोर-आजमाइश के खुद ही अपनी जांघों को पहले से भी कहीं अधिक चौड़ा देने का नीच कर्म कर बैठती है, उसके बेटे ने तो अपने हाथ मानो शून्य से कर लिए थे।

"तुम कमजोर नही डरपोक हो माँ। तुम भी मेरी हो और तुमसे जुड़ी हर बात, हर चीज भी अब मेरी है। आखिर हम दोनो ही एक-दूसरे से प्यार जो करते हैं" कहकर अभिमन्यु अपना ढ़ेर सारा लार अपनी माँ की गर्दन पर उगल देता है और फिर तत्काल वह अपनी जीभ अपनी ही लार मे लपलपाने लगा, उसे जीभ के जरिये उसकी पूरी गर्दन पर मलने लगता है और कुछ ही क्षणों बाद उने एकबार फिर से अपनी माँ की नाजुक गर्दन को तीव्रता से चूसना शुरू कर दिया था।

"वह थक गये थे इसलिए मुझे नही चोदा" कहने को तो कमुकता की चपेट मे पूर्णरूप से आ चुकी वैशाली के मुंह से अचानक 'चोद' जैसे देशी शब्द का उच्चारण हो गया था मगर कह चुकने के उपरान्त वह अब कर भी क्या सकती थी, बस अपनी जांघों की अंदरूनी मांसल त्वचा पर अपने नुकीले नाखून गड़ाते हुए वह अपनी सिस्कारियों को रोकने का व्यर्थ प्रयत्न करने लगती है। अपनी गर्दन पर अभिमन्यु के होंठों का मर्दन उससे बरदाशत कर पाना मुश्किल था और इसी बीच जाने कब निर्लज्जतापूर्ण ढ़ंग से वह अपनी कमर को पीछे धकेलते हुए अपनी गुदाज गांड बरबस अपने बेटे के खड़े कठोर लंड पर ठोकने लगती है, उसे स्वयं पता नही चल पाता।

"हमसब दो रोटी कम खा लेते, फिजूलखर्ची बंद कर देते, लोकल ट्रांसपोर्ट का यूज कर लेते, लाख तरीके हैं पैसे बचाने के मगर पापा को तो हमेशा तुम्हें सताने मे ही मजा आता है। अब देखो उनकी बीवी कितनी चुदासी हो गई है मगर चुदास बुझाने वाले वह यहाँ है नही और मैं पहले ही कह चुका हूँ कि तुम्हें चोदना नही चाहता" अभिमन्यु ने उसकी गर्दन को चूमना-चूसना कुछ पलतक रोकते हुए कहा, अपने नीच शब्दों पर वह खुद हैरान था और यह यकीनन इस बात का प्रमाण था कि अब कमरे का वातावरण कहीं से भी सामान्य या मर्यादित नही रहा था।

"मत ...मत करो ऐसी गंदी बातें अपनी माँ से। तुम्हारे पापा वाकई मुझे सताते हैं मन्यु और मैं कुछ नही कर पाती" अपने बेटे के विस्फोटक कथन से एकाएक दो तरफा बंट गई वैशाली अपने बाएं हाथ के पंजे मे खुल्लम-खुल्ला अपनी कच्छी के भीतर रस उगलती अपनी अतिसंवेदनशील चूत को भींचते हुए बोली और ठीक उसी वक्त अभिमन्यु अपनी दाईं हथेली से अपनी माँ के दाहिने मम्मे को जकड़ लेता है और बाएं पंजे को वह उसकी माँ के हाथ के ऊपर रख उसके साथ स्वयं भी उसकी चूत को दबोचने लगता है। कोई संकोच नही और ना ही कोई भय, वासना की प्रचूरता मे वह बेहद निर्भीक हो चला था। पहली बार वह अपनी माँ के गदराए अधनंगे बदन को इतने करीब से महसूस कर रहा था और जिसकी तपिश ने उसके सोचने-समझने की सारी क्षमता को अपने आप ही क्षीण कर दिया था।

वहीं वैशाली का हाल इससे भी बुरा था। उसकी गर्दन पर लगातार बेटे के होंठ रेंग रहे थे, वह बलपूर्वक ब्लाउज के ऊपर से उसका दायां मम्मा मसले जा रहा था, उसकी चूत मुख को ऐंठने व भींचने मे वह दोनो ही एकसाथ व्यस्त हो गये थे और स्वतंत्ररूप से उसकी गांड जोकि अब उसके स्वयं के वश से कोसों दूर काफी तेजी से बेटे के तने हुए लंड से रगड़ खाए जा रही थी, उसपर अविराम ठोकरें मारे जा रही थी।

"मैंने गलत नही कहा माँ, तुम सचमुच चुदासी हो और इस समय तुम्हें वाकई एक लंबे, मोटे-तगड़े लौड़े की जरूरत है जो तुम्हारी चूत मे घुसकर तुम्हें पटक-पटककर चोद सके, तुम्हारी चुदास पूरी तरह से मिटा सके" अभिमन्यु शर्म और हया की सभी सीमाओं को लांघते हुए कहता है।

"बोलो कि तुम चुदासी हो माँ और तुम्हें जी भरकर चुदना है, सिर्फ एक ताकतवर लौड़ा ही तुम्हारी असली प्यास बुझा सकता है और तुम्हें वह लौड़ा किसी भी हालत मे चाहिए" उसने नीचतापूर्वक अपने पिछले कथन मे जोडा़ और फिर बिना रूके पूरी शक्ति से अपनी माँ का दायां मम्मा निचोड़ने लगा, साथ ही कच्छी के ऊपर से फौरन वैशाली का हाथ झटककर अपने बाएं पंजे से स्वयं अकेले ही वह उसकी गीली चूत को रगड़ने लगता है।

"न ...नही, नही आह! नही चाहिए मुझे" सीत्कारते हुए वैशाली का मुंह खुल गया, उसकी गर्दन अकड़ने लगी और गहरी-गहरी सांसें लेती हुई वह अपने चरमोत्कर्श पर पहुँच जाने को विवश होने लगती है।

"तुम झूठी हो माँ, कहो कि तुम्हें इसी वक्त चुदना है। तुम्हें बस लंड चाहिए और कुछ नही वर्ना मैं अपने कमरे मे जाता हूँ" झूठी धमकी देकर भी अभिमन्यु उसके बदन को छेड़ना नही छोड़ता, बल्कि अब वह भी अपनी कमर हिला-हिलाकर अपनी माँ की गांड से ताल मिलाते हुए ही अपने विशाल लंड का तीव्रता से उसकी गांड पर देने लगा था।

"मत ...मत उन्ह! उन्ह! मन्यु मत ...मत" इसके आगे वैशाली की आवाज उसके गले से बाहर निकलना बंद हो जाती है और ठीक इसी निश्चित समय पर अभिमन्यु भी उसे एकदम से छोड़ देने का नाटकीय उपक्रम कर देता है।

"हाँ चाहिए मुझे लंड और मैं हूँ चुदासी, बहुत बहुत बहुत ज्यादा चुदासी है तुम्हारी माँ अभिमन्यु। मेरे लाल कुछ करो वर्ना ...." वैशाली ने सहसा चीखते हुए कहा और अविलंब बेटे के दाहिने हाथ को पकड़कर खुद अपनी कच्छी के ऊपर से अपनी गीली चूत पर पटापट थप्पड़ मारने लगी।

"आईऽऽ! मैं भी उन्हीं रंडियों की तरह बेशर्म होकर चुदना चाहती हूँ जिन्हें छुपछुप कर तुम चोदने जाते हो। मुझे भी रंडी बनना है, अभी बनना है, अभी हाल बनना है मन्यु" चिल्लाते हुए वैशाली के मुंह से लार बाहर निकल आती है, अपनी ही पापी इच्छा पर वह कामांध माँ अतिशीघ्र अपने बाल नोंचने लगी थी।

"उतारो अपनी कच्छी, तुम्हें चोदूंगा नही पर देखता हूँ इसके अलावा और क्या किया जा सकता है" अपनी माँ के हाथों से उसके बाल छुड़वाते हुए अभिमन्यु का दिल अंदर ही अंदर फट पड़ा था, उसके मन-मस्तिष्क मे बस एक ही गूंज उठ रही थी कि उसके वादे-अनुसार वह किसी भी परिस्थिति मे अपनी माँ को चोद नही सकता था पर यह भी जानता था कि उसकी माँ के दर्द का एकमात्र मर्ज सिर्फ उसका अपना लंड है क्योंकि उसका पिता पैसे कमाने मे व्यस्त था और उसकी माँ घर की चारदीवारी के बाहर कभी मुंह मार नही सकती थी, यदि मुंह मारना ही होता तो इतना दर्द झेलने पर मजबूर नही होती।

वह वैशाली को आगे झुकाकर उसके पीछे से तत्काल उठ खडा़ हुआ और अपने स्थान पर अपनी माँ को टिकते हुए उसकी सुर्ख लाल आखों मे झांकने लगता है। उसकी माँ के खुले बाल, ब्लाउस के भीतर उसकी तेजी से बढ़ती-घटती सांसों के प्रभाव से लगातार ऊपर-नीचे होते उसके गोल-मटोल मम्मे, मम्मों की गहरी घाटी के बीचों-बीच फंसा उसका पतिव्रत मंगलसूत्र, सपाट पेट नंगा, बेहद पतली कमर, पसीना एकत्रित करती उसकी गोल-गहरी नाभी, पेडू से भी नीचे सरक चुकी उसकी कच्छी और कच्छी की बगलों से बाहर झांकती उसकी घनी-घुंघराली काली झांटें, मांसल चिकनी दोनो जांघें, गौरवर्णी पिडलियां, पायल से सजी एडियां और उम्र मुताबिक घिस चुके दोनो तलवे; उसकी माँ का अत्यंत कामुक अंग-अंग उसकी आँखों को बेहद आकर्षित कर रहा था, साथ ही आनंदित और आंदोलित भी।

"उतारो कच्छी, अपनी टांगें क्यों मोड़ ली?" अपने बेटे की आँखों का अपनी माँ के अधनंगे बदन का यूं खुल्लम-खुल्ला शर्मनाक अवलोकन करना वैशाली सहन नही कर पाती और अपने घुटनों को मोड़ लज्जा से अपना सिर नीचे झुकाकर गुपचुप बैठ जाती है मगर जल्दबाजी मे वह यह भूल गई थी कि अपने पैरों को मोड़कर उन्हें अपनी छाती से चिपकाकर बैठने से उसने अभिमन्यु पर अचानक क्या गदर ढ़ा दिया था। उसकी कच्छी जो कि पहले से ही उसकी गांड की गहरी दरार के भीतर फंसी हुई थी उसकी तात्कालिक बैठक के बाद तो जैसे उसकी गांड के दोनो पट बिलकुल नंगे दिखाई देने लगे थे और तो और कच्छी का सेटिन कपडा व हल्के पीले रंग की रंगत के गीले हो चुकने के उपरान्त उसकी चूत का पूरा फूला उभार कच्छी के ऊपर से अभिमन्यु को स्पष्ट नजर आ रहा था, यहाँ तक की वह अपनी माँ की चूत के दोनो सूजे होंठों का निरंतर फड़फड़ना भी प्रत्यक्ष देख पा रहा था।

"उतारो ना कच्छी या कहो तो मैं खुद उतार दूँ" कहकर वह वैशाली की ओर अपने हाथ बढ़ाने लगता है।

"खबरदार मन्यु" एकाएक वह कठोर स्वर मे बोली और जिसके नतीजन सकपकाकर अभिमन्यु फौरन अपने हाथ पीछे खींच लेता है।

"चोदोगे नही तो फिर कैसे शांत करोगे अपनी माँ को? उसकी चूत मे उंगलियां डालकर या सीधे चूत को अपनी जीभ से चाटने लगोगे, होंठों से उसे चूसने लगोगे? इसके बाद कहोगे कि माँ अब तुम मेरा लंड हिलाओ या अपने मुंह से चूसकर मुझे भी शांत करो, है ना?" वैशाली ने पिछले कथन मे जोड़ा मगर इसबार उसका स्वर सामान्य था। कोई क्रोध नही, कोई शर्म नही, कोई अतिरिक्त हकलाहट भी नही; बिलकुल शांत।

"देखो मन्यु! इतने दूर पहुँचकर मैं यह नही कहती कि वापस पीछे लौटो, मैं खुद नही लौट सकूंगी पर यह भी सही नही कि हम एकदम से अपने रिश्ते की पवित्र दीवार को ढ़हा दें। मुझे कुछ वक्त दो, तुम मुझे चोदना नही चाहते यह वाकई तुम्हारी तारीफ है पर मेरे बारे मे भी तो सोचो कि तुम्हारी सगी माँ होने के बावजूद कहीं मैं खुद बहक गई फिर तुम्हारे प्रॉमिज का क्या मतलब रह जाएगा?" मुस्कुराते हुए ऐसा कहकर वैशाली अपने हाथ के दोनो अंगूठे एकसाथ अपनी कच्छी की इलास्टिक के भीतर फंसा लेती है और अपनी मुड़ी हुई टांगों को हवा मे ऊपर उठाकर कच्छी को हौले-हौले अपने यथावत स्थान से उतारने लगी।

"तुम चाहो तो एकबार फिर से अपनी माँ की नंगी चूत को देख सकते हो, बल्कि मैं खुद ही चाहती हूँ कि मेरा सगा जवान बेटा सचमुच मेरी चूत को जी भर देखे" अभिमन्यु के चुपचाप बैठे रहने के कारण वह उसे उत्साहित करते हुए बोली और अपनी उतर चुकी कच्छी को सीधे अपने बेटे के चेहरे पर मारकर जोरों से हँस पड़ती है।

"नाराज मत होना मॉम बट मुझे भी टाइम चाहिए सोचने को और फिर इसे मेरी खुल्ली धमकी समझो या मेरा प्यार कि अगली बार मैं तुम्हारे रोके नही रुकूंगा, तुम्हें चोदने के अलावा तुम्हारे साथ मुझे जो कुछ करना होगा मैं वह करके ही मानूंगा" ऐसा कहकर अभिमन्यु अपनी माँ को सफा चौंकते हुए अत्यंत तुरंत बिस्तर से नीचे उतर जाता है, वैशाली के अपनी कच्छी को उतारकर अपनी टांगें विपरीत दिशा मे चौड़ा देने के बाद भी उसने अपनी एक नजर अपनी माँ की नंगी चूत पर नही डाली थी और बेटे की इसी विशेष हरकत ने उसकी माँ को सहसा अचंभित कर दिया था। वह वैशाली की कच्छी को वहीं बिस्तर पर छोड़कर अपने खुद के उतरे हुए कपड़े फर्श से उठाने लगा है और फिर धीमे स्वर मे उसे "गुड नाइट" कहकर तेजी से उसके बेडरूम से बाहर निकल जाता है।

तिरस्कार! इस शब्द से शायद ही संसार की कोई परिपक्व स्त्री अंजान होगी, पहले अपने पति मणिक के और अब अपने बेटे अभिमन्यु के हाथों तिरस्कृत होकर ना चाहते हुए भी वैशाली उसे खुद से दूर जाने से रोक नही पाती, बस हतप्रभ कभी अपनी कच्छी को तो कभी गाढ़े रस से सराबोर अपनी चूत को घूरते हुए लंबी-लंबी सांसें भरने लगती है। वहीं अपनी माँ की अंतिम बातों व तर्कों ने अभिमन्यु को एकाएक भीतर तक हिलाकर रख दिया था और पहली बार वह उनके पवित्र रिश्ते की निरंतर तीव्रता से खोती जा रही गरिमा के विषय मे सोचने पर मजबूर था, हालांकि वह तत्काल क्या सोचकर अपनी माँ के बेडरूम से बाहर निकल आया था इसका कोई कारण तो उसे नही सूझ पाता मगर अपने बिस्तर पर गिरते ही अब यकीनन वह पहले से कहीं अधिक गंभीर हो चुका था।

बिस्तर एक से परंतु उनपर लेटे प्राणियों की आँखें नींद से मीलों दूर, दिन तो बीत गया था पर यह रात थी जो बीतने का नाम ही नही लेना चाहती थी।

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प्रातःकाल अभिमन्यु की नींद जरा देर से खुली, यह कतई उसकी दिनचर्या मे शामिल नही रहा था कि बीती रात वह कितनी ही देर तक क्यों ना जागता रहा हो मगर सुबह तड़के ना उठ सके। पलकें खोल उसने दीवार घड़ी पर नजर ड़ाली और अत्यंत-तुरंत निद्रा की बची खुमारी से बाहर निकल आता है, साढ़े आठ बज चुके थे और रोज की तरह अबतक उसे कॉलेज जाने के लिए तैयार हो जाना चाहिए था।

"शिट! आज लेट हो गया" एक जोरदार अंगड़ाई लेते हुए सहसा उसे अपनी नग्नता का अहसास हुआ और बीती रात का हर लम्हा मानो किसी चलचित्र की भांति उसके मन-मस्तिष्क मे घूमने लगता है।

उसे अच्छे से याद था कि अपने कमरे मे लौटने के पश्चात वह वापस अपनी माँ के बेडरूम की ओर गया था और इसबार वह पूरी तरह से नंगा था, हालांकि उसके बेडरूम के भीतर पुनः प्रवेश करने की उसकी हिम्मत नही हो सकी थी मगर बेडरूम के खुले दरवाजे पर वह काफी देर तक खड़ा रहा था। कमरे मे फैली नाइट बल्ब की हल्की मगर दूधिया रोशनी मे उसे उसकी माँ अपनी उसी अधनंगी अवस्था मे बिस्तर पर लेटी हुई दिखाई दी और उसकी खुली आँखों को खुद पर गड़े देख अभिमन्यु तत्काल पीछे भी नही हट पाया था।

दोनो टकटकी लगाए एक-दूसरे को ही देख रहे थे मगर उनकी सांसें, धड़कने तक स्वत: ही मूक हो गई थी। हॉल की एलईडी मे वैशाली अपने बेटे के नंगे बलिष्ठ शरीर को सरलतापूर्वक बेहद स्पष्टरूप से देख पा रही थी और समयानुसार उसकी आँखें बेटे के पेट से बारंबार ठोकर खाते उसके अत्यंत कठोर लंड से चिपककर रह जाती हैं। अभिमन्यु के शरीर के ठीक विपरीत उसका गुप्तांग पूरी तरह से रोम-मुक्त था, सूजे सुपाडे़ से लगातार बाहर छलकते चिपचिपे रस के कारण अपने सगे जवान बेटे का सुपाड़ा उस माँ को उतने दूर से भी काफी चमकता हुआ नजर आ रहा था, साथ ही उसके लंड की गोलाई उसे स्वयं अपनी कलाई समान मोटी प्रतीत हो रही थी और जिसके नीचे लटके उसके बरबस फूलते-पिचकते टट्टे पर तो मानो एकाएक उस कामांध माँ का प्रेम ही उमड़ पडता है, उसकी निकृष्ट सोच के मुताबिक जिनके भीतर सिवाय गाढ़े वीर्य के कुछ और भरा भी नही हो सकता था।

वैशाली के ह्रदय मे अचानक टीस उठने लगी कि काश वह अपने बेटे को उसकी उसी नग्नता मे बेहद करीब से देख पाती, हालांकि अभिमन्यु के जवान होने के बाद वह उसका लंड पहले भी कई बार देख चुकी थी मगर तब हमेशा उसके अंतर्मन मे ग्लानिभाव उभर जाया करते थे और क्षणिक समय मे ही वह अपनी आँखें दूसरी दिशा मे मोड़ लिया करती थी, जो ग्लानिभाव अभी वर्तमान मे उस माँ को जरा भी महसूस नही हो रहे थे। दोनो माँ-बेटे जाने कितनी देर तक एक-दूसरे के चेहरे, नग्न बदन को घूरते रहे मगर चाहकर भी कुछ कह-सुन नही पाए थे और जब अभिमन्यु अपनी माँ की कामुक आँखों का लगातार जुड़ाव अपने खड़े लंड पर बरदाश्त नही कर पाता वह तीव्रता से अपने कमरे मे वापस लौट आया था।

"इसलिए मैं नंगा हूँ और माँ के लौड़े! तू सप्राइज मतो हो कि तू क्यों फड़फड़ा रहा है?" बीती यादों से बाहर निकल अपने लंड की कठोरता पर अभिमन्यु चूतियों जैसे उसे डांटते हुए बड़बड़ाया।

"सप्राइज!" उसका कहा यह विशेष शब्द मानो उसे बिस्तर पर उछल पड़ने पर मजबूर कर देता है क्योंकि उसके शैतानी दिमाग मे एकाएक एक ऐसा पापी ख्याल पनप चुका था कि जिसके पनपने के उपरान्त वह फौरन किसी राक्षस समान अपने नुकीले दांत बाहर निकाल देता है।

"श्श्श्! आवाज नही होनी चाहिए" बिस्तर से नीचे उतरते हुए वह हौले से फुसफुसाया और बेहद धीमी चाल चलते अपने कमरे के बंद दरवाजे के नजदीक आ जाता है। आगे वह जो कुछ भी अनर्थ करने वाला था उस पर एक अंतिम विचार करते समय उसे अहसास हुआ जैसे वह एकदम से झड़ने के करीब पहुँच गया हो, अपने ही लंड की असीम कठोरता ने आज उस जवान युवक को बुरी तरह से चौंकने पर मजबूर कर दिया था।

अभिमन्यु ने हल्के हाथ से दरवाजे का नॉब घुमाया और खटपट की कोई ध्वनि सुनाई नही देने पर उसका आत्मविश्वास पल मे दूना हो जाता है, तत्पश्चात थोड़ा पीछे हटकर वह दरवाजे को भी बिना किसी चरमराहट के खोल देने मे सफल हो गया। किस्मत उसके साथ है ऐसा सोच उसने मन के सारे नकारात्मक विचार फौरन त्याग दिए और कुछ गहरी सांसें लेकर वह नंगा ही अपने कमरे की दहलीज को लांघ जाता है।

किस्मत व भाग्य हमेशा आपके पक्ष मे हों यह जरूरी नही और यही तत्काल अभिमन्यु के साथ हुआ, अभी अपने दो कदम भी वह आगे बढ़ा नही पाया था कि सामने के दृश्य को देख उसका सर्वस्व हिल उठता है। भय, घबराहट, रोमांच, उत्तेजना एकसाथ कई भाव मिलकर उसपर टूट पड़े थे क्योंकि हॉल की डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर बैठकर आज का अखबार पढ़ता उसका पिता उसे दिखाई दे गया था। मणिक की पीठ उसकी ओर होने से वह उसे उसकी नंगी हालत मे देख तो नही सकता था पर अगले ही क्षण तब दोबारा उस नंगे नौजवान पर बिजली गिर पड़ती है जब ठीक उसी वक्त उसकी माँ भी किचन से बाहर निकल आती है।

किस्मत ने बीती रात को पुनः दोहरा दिया था परंतु कुछ बदलाव के साथ। बीती रात बीतकर सुनहरी सुबह मे तब्दील हो चुकी थी और माँ-बेटे के अलावा अब एक तीसरा शख्स भी घर के भीतर मौजूद था जो कि उम्र और रिश्ते मे उन दोनो से बड़ा था। जहाँ वह वैशाली का पति था वहीं अभिमन्यु का पिता भी और मुख्यत: इसी कारणवश बेटे के बाद अब चौंकने की बारी उसकी माँ की थी मगर फिर भी आनन-फानन मे खुद को संयत करते हुए उसने उड़ती-फिरती नजर कुर्सी पर बैठे अपने पति पर डाली जिसका चेहरा उस वक्त अखबार के पीछे छुपा हुआ था। एक माँ और एक पत्नी, दो अत्यंत महत्वपूर्ण रिश्तों का निर्वाह करने वाली वह अधेड़ स्त्री एकाएक उस तात्कालिक परिस्थिति को समझ सकने मे असमर्थ थी और लज्जा, निराशा, क्रोध, रिश्ता, संस्कार, मान-मर्यादा आदि कई भावनाओं से ग्रसित वह स्वयं अत्यधिक रोमांच से भर उठती है

अपने पति की प्रत्यक्ष मौजूदगी मे अपने सगे जवान बेटे को पूर्वरूप से नंगा देख वैशाली की चूत से जैसे क्षणमात्र मे ही भलभलाकर रस टपकने लगा, अपनी गांड के छेद पर वह असंख्य चींटियों के काटने समान पीड़ा का अनुभव करने लगी थी और जिस तक स्वतः ही अतिशीघ्र उस कामुत्तेजित माँ का दायां हाथ पहुँच जाता है। अपनी मैक्सी के ऊपर से अपनी गांड के छेद को बेशर्मीपूर्वक खुजलाना शुरू कर चुकी वह माँ अपनी नीचता की पिछली सभी सीमाओं को पार कर सीधे अपने बेटे के लगातार ठुमकियां खाते कठोर लंड को बुरी तरह घूरने लगती है, उसने एक नजर पुनः अभिमन्यु के चेहरे को ताकने तक का विचार नही किया था और लग रहा था कि जैसे अपने पति की उपस्थिति मे अपने बेटे के उत्तेजित गुप्तांग को देखना उसे बीती रात की अपेक्षा अभी ज्यादा रास आ रहा था।

अपनी माँ की लज्जाहीन आँखों का केन्द्रबिंदु बने अपने लंड पर इस प्रकार का आघात ना तो अभिमन्यु बीती रात झेल सका था और इस रोमांचक परिस्थिति मे तो उसका अपना पिता भी जाने-अनजाने उसे अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता हुआ जान पड़ रहा था। अपनी माँ की गांड खुजाई और उसे अपना निचला होंठ चबाते हुए अपने बेटे के लंड को घूरते देख वह उसी पल अपने दोनो हाथ एकसाथ अपने खुले मुंह पर रखकर उसे बलपूर्वक बंद कर देने पर विवश हो गया क्योंकि जीवन मे पहली बार बिना हाथ लगाए ही उसका लंड अपने आप स्खलित होने लगता है। उसकी आंखों के आगे अंधेरा छा जाता है, बदन स्खलन के चरम की मार से कंपकापा उठता है, कमर स्वतः हिलने लगती है और कहीं उसके मुंह से कोई आवाज बाहर ना निकल आए वह फौरन अपने जबड़े भी भींच लेता है।

वैशाली के साथ भी एकाएक यही हुआ और वह भी अपने बाईं हथेली को शक्तिपूर्वक अपने मुंह पर दबा देती है और अपनी गांड खुजाते हुए मंत्रमुग्ध कर देने वाले अपने बेटे के लंड को प्रत्यक्ष झड़ते हुए देखने लगती है। बेटे के आलूबुखारे समान सुपाड़े से गाढ़े सफेद वीर्य की लंबी-लंबी फुहार निकालती देख तत्काल उसे भी अपना चरम महसूस होने लगा था मगर ठीक उसी क्षण मणिक ने अखबार का पन्ना पलटा और ज्यों ही उसकी नजर सामने खड़ी अपनी पत्नी पर गई वह अत्यंत-तुरंत जोरदार छींकने का अभिनय कर देती है।

"जुकाम हो गया है क्या?" मणिक फौरन पूछता है।

"और अपने वहाँ क्यों खुजा रही हो, कोई तकलीफ?" उसने लगातार पिछले प्रश्न मे जोड़ा।

"ना ही जुकाम है और ना ही कोई तकलीफ है, अब खुजली मच रही थी तो क्या खुजाऊँ नही" वैशाली ने जवाब दिया और कहीं उसके पति को उसके नाटक का पता ना चल जाए, वह तत्काल अपनी गांड खुजाना बंद नही करती। उसने आँखों के किनोर से देखा तो अभिमन्यु उसे उलटे कदमों से अपने कमरे के भीतर जाता हुआ नजर आता है और तभी वैशाली के चेहरे पर अचानक ही मुस्कुराहट फैल जाती है।

"अभिमन्यु को उठा देती हूँ, उसे कॉलेज भी जाना होगा" कहकर वह अपने स्थान से आगे बढ़ गई।

"यह भी कोई सोने का टाइम है, नालायक कहीं का" मणिक अपने चिर-परिचित अंदाज मे भड़का।

"रात चार बजे तक पढ़ता रहा था, अब क्या चार घंटे भी ना सोय" एकदम से वैशाली का स्वर भी ऊंचा हो गया और फर्श पर जहां-तहां बिखरे पड़े अपने बेटे के वीर्य को ललचाई नजरों से देखती हुई वह उसके कमरे के अंदर प्रवेश कर जाती है, उसका बेटा दरवाजे के पीछे दीवार से टिककर खड़ा गहरी-गहरी सांसें लेते हुए अपने हाथों से अपने चेहरे का पसीना पोंछ रहा था।

"हो गया" वह अभिमन्यु के लाल पड़े चेहरे को देख हौले से फुसफुसाई और कमरे के दरवाजे को आधा बंद कर सीधे अपने घुटनों के बल नीचे फर्श पर बैठ जाती है।

"कुछ खाते-पीते हो नहीं और मुट्ठ मारोगे दिन मे दस बार" मुस्कान के साथ वह पुनः धीमे स्वर मे बोली और बेटे की आँखों मे झांकते हुए ही उसके झड़ चुके लंड को उसकी जड़ से, अपने बाएं हाथ की प्रथम उंगली और अंगूठे के बीच पकड़ लेती है।

"उफ्फ! पापा ....पापा कैसे ....." अभिमन्यु मानो अबतक भय और रोमांच से कांप रहा था। उसे यह तक अहसास नही हो पाता कि जवान होने उपरान्त पहली बार उसकी सगी माँ उसके लंड का स्पष्ट स्पर्श कर रही थी, अपनी उंगलियों से उसके लंड की नग्न त्वचा को छू रही थी।

"तुम्हारी इस बेवकूफी से तो मैं बाद मे निपटूंगी, पहले यह बताओ कि तुम्हें आखिर सूझा क्या था?" कहकर वैशाली अपनी मैक्सी का पिछला अंतिम सिरा अपने दाएं हाथ से ऊपर उठाने लगी, उसने अपने घुटनों के भी ऊपर-नीचे किया और जिसके नतीजन क्षणभर मे उसकी मांसल गांड नंगी हो जाती है मगर अब उसे अपने बेटे से कोई झिझक, कोई शर्म महसूस नही हो रही थी बल्कि अपनी मैक्सी के छोर से वह प्रेमपूर्वक बड़ी नाजुकता से अभिमन्यु के वीर्य से लथपथ सुपाड़े को पोंछने लगी थी।

"पापा बाहर हैं माँ" अपने कमरे के अधखुले दरवाजे के उसपार अपने पिता की मौजूदगी का ध्यान कर वह वैशाली को रोकने के उद्देश्य से नीचे झुकते हुए बोला।

"तो होने दो, अपने बेटे के लंड को साफ कर रही हूँ इसमे उनकी क्यों जलती है" वैशाली लापरवाही से अपने दोनो कंधे उचकाकर कहती है, अभिमन्यु तो जैसे उसके कथन मे छुपे साहस से अचंभित--सा हो जाता है। कहाँ घड़ी-घड़ी रोने-धोने मे लगी रहती उसकी ड़रपोक माँ अचानक इतनी हिम्मतवाली कैसे हो गई थी, वह यही सोच रहा था।

"नही! नही! पागल दोबारा नही" एकाएक बेटे के लंड मे तेजी से आते तनाव को देखकर सहसा वैशाली चिहंक पड़ती है और ठीक उसी वक्त उसके सुपाड़े से अपने मखमली होंठ सटाकर उसका एक लघु चुंबन लेने के उपरान्त वह फौरन फर्श से उठकर खड़ी हो गई।

"एक माँ कभी अपने जवान बेटे के लंड को नही चूमती पर फिर भी अपने जिगर के टुकड़े की जवानी पर निहाल होकर मैंने तुम्हारे लंड को चूमा, मेरे इस चुम्बन को कभी मत भूलना मन्यु जो तुम्हें मेरी, यानी कि संसार की सबसे ज्यादा प्यार करने वाली माँ की याद दिलाता रहेगा" कह चुकने के बाद वैशाली ने उसके माथे पर भी चूमा और पलटकर कमरे से बाहर निकल जाती है।

अभिमन्यु काफी देर तक दीवार से सटा खड़ा रहा, इसके बाद वह सीधे अपने बाथरूम मे घुस जाता है। नाश्ते के समय उसकी हल्की-फुल्की बातचीत अपने पिता से भी हुई और मणिक ने ही उसे बताया कि उसका यह टूर किसी कारणवश रद्द कर दिया गया है मगर उसके अगले टूर के बारे मे पूछने की ना तो अभिमन्यु की हिम्मत हो सकी थी और ना ही मणिक ने स्वयं उसे बताया था।

"मॉम! कॉलेज जा रहा हूँ, लंच पर घर आऊँगा आज कैंटीन बंद रहेगी" किचन मे काम करती अपनी माँ के कान खड़े करने के बाद वह तेजी से फ्लैट के बाहर निकल जाता है क्योंकि अब वही एकमात्र समय था जब उसे उसकी माँ के साथ भरपूर एकांत मिल सकता था वर्ना अपने पिता की मौजूदगी मे तो वह शायद ही फिर कभी वैशाली के करीब फटक सकता था।

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1आज अभिमन्यु कॉलेज के भीतर ना जाकर, कॉलेज गेट के बाहर बने चाय-नाश्ते के टपरे पर बैठ जाता है।

"अभी तो पौने दस हुए हैं, पापा दस बजे घर से निकलेंगे" मोबाइल मे समय देखने के तुरंत बाद वह अपने लिए एक चाय बोल देता है, दो साल से ज्यादा हो चुके थे उसे इस टपरे पर पंचायत करते हुए तो स्वाभाविक था कि उसे वहाँ बैठा देख और भी कई लड़के उसके नजदीक चले आए। सभी चाय पीते हुए इधर-उधर की बातों मे लग जाते हैं पर हमेशा पंच बनने वाला अभिमन्यु आज ना जाने कहाँ खोया हुआ था और जल्द ही वहाँ बैठे रहते हुए उसे घुटन सी महसूस होने लगती है।

"तुम बैठो यारों मैं बाइक सर्विसिंग पर डाल कर आता हूँ, काका हिसाब मे जोड़ देना" झूठा बहना बना वह बाइक लेकर टपरे के ठीक पीछे बने पार्क के भीतर चला आता है, बाइक स्टेंड पर खड़ी कर वह उसी के ऊपर बैठ गया और बिना समय देखे सीधे वैशाली का नम्बर डायल कर देता है। एक, दो, तीन; पूरे पाँच बार वह उसे कॉल कर चुका था पर दूसरी तरफ से कोई रिस्पॉन्स ना मिलने के कारण उसकी घुटने जैसे दूनी बढ़ गई थी।

"हैलो माँ! म ...मैं कब से तुम्हें फोन लगा रहा हूँ" आठवीं बार मे ज्यों ही वैशाली ने उसकी कॉल पिक की वह फौरन भर्राए स्वर मे बोला।

"क्या हुआ मन्यु, तुम्हारी आवाज ...कहाँ हो तुम?" बेटे की आवाज मे शामिल गीलेपन को तत्काल समझ वैशाली ने जवाब मे पूछा, एकाएक वह घबरा सी भी गई थी।

"कॉलेज मे हूँ मॉम मगर तुम फोन क्यों नही उठा रही थी? पता है मैं कितना परेशान हो गया था" वह उलटे अपनी माँ से प्रश्न करता है।

"झूठे! तुम कॉलेज मे नही हो, अब तुम मुझे और चूतिया नही बना सकते लड़के" वैशाली हँसते हुए कहती है, इसी सोच मे कि उसकी हँसी को सुन शायद उसके बेटे की आवाज का भर्राना खत्म हो जाए।

"कॉलेज के पास वाले पार्क मे हूँ, अब बताओ तुम कहाँ थी जो फोन लगाते-लगाते मेरे अंगूठे मे छाला पड़ गया?" वह भी मुस्कुराकर पूछता है। आखिर अपनी माँ की आवाज सुनने को ही तो बेचैन हुआ जा रहा था, बेचैनी के साथ-साथ उसकी घुटन भी पल मे हवा हो गई थी।

"नहा रही थी और हाँ! अपने अंगूठे के छाले की टेंशन मत लेना, तुम्हारे घर लौटने के बाद मैं उसे अच्छे से चूस दूँगी। कभी-कभी मुंह की सिकाई भी फायदेमंद होती है" वैशाली कहकहा लगाकर हँसते हुए कहती है। वह स्वयं हैरान थी कि एकाएक कैसे उसके मुंह से ऐसी गंदी-गंदी बातें निकलने लग गई हैं, इतनी बेशर्म तो वह अपने बीते जीवन मे कभी नही रही थी और सबसे विशेष बात यह कि उसके मुंह से ऐसी अनैतिक बातें सुनने वाला शख्स कोई अन्य नही उसका अपना सगा जवान बेटा था, जिसके विषय मे सोचते ही उसकी धुली-धुलाई चूत जैसे पुनः पनियाने लगी थी। वहीं दूसरी ओर अपनी माँ के अश्लील कथन को सुनकर अभिमन्यु का बायां हाथ सीधे उसके लंड पर पहुँच जाता है जो पलभर मे उसकी जॉकी के भीतर तनकर पत्थर हो गया था।

"तुम अभी नंगी हो ना माँ?" उसने जींस के ऊपर से अपने तम्बू को मसलते हुए पूछा।

"मेरे अंगूठे के छाले का दर्द एकदम से मेरे निचले शरीर पर पहुँचता जा रहा है माँ, उफ्फ! तो क्या ...क्या तुम मेरे वहाँ भी अपना मुंह लगाओगी, मेरे उसको भी चूसोगी" वह सिहरते हुए अपने पिछले प्रश्न मे जोड़ता है।

"हाँ नंगी हूँ, बिलकुल नंगी। तुम्हें अपनी माँ को नंगी देखना अच्छा लगता है ना मन्यु?" वैशाली ने बिस्तर पर लुड़कते हुए पूछा, यकीनन उसे शीघ्र-अतिशीघ्र अपनी सुबह से ऐंठी पड़ी चूत की पीड़ादाई ऐंठन से मुक्त होना था।

"अगर तुम अपने लंड के बारे मे कह रहे हो तो भूल जाओ मन्यु, मम्मियां अपने बेटों का लंड नही चूसा करतीं और वह भी खासकर तब, जब उनके बेटे मुश्टंडे गबरू जवान हो जाएं" अपने पिछले कथन मे जोड़ते हुए उसने अपनी दाहिनी दो उंगलियां एकसाथ अपनी चूत की संकीर्ण गहराई मे उतार दीं, जिसके नतीजन उसके मुंह से जोरदार सिसकी निकल जाती है।

"पर मैं तो इकलौता हूँ मम्मी, तुम मुझ अकेले का लंड तो चूस ही सकती हो। तुम्हारे कौन से पाँच-सात मुश्टंडे गबरू जवान बेटे हैं, सिर्फ एक है कम से कम उसका ख्याल तो अच्छे से रखा करो और हाँ! मुझे तुम्हें नंगी देखना बहुत पसंद है पर कपड़ों मे भी, तुमसे सच्ची मोहब्बत जो करने लगा हूँ" कान से चिपके मोबाइल के स्पीकर से स्पष्ट सुनाई देतीं वैशाली की कामुक सिसकियां सुन अभिमन्यु ज्यादा देर तक अपनी बाइक पर बैठा नही रह पाता, वह फौरन नीचे धरातल पर कूदते हुए बोला।

"चल झुट्टे! अगर इतनी ही सच्ची मोहब्बत होती अपनी माँ से तो पिछली रात उसे यूं तड़पती छोड़कर भाग नही खड़े होते। क्या तुम्हें पता है मन्यु कि तिरस्कार किसे कहते है? अगर पता है तो यह भी समझते होगे कि एक औरत सबकुछ सह लेती है लेकिन किसी मर्द के हाथों अपना तिरस्कार सहन नही कर पाती" कहकर जवाब की प्रतीक्षा मे वैशाली कुछेक क्षणों के लिए अपनी चूत का मर्दन करना रोक देती है, अपने बेटे का सही उत्तर सुनने को वह बेहद उतावली थी।

"तुम्हीं ने मुझे भागने पर मजबूर किया था माँ। तुम्हें चोदकर तुम्हारी तड़प नही मिटा सकता था यह हम दोनो जानते थे मगर तुमने तो अपनी चूत चटवाने से भी इनकार कर दिया था, जबकि मैं वाकई तुम्हारी चूत को चाटता, उसे जी भरकर चूसता और तुम्हारी तड़प को पूरी तरह से मिटाने की कोशिश करता" गंभीरतापूर्ण लहजे मे ऐसा बोलकर अभिमन्यु पार्क के टॉइलेट की ओर रुखकर जाता है, वह जान गया था कि उससे बात करते हुए ही उसकी माँ अपनी उंगलियों से अपनी चूत को चोदना शुरू कर चुकी थी और अब वह भी अपने लंड के असहनीय तनाव से हरसंभव मुक्ति पाना चाहता था।

"क्या तुम्हें ओरल सैक्स पसंद है मन्यु? खैर आजकल के युवा चुदाई से ज्यादा मुखमैथुन का मजा लेते है मगर क्या तुम्हें अपनी माँ की चूत चाटने मे घिन महसूस नही होती? आखिर मुझे तुम्हारी पसंद-नापसंद से बारे मे कुछ खास पता भी तो नही। क्या पता तुम्हें मजबूरन अपनी माँ की चूत से अपने होंठ चिपकाने पड़ते जबकि तुम्हारा मन ऐसा बिलकुल नही चाहता होता" अपने दाएं अंगूठे के हल्के दवाब से वैशाली अपने अत्यंत संवेदनशील भांगुर को हौले-हौले सहलाते हुए बोली, फोन सैक्स के विषय मे आजतक उसने सिर्फ सुना ही था मगर तात्कालिक समय मे उसे इस अद्भुत खेल का भी आनंद मिलने लगा था और ऐसी उत्तेजक व बेहद गोपनीय बातें वह अपने सगे बेटे संग सांझा कर रही है, यकीनन यही विशेष बात उस नये-नवेले खेल को निरंतर अधिकाधिक रोमांच से भर रही थी।

"मेरी गर्लफ्रेंड है नही और रंडियों की चूत से अपना मुंह कोई नही लगता। माना तुम्हारी चूत वह पहली चूत होती जिसे मैं चाटता या चूसता मगर मैं ऐसा करता जरूर क्योंकि बात मेरी मम्मी की तड़प से जुड़ी थी और फिर जिससे आप बेशुमार प्यार करने लगो, उसके बदन का कोई अंग गंदा कैसे हो सकता है? नही मॉम, मुझे जरा भी घिन महसूस नही होती" अभिमन्यु जवाब मे बोला, वह पार्क के टॉइलेट के बाहर तक पहुँच तो गया था मगर आसपास अथाह गंदगी फैली देख फौरन पलट जाता है।

"वैसे कोई बेटा कभी अपनी माँ का आशिक नही हो सकता, तुम्हें अपनी माँ रंडी तो नजर नही आती ना? क्योंकि सिर्फ रंडियां ही दस जगह मुंह मारती-फिरती हैं, एक शादीशुदा माँ नही" वैशाली ने जानबूझकर अभिमन्यु से ऐसा मार्मिक सवाल पूछा, वह जानने की इच्छुक थी कि अबतक हुए पापी घटनाक्रमों के उपरान्त उसकी कितनी इज्जत उसके बेटे के दिल मे बची है।

"डोन्ट एक्ट लाइक अ फूलिश टीनेजर मॉम, तुम्हारे इस बचकाने सवाल को सुनकर कौन विश्वास करेगा कि तुम अपनी बेटी तक की शादी कर चुकी हो। बी मैच्योर और तुमने कहीं दस जगह मुंह नही मारा, बस थोड़ी बहुत मिली अपनी फ्रीडम को एंजॉई कर रही हो एण्ड रियली एप्रीशियेट देट" डांटते स्वर मे ऐसा कहकर अभिमन्यु अपनी बाइक के नजदीक पार्क की एक साफ-सुथरी बेंच पर बैठ जाता है, पार्क लगभग खाली सा था और इसी एकांतवास की उसे उस वक्त सख्त आवश्यकता भी थी।

"चलो छोड़ो इन इजूल-फिजूल बातों को, यह बताओ कि क्या पापा ने कभी तुम्हारी चूत को चाटा है? मुझे पक्का यकीन है कि उन्होंने ऐसा कभी नही किया होगा" उसने बिना रुके अपने पिछले कथन मे जोड़ा, वह अच्छे से जानता था कि एकबार पुनः वह अपनी माँ की निजता से खिलवाड़ कर रहा है मगर वैशाली के साथ इतने अधिक अतरंग पलों को व्यतीत करने बाद अब निजता या गोपनीयता का कोई प्रश्न उठता भी कैसे?

अभिमन्यु को काफी देर तक दूसरी तरफ से कोई आवाज सुनाई नही देती, लाइन तो चालू थी परंतु उसकी माँ की धीमी सिसकियों के अलावा उसे अन्य कुछ विशेष सुनाई नही दे रहा था। जब वह बारंबार अपने उसी प्रश्न को दोहराता है तब वैशाली अपने मोबाइल का स्पीकर एक्टिवेट कर उसे अपने बिस्तर से सटी लैम्प टेबल पर रखकर, दोबारा अपनी उंगलियों से अपनी चूत को चोदना शुरू कर देती है। उसके बेटे का वही सवाल अब भी जारी था, जिसके जवाब मे वह तीव्रता से मुट्ठ मारते हुए उसे अपनी अत्यंत कामुक सीतकारों से और आंदोलित करती जा रही थी।

"देखा मॉम! मैंने सही कहा था ना कि उन्हें तुम्हारी चूत से घिन आती है और वह कभी उसे अपने होंठों से प्यार नही करते होंगे। इसके उलटे तुम उनका लंड चूसती हो, तुम्हें तो उनके लंड से कोई घिन महसूस नही होती" अभिमन्यु ने हवा मे तीर छोड़ते हुए कहा। अब उसका वह काल्पनिक उड़ता तीर उसकी माँ अपनी गांड मे ले लेती या घूम-घामकर वह स्वयं उसी की गांड मे घुस जाता, यह फैसला उसने किस्मत पर छोड़ दिया था।

"उन्ह! तुम्हें ...तुम्हें कैसे पता चला कि मैं उनका उफ्फ! ल ...लंड चूसती हूँ?" अपनी माँ के सवाल और उसमे शामिल उसकी हकलाहट को सुनते ही वह जोरों से हँस पड़ता है।

"फंस गई ना, हा! हा! हा! हा! खैर तुम्हारी गलती नही है मम्मी, कुछ लोगों की आदत होती है की वह उड़ता हुआ तीर उछलकर खुद ही अपनी गांड मे ले लेते है" हँसते-हँसते अभिमन्यु बैंच पर लेट जाने को विवश हो जाता है। उसकी माँ के भीतर कोई चालाकी, कोई शातिरपन नही है। अपने वास्तविक स्वभाव समान वह अंदर से भी उतनी भोली, उतनी ही कोमल है जितनी दिखाई देती है और यह सोचकर वह वह खुदपर काबू नही रख पाता, लगभग चीखते हुए अपनी माँ के प्रति अपने नैसर्गिक प्रेम को खुलेआम जताने लगता है।

"आई लव यू माँ, आई लव यूऽऽ" उसका ऊंचा स्वर वैशाली के बेडरूम मे भी गूंज उठा था, एकाएक वह भी जोरों से हँसने लगी और हँसते-हँसते कब उसकी आँखों की किनोर पर आँसू उमड़ आते हैं वह नही जान पाती। कामुत्तेजना की चपेट से सहसा बाहर निकली अपने बिस्तर पर पूर्णरूप से नंगी लेटी वह अत्यधिक सुंदर अधेड़ माँ भावविह्वल होकर रोने लगी थी मगर उसकी सुर्ख आँखों से बहने वाला उसका हर मूक आँसू उसके हर्ष, उसकी आंतरिक खुशी को प्रमाणित कर रहा था, अपने बेटे के निश्छल व निर्विकार प्रेम को बयान कर रहा था।

"मैं घर आ रहा हूँ माँ। तुम तुरंत हाथ हटाओ अपनी चूत से, तुम्हारी तड़प अब मेरी अपनी तड़प बन गई है और जबतक यह तड़प पूरी तरह नही मिटेगी, ना तुम्हें चैन पड़ेगा और ना मुझे। मैं अभी आ रहा हूँ घर" आवेश से भरकर ऐसा कहते हुए वह फौरन बैंच से उठ खड़ा होता है, कुछ वक्त पीछे समान घुटन मानो पुनः वापस लौट आई थी।

"नही मन्यु ...." वैशाली भी फुर्ती से उठकर बैठ जाती, उसने अपने बेटे को तत्काल रोकना चाहा मगर वह उसकी बात बीच मे ही काट देता है।

"तुम्हें मेरी कसम माँ। कपड़े मत पहनना और झड़ना तो बिलकुल नही, आज हम दोनो एकसाथ उस सुख को महसूस करेंगे जिसे हमने पहले कभी महसूस नही कर पाया है" बोलने के उपरान्त अभिमन्यु ने एकाएक लाइन काट दी और बाइक पर कूद पड़ता है।

फोन कट होते ही जैसे वैशाली के हाथ-पैर फूल गए, वह पागलों की भांति दीवार घड़ी को घूरने लगी, उसे अभिमन्यु के बाइक चालाने की तेज गति के विषय मे पहले से ही जानकारी थी और बीती बीती शाम को तो वह स्वयं उसके पीछे बैठकर मॉल भ्रमण पर निकली थी।

"ओह! क ... कै ...कैसे करूँगी यह सब? उफ्फऽऽ!" अपने ही प्रश्न पर उसका सम्पूर्ण बदन थर्रा उठा था। उसके बेटे ने उसे अपनी कसम दी थी कि वह उसका स्वागत अपनी नग्नता से करेगी और उसके आशय के मुताबिक इसके उपरान्त वह जी भरकर उसकी चूत को चाटेगा, उसकी गाढ़ी रज का भरपूर रसपान करेगा। जिस अकल्पनीय सुख से वह दोनो ही आजतक वंचित रहे थे अब से कुछ क्षणों बाद एकसाथ उस सुख के अथाह सागर मे आनंदतिरेक गोते लगाने वाले थे।

"उन्ह! निगोड़ी तेरे कारण ही यह सब हो रहा है" वह झुककर रस से सराबोर अपनी चूतमुख पर अपनी बाईं हथेली की हल्की थाप देते हुए सिसकी, पहले क्या वह कम रस उगल रही थी जो बेटे के आगमन की सूचना पाकर एकाएक झरने सी बहने लगी थी।

"हाँ वाकई, तेरे कारण ही तो यह संभव हुआ है" अगले ही पल वह बड़े प्यार से अपनी चूत की दोनो सूजी फांकों को अपनी दो उंगलियों की मदद से चौड़ते हुए मुस्कुराई। उसकी चूत के भीतर का गुलाबीपन मानो गहरी लालामी मे परिवर्तित हो गया था और जो अंदर किसी ज्वलंत भट्टी सा तप रहा था, वह अपने फूले भांगुर को भी बलपूर्वक मसल देती है और तभी फ्लैट के मुख्य दरवाजे पर जोरदार आघात हुआ। तत्काल वैशाली बिस्तर पर उछल पड़ी, घबराहटवश अपने आप उसका हाथ उसकी गीली चूत से अलग हो गया था और इसके साथ ही पुनः मुख्य दरवाजे पर आघात होने लगते है जो निश्चित उस माँ को अपने बेटे की बेचैनी का स्पष्ट प्रमाण समझ आता है।

"झूठा कहीं का! कॉलेज के पास वाले पार्क मे होता तो पाँच मिनट मे कैसे घर लौट आता?" वैशाली ने चिहंकते हुए अपने नंगे कंधे उछाले, उसने बिस्तर पर पड़ी टॉवल से अपना चेहरा पोंछा और फिर अभिमन्यु से अपनी उत्तेजना छुपाने हेतु वह अपनी गीली चूत की भी अच्छे से पुछाई कर लेती है। तत्पश्चात वह अपने बेडरूम से बाहर निकल आई, नंगी अवस्था मे घर के मुख्य द्वार को खोलना उसके पूरे बदन को कांपने पर मजबूर कर रहा था और साथ ही वह यह भी महसूस करती है कि उसके हर आगे बढ़ते कदम पर उसकी नग्न गदराई गांड अविश्वसनीय ढंग से हिल रही है, मटक रही है, नृत्य सा कर रही है और सहसा अपनी ही गांड की मादकता वह नंगी अधेड़ माँ इठला--सी जाती है।

दरवाजे के बिलकुल समीप पहुँचकर उसने कुछ गहरी-गहरी सांसें लेकर खुद को एक अंतिम बार संयत करने का असफल प्रयत्न किया, अपने ऐंठे दोनो निप्पलों को बारी-बारी स्वयं अपने कोमल व रसीले होंठों से चूमा और एक लंबी अंगड़ाई लेकर, अपने आधे नंगे बंदन को दरवाजे की ओट से बिना छुपाए ही वह झटके से फ्लैट का मुख्य द्वार खोल देती है।

"वैशालीऽऽ" दरवाजे के बाहर खड़े अपने पति के कठोर व अत्यंत क्रोधित सम्बोधन को सुन वैशाली जैसे मूर्छित होते-होते बची मगर अपने बेटे समान अपने भावों को तत्काल बदलते हुए वह एक शैतानी मुस्कुराहट के साथ दरवाजे से पीछे हटकर उसे फ्लैट के भीतर आमंत्रित करने का सफल अभिनय करती है। हालांकि गांड तो उसकी पूरी तरह से फट चुकी थी पर अभिमन्यु के संग अश्लीलता, अनैतिकता, निकृष्टता आदि अमर्यादित खेल लगातार खेलने से उसके भीतर कोई विशेष बदलाव आया हो या नही मगर वह अब पहले की भांति डरपोक नही रही थी, यकीनन एक साहसी नारी मे तब्दील हो गई थी।

"तुम ...तुम नंगी? शर्म आनी चाहिए तुम्हें" सामाजिक भय के कारण मणिक ने कोई विलंब नही किया और अतिशीघ्र फ्लैट के अंदर आ जाता है और उतनी ही तेजी से मुख्य द्वार को बंद करते हुए उसने अपनी मुस्कराती पत्नी की ओर पलटकर पूछा।

"अपने पति का इससे बढ़िया स्वागत कोई पत्नी भला कर कभी सकती है?" मणिक के प्रश्न का जवाब देने के बजाए वैशाली सीधे उसे अपनी नंगी बाहों मे जकड़ते हुए पूछती है मगर उसका क्रोधित पति उसे खुद से दूर धकेलते हुए फौरन उसके नग्न आलिंगनपाश से मुक्त हो जाता है।

"तुम कैसे इतना श्यॉर थीं कि दरवाजे के उस पार मैं ही था, कोई और भी तो हो सकता था? अभिमन्यु भी तो लंच के लिए कॉलेज से आने वाला था अगर मेरी जगह वह होता तो सोचो उसके दिल मे तुम्हारी क्या इज्जत रह जाती? नंगी ...कैसे घर का मेन गेल खोल सकती हो तुम" मणिक ने एकसाथ कई सवालों की झड़ी लगाते हुए पूछा परंतु अपनी पत्नी के मुखमंडल पर बरकरार मुस्कुराहट देख वह चौंकाने से भी खुद को रोक नही पाता है।

"नहाकर निकली, बालकनी मे कपड़े सूखने डालते समय मल्टी के एंट्रेंस पर तुम्हें और तुम्हारे स्कूटर को देखा ...." इतना कहकर वैशाली अपने गाल फुलाकर रूठने का नाटक शुरू कर देती है।

"अभिमन्यु मेरा बेटा है, मैं माँ हूँ उसकी, अपनी इसी कोख मे नौ महीने पाला है मैंने उसे। अपने सगे बेटे के समाने कैसे नंगी खड़ी रह सकती हूँ, क्या मुझे शर्म नही आएगी? उफ्फ! मेरे लिए तो यह सोचना भी पाप है, मैं नंगी ....अपने जवान बेटे के सामने छि!" अपने नग्न पेट पर दाहिना हाथ रखकर उसने स्त्री त्रिया-चरित्र का बेमिसाल उदाहरण पेश करते हुए पिछले कथन मे जोड़ा। अपनी आँखों की किनोर से वह अपने क्रोधित पति के तमतमाते चेहरे का गुपचुप अवलोकन भी कर रही थी और जिसमे एकाएक आया शीतल बदलाव तत्काल उस पापिन की गांड के छेद को मीठी-मीठी खुजाल से भर देता है।

"मुझे माफ करना वैशाली, मैंने बेवजह गुस्से मे आकर ना जाने तुमसे क्या-कुछ उलटा-सीधा कह दिया। वैसे मेरी भी गलती नही है, अपनी बीबी के ऐसे बॉम-ब्लास्ट सप्राइज से तो दुनिया का हर पति घबरा जाएगा" मणिक ने फौरन पछतावा जताते हुए कहा, उसका कठोर स्वर अचानक ही किसी याचक के नम्र स्वर मे परिवर्तित हो गया था।

"आप अगर घबरा जाते तो मुझे खुशी होती मगर आप तो हमेशा मुझे डांटते ही रहते हैं, मैंने तो सोचा था इतने दिनो बाद कुछ प्राइवेसी मिली है ...मगर आप तो मुझे हमारे बेटे के सामने नंगी ..." भर्राए स्वर मे ज्यों ही वैशाली ने अपने पति के ह्रदय पर मार्मिक आघात किया मणिक तीव्रता से आगे बढ़ उतनी ही तेजी से उसे कसकर अपने अंक मे जकड़ लेता है।

"नही वैशाली नही, मत उदास हो। मैं अच्छे से समझता हूँ कि मुझसे बिछड़कर तुम्हें कितना बुरा लगता होगा, बल्कि मैं खुद तुम्हारे बगैर कितना तड़पता हूँ बता नही सकता मगर यही बिछड़न तो सचमुच हमें जोडे़ हुए है वर्ना बताओ साथ रहने की चाह मे क्या हमारा और हमारे बेटे का भविष्य नही बिगड़ जाएगा? अरे! हमारा त्याग ही तो आगे चलकर अभिमन्यु की किस्मत बदलेगा और शादीशुदा होने के बाद अपने नन्हे-मुन्नो को वह हमारे इसी त्याग और संस्कारो के बारे मे बड़े गर्व से बताया करेगा" छाती से लिपटी अपनी नग्न पत्नी की नंगी चिकनी पीठ पर मणिक अपनी बाईं हथेली को हौले-हौले फेरते हुए बोला। पति के सदाचारी प्यार और उसके शरीर की सात्विक तपिश से तत्काल वैशाली भीतर तक शर्मिंदगी महसूस करने लगती है, उसके बदन की सारी वासना, सारी गंध को मानो पति के एक आलिंगन ने पूरी तरह से मिटा दिया था, उसका अंग-अंग सुगंधित कर दिया था। इसी बीच मणिक का मोबाइल बज उठा और वह वैशाली को अपने ह्रदय से लगाए रखते ही कॉल पिक कर लेता है।

"हाँ तिवारी जी, बस ज्यादा से ज्यादा आधा घंटा लगेगा"

"अरे! रोकिए उस यूडीसी को तिवारी जी"

"अच्छा आज उसका हॉफ टाइम है, चलिए मैं बस बीस मिनट मे पहुँचता हूँ, बिलकुल ...बिलकुल निकल चुका हूँ घर से"

"वैशाली! मेरा चमड़े वाला हैन्ड बैग निकालो, उसमे रद्द हुए पिछले टूर के बिल रखे हैं" कॉल कट कर उसने कहा।

"मैं ...मैं कुछ पहन लूं फिर ...." अपने पति की अधेड़ बाहों से आजाद होते ही वैशाली लज्जा से भरते हुए बोली।

"समय नही है, वह बाबू बहुत जिद्दी स्वभाव का है दोबारा बिल पास करवाने मे कोई हेल्प नही करेगा" मणिक ने उसे अपनी व्यथा बतलाई।

"और वैसे भी तुम नंगी ज्यादा सुंदर लग रही हो, काश मेरा बस चलता तो मैं कभी तुम्हें कपड़े नही पहनने देता। सचमुच वैशाली यू आर लुकिंग डेम हॉट राइट नाउ" वह मुस्कुराकर अपनी नंगी बीवी को उसके सिर से लेकर पाँव तक घूरते हुए अपने पिछले कथन मे जोड़ता है।

"आप भी ना, बस ...." इसके आगे वैशाली कुछ और नही कह पाती, अपने पति के अश्लील कथन को सुनकर सहसा उसे अपने बेटे की अश्लीलता याद आ गई थी और शर्म से अचानक लाल पड़ी वह वह नंगी अधेड़ पत्नी और साथ ही दो जवान बच्चों की अत्यधिक सुंदर माँ सीधे अपने बेडरूम की ओर दौड़ लगा देती है। अपनी कामुक दौड़ से तो उसने मणिक के सीने मे जैसे कोई खंजर ही उतार दिया था और अपनी पत्नी के पीछे जोरदार आहें भरते हुए वह भी दौड़ पड़ा था।

अपने बेडरूम के भीतर आकर वैशाली ने आनन-फानन मे गॉदरेज की अलमारी खोली, अलमारी के सबसे निचले ड्राअर मे मौजूद पति के हैन्ड बैग को ड्राअर से बाहर निकाले के लिए वह बिना किसी सोच-विचार के आगे को झुक जाती है। हालांकि यह उसने जानबूझकर नही किया था पर उसके एकदम से नीचे को झुक जाने के कारण उसके पीछे खड़े मणिक को उसकी चिपकी मांसल जांघों के बीचों-बीच बाहर को उभर आई उसकी सांवली-सलोनी चूत के दुर्लभ दर्शन होने लगते है, काली घनी झाटों के मध्य उसकी चूत के बेहद सूजे होंठ उसे अब भी ठीक उतने ही कामुक नजर आते हैं जितने उनकी सुहागरत पर आए थे।

"इसकी गांड मे तो सचमुच मेरे प्राण बसते हैं" मणिक पत्नी की गांड के गौरवर्णी दोनो गुदाज पटों को घूरते हुए बुदबुदाया जिनकी गहरी दरार के भीतर उगी झांटों के संग उसे पसीने की अधिकता से चमचमाता उसका कुंवारा मलद्वार भी स्पष्ट दिखाई दे रहा था, उसका दायां हाथ स्वतः ही पैंट के ऊपर से उसके तेजी से तनते हुए लंड पर पहुंच गया और ठीक उसी वक्त वैशाली पुनः सीधी हो जाती है।

"यह लीजिए" उसने पलटकर हैन्ड बैग मणिक की और बढ़ाते हुए कहा, वह फुर्ती से अपना हाथ अपने खड़े लंड से झटकता है और अत्यंत-तुरंत वैशाली सारा मसला समझ जाती है।

"इन्हें कल कर दीजिएगा जमा" उसने मुस्कान के साथ पति की पैंट के तम्बू को निहारते हुए पिछले कथन मे जोड़ा, उसके तम्बू की विशालता को देख क्षणमात्र मे वैशाली की चूत पनियाना शुरू हो गई थी।

"रात मे मॉइ लव ... तुम्हारी सारी शिकायतें दूर कर दूंगा। प्रॉमिज!" कहकर मणिक अनमने मन से बेडरूम के बाहर जाने लगा, कितने दिनो बाद तो आज उसे अपनी पत्नी के साथ संभोग करने का सही मौका नसीब हुआ था और उसपर भी उसके पैसे कमाने की ललक ने सफा पानी फेर दिया था।

"चाहें तो चूस दूँ, ऐसी हालत मे कैसे जाएंगे?" वैशाली ने भी उसके पीछे-पीछे हॉल मे आते हुए पूछा, इस समय उसे बस अपने पति की उत्तेजना शांत करने से मतलब था इसके अलावा शर्म-बेशर्मी, मान-मर्यादा आदि की जैसे उसे कोई परवाह नही थी।

"थैंक्स डार्लिंग ...रात मे" कहकर वह वैशाली के होंठ चूम लेता है।

"नंगी ही मुझे विदा करो ना" मणिक तब शैतानी मुस्कान के साथ अपने पिछले कथन मे जोड़ता है जब वैशाली एकाएक बेडरूम के भीतर जाने को मुड़ने लगी थी। बस फिर क्या था अब तो उसे अपने पति की स्वीकृति मिल गई थी और अंतत: वह मुख्य दरवाजे को पुनः खोलकर अपने पति को घर से नंगी ही रुखसत भी कर देती है।

मणिक के जाने के उपरान्त वैशाली ने दरवाजे को लॉक किया और धम्म से हॉल के सोफे पर गिर पड़ी, उसके साथ यह कैसा अजीब खेल खेल रही है उसकी किस्मत? सोफे पर बैठे एकाएक उसे रोना आ गया था, अपने बेटे या पति मे से किसी एक के चुनाव ने उसे गहरी सोच के गर्त मे ढ़केल दिया था। अपनी सोच को जल्द पूरा करने के उद्देश्य से ज्यों ही उसने अपनी पलकें बंद की तत्काल उसके पति का क्रोधित चेहरा उसकी मुंदी आंखों मे उभर आता है और जिसके भयस्वरूप वह थरथराते हुए उनके परिवार के भावी भविष्य की व्यर्थ आशंकाओं से घिर उठती है।

"आज तू बच भले गई मगर हमेशा नही बच सकेगी, पाप का घड़ा देर-सवेर पर भरता जरूर है। अगली बार अगर तू पकड़ी गई तो तेरी घर-निकासी पक्की है, तेरा पति तुझे ही दोष देगा क्योंकि तू उम्र और रिश्ते मे अभिमन्यु से बड़ी है। तेरा बेटा अभी अपने पिता पर आश्रित है, वह तुझे क्या खाक अपना पाएगा?" अपने अंतर्मन की कचोटना से पसीने-पसीने होकर वैशाली ने फौरन कपड़े पहन लेने का मन बनाया मगर सोफे उठकर वह खड़ी भी पाती इससे पहले ही घर के मुख्य द्वार पर हुए दोबारा आघात ने अकस्मात् उस नंगी अधेड़ माँ के पुनः प्राण सुखा दिए थे।

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घर के मुख्य दरवाजे पर हुए पुनः आघात के परिणामस्वरूप वैशाली उस आघात को सीधे अपने धुकनी समान धड़कते दिल पर महसूस करती है और एकाएक एकसाथ उसके मन-मस्तिष्क मे कई तरह की सकारात्मक व नकारात्मक संभावनाएं जन्म लेने लगती हैं।

"कौ ...कौन हो सकता है?" वह बाईं हथेली से तत्काल अपने माथे पर पनपे पसीने को पोंछते हुए फुसफुसाई।

"कोई जान-पहचान वाला, कोई अपरिचित ...अभिमन्यु! अभिमन्यु तो नही" वह कांपते हुए सोफे से उठ खडी़ हुई, जब इसबार भी दरवाजे पर लगातार थापें पड़ना शुरू हो जाती हैं। कुछ वक्त पीछे इसी को अपने बेटे की बेचैनी समझ उसने बिना सोचे-विचारे नग्न ही दरवाजा खोल दिया था और जिसके नतीजन बीते जीवन मे पहली बार उसे अपने पति के समक्ष आंतरिक शर्म का अहसास हुआ था। अपनी जिस संस्कारी विवाहित छव पर उसे ताउम्र गर्व होता रहा था, इस तात्कालिक समय मे उसकी वह मर्यादित छव जैसे खंड-खंड हो चुकी थी।

"कहीं यही तो वापस नही लौट आए? कहीं इन्हें मुझपर कोई शक तो नही हो गया? कहीं मणिक मुझे परखना तो नही चाहते कि उनकी गैरहाजिरी मे उनकी बीवी क्या पापी गुल खिला रही है? आवाज देकर कन्फर्म भी तो नही कर सकती कि दरवाजे के उसपार कौन है, पहले भी मैंने कहाँ कन्फर्म किया था?" अपने ही संशित प्रश्नों से आप थर्रा उठी वैशाली सहसा अपने दोनो हाथों से अपने बाल नोचते हुए सीधे अपने बेडरूम की दिशा मे दौड़ पड़ती है मगर अभी वह हॉल के बीचों-बीच भी नही पहुँच सकी थी कि मुख्य दरवाजे के उसपार से गूंजे अभिमन्यु के ह्रदयविदारक स्वर ने उसके तीव्र कदमों को वहीं जमा कर रख दिया था।

"घबराओ मत माँ, मैं अकेला हूँ। तुम दरवाजा नही खोल रहीं, शायद तुमने मेरी कसम तोड़ दी। अगर ऐसा है तो मैं वापस लौट रहा हूँ, तुम्हें मेरी वजह से और ज्यादा परेशान होने की जरूरत नही है" वह एक अंतिम थाप दरवाजे पर देते हुए बोला और ना जाने उसके स्वर मे ऐसा क्या मर्म छुपा था जिसे महसूस कर वैशाली की अपनी नग्नता को लेकर सारी लज्जा पल मे हवा हो गई और उसी क्षण पलटकर वह उतनी ही तेजी से घर के मुख्य दरवाजे की ओर दौड़ पड़ने पर विवश हो जाती है।

"एक माँ अपने बेटे की कसम कभी नही तोड़ सकती मन्यु। देखो ना, मैं सिर से लेकर पांव तक नंगी हूँ और तुम वापस लौटने की बात कर रहे हो" अतिशीघ्र वैशाली ने बिना किसी अतिरिक्त झिझक के दोबारा घर के मुख्य दरवाजे को खोल दिया और उसपार खड़े अपने बेटे को अपने अनैतिक कथन का साक्ष्य, अपनी पूर्णनंगी अवस्था से परिचित करवाते हुए बोली। उसकी मंद-मंद मुस्कुराहट दो पाटों मे बंटी उसकी आंतरिक व्यथा की सफल परिचायक थी, जिसमे यकीनन निरंतर तेजी से बदलते जा रहे उसके अनेकों भावो का समावेश शामिल था।

"ओह माँ! ओह माँ! ओह माँ! आई लव यू, सच मे बहुत प्यार करता हूँ मैं तुमसे" अभिमन्यु अपनी माँ के अश्लील कथन और उसके अपनी सुडौल नंगी काया के लज्जाहीन प्रदर्शन से मन्त्रमुग्ध होते हुए सिसका और तीव्रता से फ्लैट के भीतर प्रवेश कर जाता है, तत्पश्चात उसने उसी तीव्रता से घर के मुख्य द्वार को लॉक किया और दो-चार कदम पीछे हट चुकी अपनी माँ के गौरवर्णी नग्न रूप-स्वरूप का वह अत्यंत बेशर्मी से चक्षुचोदन करने लगा। उसने स्पष्ट देखा कि उसकी माँ का चेहरा नीचे को झुक गया था, अपनी दाहिनी हथेली को अपने सपाट चिकने पेट पर रखे शर्म से लाल पड़ी वह अपने बाएं हाथ की उंगलियों के नुकीले नाखूनों से अपनी बाईं जांघ की बेहद कोमल त्वचा को हौले-हौले कुरेदे जा रही थी। जबतक वह अपने पैरों के पंजों पर भी खड़ी हो जाती जो प्रत्यक्ष प्रमाण था कि वह अपने लगातार तेजी से ऐंठते जा रहे नग्न बदन की कष्टकारी ऐंठन से मुक्त होने का हरसंभव प्रयत्न करने को विवश थी।

"क्या तुम मुझसे ...अपने सगे बेटे से शर्मा रही हो मम्मी?" वह आगे बढ़कर अपनी दाईं हथेली से वैशाली की ठोड़ी को पकड़, उसका पसीने से तर-बतर चेहरा ऊपर उठाते हुए सीधे उसकी सुर्ख लाल आँखों मे झांककर पूछता है। उसकी आँखों मे तैरतीं उसकी काली गोल दोनो पुतलियां कुछ इस तरह हिल रही थीं जैसे ठहरे हुए पानी की सतह पर बारम्बार भूचाल आ रहा हो, निश्चित जिनकी गहराई मे अभी वासना से कहीं अधिक शर्म का वास था। वह अपने बाएं हाथ को अपनी माँ के जूड़ाबंद बालों पर रख अपनी उंगलियों की मदद से एकाएक उन्हें खोल देता है जो तत्काल उसकी माँ की नंगी पीठ, उसके नग्न कंधे और उसके अत्यंत सुंदर चेहरे पर चहुं ओर बिखर जाते हैं, फौरन उसने वैशाली की लंबी लटों को उसके कानों के पीछे दबाया तत्पश्चात वह उसके माथे पर एक लघु चुम्बन अंकित कर मुस्कुराने लगता है।

"मन्यु तुम्हारे ...." अपने बेटे के हाथों का स्पर्श अपने चेहरे पर महसूस कर वैशाली ने कुछ कहने के लिए अपने होंठ खोले ही थे कि तुरंत अभिमन्यु अपना दायां अंगूठा उसके खुले होंठों के मध्य रख उसे वहीं चुप करवा देता है।

"शश्श्श्श्श् माँ! कुछ ना कहो। तुम कांप रही हो, जोरों से हांफ रही हो, तुम्हारी आँखें खुली नही रह पा रहीं, तुम अंगड़ाई लेने को मचल रही हो, तुम्हारे निप्पल बेहद कड़क हो चुके हैं, चूत से निकलकर तुम्हारा रस तुम्हारी नंगी जांघों तक बहा चला आया है, तुम्हारी गांड तुम्हारे लाख रोकने के बाद भी हिलना बंद नही कर रही और मैं बेवकूफ पूछ रहा हूँ कि तुम मुझसे शर्मा तो नही रहीं" अभिमन्यु उसके नाजुक होंठों पर अपने अंगूठे का घर्षण देते हुए बोला। दाएं से बाएं, बाएं से दाएं वह गोल-गोल आकृति मे लगातार अपना अंगूठा अपनी माँ के नर्म दोनो होंठों पर दबा रहा था, रगड़ रहा था, उन्हें उमेठ रहा था। अपने बेटे के मुंह से अपनी तात्कालिक उत्तेजित स्थिति की अनैतिक प्रशंसा सुन वैशाली की चूत के सूजे होंठ भी स्वतः ही फड़क उठे थे जैसे वह अपने अंगूठे से उसके उन्हीं सूजे होठों का मर्दन किए जा रहा हो, उस माँ को अपनी लज्जित परिस्थिति पर बेहद अचंभा होता है जब ना चाहते हुए भी अपने बेटे की निकृष्ट हरकत के समर्थन मे वह एकाएक उसके अंगूठे को अपने होंठों के बीच फंसा लेती है और अविलंब उसे बलपूर्वक चूसना शुरू कर देती है।

"उस छाले का दर्द अब मेरे लंड पर पहुँच चुका है माँ, अगर मेरे अंगूठे के बजाय तुम मेरे लंड को चूसोगी तो शायद मुझे इससे ज्यादा राहत मिलेगी" दुष्ट हँसी हँसते हुए अभिमन्यु बिना किसी झिझक के बोला, उसके कथन मे शामिल उसकी पापी चाह के फलस्वरूप तत्काल वैशाली की चूत की अंदरूनी गहराई मे इस कदर स्पंदन होना आरंभ हो जाता है, जिससे अतिशीघ्र राहत पाने की आकांक्षा मे वह सबकुछ भूलकर अपने निचले धड़ को बेशर्मों की तरह अपने बेटे की मर्दाना जांघ पर घिसने लगती है। उसका अंगूठा चूसती वह अधेड़ नंगी माँ अचानक किसी बेल समान उसके बलिष्ठ शरीर से लिपट गई थी और कब धड़ाधड़ वह अपनी झरने--सी बहती चूत को अपने बेटे की कठोर बाईं जांघ पर अत्यंत बेचैनीपूर्वक ठोकने लगी थी, उसे स्वयं पता नही चल पाता।

"मन्यु! ओह मन्यु, तुम्हारे उफ्फऽऽ ...तुम्हारे ..." अपने जबड़े भींच वैशाली अपने बेटे को कुछ वक्त पीछे घटी घटना से परिचित करने का हरसंभव प्रयास करती है, अपने पति के अकस्मात् घर लौट आने के विषय मे वह अभिमन्यु को बताना चाहती थी मगर अपनी दयनीय परिस्थिति के हाथों मजबूर उसके मुंह से उसकी जोरदार सीत्कारों के सिवाय यदि कुछ बाहर निकला था तो वह था उसकी गाढ़ी लार से भीगा उसके बेटे का दायां अंगूठा जिसे वह एकाएक पुनः मूक हो जाने के पश्चात दोबारा तीव्रता से चूसने लगी थी।

"शश्श्श्श्! मैंने कहा ना, कुछ ना कहो और यह भी बता चुका हूँ कि दर्द मेरे अंगूठे मे नही, मेरी जींस और जॉकी के अंदर खड़े मेरे लंड मे हो रहा है। उन्ह! मैं अब और इंतजार नही कर सकता मॉम, मुझे मेरे तड़पते हुए लंड पर तुम्हारे इन मुलायम होठों की सख्त जरूरत है। मैं उसकी दर्द भरी जकड़न से जल्द से जल्द बाहर आना चाहता हूँ, अपने वीर्य भरे टट्टों को तुरंत खाली करना चाहता हूँ" उद्विग्न स्वर मे ऐसा कहते हुए अभिमन्यु अपने सूखे होंठों पर जीभ फिराने लगा और अपनी थूक से उन्हें अच्छी तरह भिगोने के उपरान्त फौरन वह नीचे झुककर अपने गीले होंठ सीधे वैशाली के तनकर पत्थर हो चुके बाएं निप्पल से सटा देता है। कुछ देरतक अपने गहरे व लंबे शीतल चुंबनों से वह अपनी माँ के निप्पल की असीमित कठोरता का अनुमान लगता रहा और जब मनभरकर वह उसे चूम चुका तब बिना किसी अग्रिम संकेत के अपना अंगूठा वह अपनी माँ के रसीले होंठो से बाहर खींच लेता है।

"चलो तुम्हारे बेडरूम मे चलें मम्मी। तुम्हारे अपने बिस्तर पर जी भरकर तुम्हारी चूत चाटूँगा, तुम्हारा मन्यु आज तुम्हारी सारी तड़प चूसकर पी जाएगा क्योंकि तुम्हारी तड़प ...अब अकेली तुम्हारी नही रही माँ, उसकी अपनी तड़प मे शामिल हो चुकी है" विश्वास से प्रचूर स्वर मे ऐसा कहकर वह फौरन अपने बाएं हाथ से अपनी माँ की मांसल पिछली जांघे पकड़ लेता है और साथ ही दाहिने को उसने उसकी नंगी पीठ पर कस दिया, उसके जरा से बलप्रयोग से हतप्रभ वैशाली तत्काल उसकी बलिष्ठ भुजाओं पर टिक गई थी और अपने बीते बचपन समान वह उसे अपनी गोद मे उठाकर सरलतापूर्वक अपने कदमों को चलायमान कर देता है, बस अंतर था तो महज इतना कि बचपन मे स्वयं वह नंगा हुआ करता था मगर वर्तमान मे उसकी माँ नंगी थी।

"तुम्हारी वजह से मैं अपने बीते हुए बचपन को फिर से जी पा रहा हूँ माँ। खैर मुझे तो याद नही पर शायद उस वक्त तुम मुझे ऐसे ही अपनी गोद मे उठाकर इधर-उधर घूमती रहती होगी मगर देखो ना, आज मैंने तुम्हें अपनी गोद मे उठा रखा है। मैं बहुत खुश हूँ मॉम, बहुत खुश" अपने माता-पिता के बेडरूम के समीप पहुँचकर अभिमन्यु चिंहकते हुए कहता है, यकीनन उसके कथन समतुल्य उसकी प्रसन्नता का जैसे कोई पारावार शेष नही था।

"बचपन मे तुम नंगे रहा करते थे आज तुम्हारी बूढ़ी माँ नंगी है, फर्क सिर्फ इतना है मन्यु" वैशाली सामान्य स्वर मे बोली, काफी देर बाद उसके मुंह से स्पष्ट कुछ बाहर आ सका था। किसी जवान मर्द की मजबूत बाहों मे झूला झूलने का गर्व संसार की किस स्त्री को नही होगा और फिर वह जवान मर्द कोई अन्य नही आपका अपना लल्ला हो तो कहने ही क्या? वह अपने बेटे के अतुल्य बल पर सम्मोहित--सी हो गई थी, यह तक भुला बैठी थी कि अब से कुछ क्षणों बाद उसका वही बेटा उसकी चूत को जी भरकर चाटने व चूसने का अत्यंत पापी कार्य शुरू करने वाला था।

"हाँ तुमने बिलकुल सही कहा मम्मी, तुम नंगी मेरे हाथों मे हो यह कोई छोटी-मोटी बात नही। किसी बेटे और उसकी सगी माँ के बीच अगर कभी ऐसा हुआ हो तो उसे केवल उन दोनो का एक-दूसरे पर बेशुमार प्यार और भरोसा ही माना जाएगा मगर तुम बूढ़ी हो यह मैं नही मान सकता क्योंकि तुम्हारे बदन मे हड्डियों के अलावा अभी भी काफी चर्बी चढ़ी हुई है और तभी मैं सोचू कि ... उफ्फऽऽ! मैंने कितना भारी वजन उठा रखा है" हँसते हुए ऐसा कहकर उसने वैशाली को एकाएक उसके गद्देदार बिस्तर पर छोड़ दिया, हालांकि यह उसने बेहद सोच-विचारकर किया था और इस विशेष बात का भी पूरा ध्यान रखा था कि उसकी माँ को उतनी ऊंचाई से नीचे गिरने के बाद कोई चोट-वोट ना आ सके।

"आईऽऽ! नालायक कहीं के, कोई इतनी बेरहमी से अपनी माँ को नीचे पटकता है भला" बिस्तर पर गिरने के उपरान्त सहसा वैशाली के मुंह से निकल जाता है, वह क्रोधित नही थी पर बुरी तरह चौंक जरूर गई थी। बिस्तर के मुलायम गद्दे पर एकदम से गिर पड़ने के नतीजन उसका सम्पूर्ण गुदाज बदन दोबारा ऊपर उछालते हुए बेहद कामुकतापूर्वक हिल उठा था, उसके गोल-मटोल मम्मे उसके चेहरे से जा टकराए थे जैसे अपनी स्वामिनी की एकाएक नाराजगी से क्रोधित स्वयं उसके मुख पर थप्पड़ लगा रहे हों।

"अले अले, क्या मम्मा को पोंद मे लग गई?" पूछते हुए अभिमन्यु की हँसी से पूरा बेडरूम गूंज उठता है और यही वह अद्भुत क्षण था जब बेटे के बचपने को देख वैशाली भी खुद को हँसने से रोक नही पाती, बचपन मे अधिकतर बच्चे सभ्य भाषा मे 'गांड' को 'पोंद' कहकर सम्बोधित करते हैं और यही कारण था जो दोनो माँ-बेट एकसाथ खुलकर हँसे जा रहे थे।

"मैं नालायक हूँ, घटिया हूँ, बेशर्म हूँ, बहुत ...बहुत गंदा हूँ। तुम मुझे डांट सकती हो, गाली दे सकती हो, मार-पीट सकती हो ...चाहो तो दोबारा मेरी पॉकेटमनी बंद कर देना मगर मुझसे कभी रूठना नही, कभी खुद से अलग मत करना। मेरे दिल के इतने करीब आजतक कोई नही आ पाया, जितना इन दो दिनों मे तुम आ चुकी हो और मैं तुम्हें कभी खोना नही चाहता माँ ...कभी खोना नही चाहता" कहते है कि जो जितना हँसता है बाद मे उतना ही रोता है, कुछ ऐसा ही अचानक अभिमन्यु के साथ हुआ और बोलते-बोलते कब उसके हँसते स्वर एकाएक भर्रा उठते है वह स्वयं नही जान पाता। उसकी आँखों नम हुईं और फिर जैसे आँसुओं का सैलाब उमड़ पड़ता है, जिसे देख वैशाली की हँसी भी तत्काल रुक गई थी। जवान हो चुकने के उपरान्त शायद यह पहली बार था जो वह प्रत्यक्ष अपने बेटे को रोता हुआ देख रही थी, जबकि वह तब भी नही रोया था जब उसकी इकलौती प्यारी बहन अनुभा उनके घर से हमेशा-हमेशा को रुखसत हुई थी।

"अच्छा! तो तुम लड़कियों की तरह रोते भी हो। आओ ...यहाँ आओ अपनी माँ के पास" अपनी नग्नता को सिरे से नकारते हुए वैशाली ने फौरन अपनी बाहों को फैलाते हुए कहा, दिल तो उसका भी फट पड़ा था मगर जानती थी कि यदि वह खुद भी रोना शुरू कर देती तो उसके बेटे को किसी कीमत पर चुप नही करवा सकती थी। कुछ लोगों की विशेषता होती है, जबतक नही रोते तबतक रुलाए नही रोते और जब रोना शुरू करते हैं तब मानाए नही चुप होते। अपने बेटे के इस पुराने रोग की बचपन से जानकार उस माँ ने अतिशीघ्र बिस्तर के कोने मे सरककर अभिमन्यु को बलपूर्वक अपनी गोद मे खींचा और इसे महज आश्चर्य ही कहा जाएगा कि अबतक हरबार विफल रही वह माँ अपने स्त्री बलप्रयोग से आज पहली बार अपने बेटे को परास्त करने पूरी तरह से सफल हो चुकी थी।

"अगर सारा प्यार अपनी माँ पर लुटा दोगे तो मेरी होनेवाली बहू को कैसे खुश रख सकोगे? हम्म!" अपनी बाईं हथेली से वह प्रेमपूर्वक अपने बेटे की भीगी पलकों को पोंछते हुए पूछती है।

"अब तुम्हारी माँ तो पूरी तरह से नंगी है, कपड़े का एक कतरा तक उसके बदन पर मौजूद नही तो फिर कैसे वह अपने बेटे के आँसूओं को पोंछे। बताओ?" उसने मुस्कुराते हुए अपने पिछले प्रश्न मे जोड़ा और हौले--से अभिमन्यु की दोनो नम आँखों पर अपने मर्यादित ममतामयी चुम्बनों की बरसात शुरू कर देती है।

"तुमने मुझसे पूछा था ना कि क्या मैं तुमसे ...अपने सगे बेटे से शर्मा रही हूँ? सच कहूँ मन्यु तो हाँ, तुम्हारे सामने जबजब मैंने अपने कपड़े उतारे हैं ...मैं हर बार शर्म से पानी-पानी हुई हूँ लेकिन यह भी सच है कि मुझे ऐसा करके उससे कहीं ज्यादा खुशी भी महसूस हुई है। जानते हो क्यों?" जब अभिमन्यु उसके पिछले प्रश्नों का कोई उत्तर नही देता तब वह आगे कहना आरंभ करती है। परिस्थिति मे एकाएक कितना अधिक बदलाव आ गया था, कुछ देर पहले सिर्फ बेटा बोले जा रहा था उसकी माँ खामोश थी और अभी सिर्फ माँ बोले जा रही थी उसका बेटा खामोश था। उनकी सहजता-असहजता मे भी काफी अंतर आया था, यकीनन घर के वातावरण मे छाई अनाचारी वासना सच्चे प्रेम मे परिवर्तित हो चली थी।

"क्योंकि ...क्योंकि यह महापाप है, गुनाह है और हम इंसानो की गंदी फितरत हमेशा ही पाप को बढ़ावा देती आई है। चाहे मर्द हो या औरत ...जानते हैं कि वह जो कर रहे हैं पूरी तरह से गलत है मगर फिर भी कीचड़ मे गंदे होने से खुद को रोक नही पाते। बात अगर केवल मेरी की जाए तो मेरा अपने जवान बेटे के सामने यूं बेशर्मों जैसे नंगी होकर बैठना मैं खुद कभी नही स्वीकार सकती पर यह सच भी नही झुटला सकती कि अभी मैं नंगी हूँ। मन्यु जाने क्यों मुझे लग रहा है कि अब से तुम जब भी अपनी माँ को देखो, उसकी इसी नंगी हालत मे देखो। मुझे कहते हुए जरा भी शर्म नही आ रही कि तुम्हारी माँ अब तुम्हारे सामने कभी कपड़े पहने हुए नही रहना चाहती, वह हमेशा नंगी ही बनी रहना चाहती है" कहकर वैशाली ने अपनी बाईं छोटी उंगली से अपनी आँखों की किनोर को पोंछा। उसे स्पष्ट अहसास हो रहा था कि भले ही अभिमन्यु गुपचुप बैठा हुआ था मगर अपनी माँ की हैरत से भरी बातों को सुनकर उसकी सिसकिया पूर्णरूप से रुक गई थीं, उसके चेहरे पर एकसाथ कई तरह के भाव उमड़ आए थे। शरीर मे होते कंपन के साथ ही उसके दिल की धड़कने भी तत्काल धुकनी मे बदल गई थी, जिनकी हर धमक को वह माँ सीधे अपनी धड़कनों से जुड़ता पा रही थी।

"दिखाओ अंगूठे के छाले का दर्द कहाँ तक पहुँचा, मैं तुम्हारा लंड चूसूंगी तो नही पर उसे देखना जरूर चाहूंगी" चेहरे पर मुस्कान लाते हुए वैशाली तीव्रता से अपने बेटे की जींस की बेल्ट को खोलने लगी, अभिमन्यु ठगा सा उसे रोकने मे जरा भी सक्षम नही था जैसे अपनी माँ के सम्मोहन पाश मे पूरी तरह से बंध गया हो। बेल्ट को जींस के बक्कलों से निकालकर वह जींस का बटन और चेन भी खोल देती है और उसकी कजरारी आँखों के इशारे से कब उसका बेटा अपनी गांड को बिस्तर से उठा देता है वह स्वयं नही जान पाता। जींस के बाद बारी आई उसकी शर्ट की और अगले ही पल उसे उसकी जॉकी भी नीचे फर्श पर बिखरे पड़े उसके अन्य कपड़ो मे शामिल नजर आती है, यह सोचकर कि अब दोनो माँ-बेटे पूर्णरूप से नंगे हो चुके हैं बेडरूम का प्रेमभरा वातावरण भी पुनः अखंड वासना से प्रज्वलित हो उठता है।

"ओह माँ! इस्स्स्ऽऽ!" बेटे को खुद के समान नंगा करने के कारण वैशाली को बिस्तर के बीचों-बीच आना पड़ा था और ज्यों ही वह बिस्तर के कोने मे बैठे अभिमन्यु को सीधे उसके अधखड़े लंड से पकड़कर अपनी ओर खींचती है, अपने बेटे की कामुक व दर्दभरी सीत्कार से उस माँ की चूत का रूका हुआ स्पंदन भी मानो एकाएक बढ़ गया था।

"कितने ...कितने बड़े हो चुके हो तुम मन्यु, उफ्फ! बहुत खूबसूरत लंड है तुम्हारा, अगर आज हम पापी ना बनते तो मुझे कभी पता ही नही चलता कि अपने सगे बेटे के जवान लंड को अपनी नंगी आँखों से देखने का सुख कैसा होता है?" वह अभिमन्यु की खुली टांगों के मध्य नीचे झुकते हुए सिसकी, उसकी अत्यंत नाजुक दाहिनी मुट्ठी मे कैद उसके बेटे का अधसिकुड़ा लंड ठुमकियां लगाते हुए तत्काल तनाव से फूलने लगा था और जिसमे तीव्रता से होते जा रहे परिवर्तन को करीब से देखने की चाह मे वह माँ फौरन उस अत्यधिक ज्वलंत मूसल को अपनी मुट्ठी से आजाद कर देती है।

"माँऽऽ! ओह मम्ऽमीऽऽ!" अभिमन्यु की सीत्कारें तब एकदम से उसकी चीख-पुकार मे तब्दील हो गईं जब उसे प्रत्यक्ष अपनी माँ का बेहद सुंदर चेहरा अपने लंड पर झुकता हुआ नजर आता है।

"यह ...यह खडा़ हो रहा है मन्यु, देखो कितनी तेजी से बड़ा हो रहा है यह। उन्ह! उन्ह! बेशर्मों की तरह कैसे झटके खा रहा है नालायक, इस्स्! क्या ...क्या तुम्हारी तरह यह भी तुम्हारी माँ से सच्चा प्यार करता है? बताओ ना मन्यु ...क्या यह मेरे लिए तन रहा है?" वैशाली बेहद उत्साहित स्वर मे पूछती है, ऐसा अद्भुत व उत्तेजक नजारा उसने अपने बीते जीवनकाल मे कभी नही देखा था, तब भी नही जब अपनी सुहागरात पर पहली बार वह अपने पति के विशाल लंड से परिचित हुई था। इसे महज अपवाद कहा जाएगा कि जहाँ अधिकतर स्त्रियां अपने कौमार्य को अपने विवाह तक संभालकर नही रख पातीं, वैशाली के संस्कार, उसकी मर्यादा, उसकी अडिग विचारधारा, यह उसके अखंड संयम का ही फल था जो मणिक को अपनी पत्नीरूप मे यौवन से भरपूर एक कुंवारी युवती की प्राप्ति हुई थी और जिसपर वह स्वयं अचंभित हुए बगैर नही रह सका था, बल्कि गर्व से आनंदित भी हो उठा था।

"हाँ माँ हाँ ...मेरी तरह यह बेशर्म भी सिर्फ तुम्हारे लिए ही खड़ा हो रहा है। देखो ...मेरे फूले ट्टटों को देखो मम्मी, आहऽऽ! तुम्हारे सच्चे प्यार, अच्छी परवरिश और देखभाल की वजह से इनमे कितना ज्यादा रस भरा पड़ा है और जो केवल तुम्हारे लिए है ...उम्म! मुझे पैदा करनेवाली मेरी सगी माँ के लिए है" अभिमन्यु सिसियाते स्वर मे चिल्लाया। वह सचमुच नही जानता था कि उसकी भोली-भाली, सीधी-साधी सी दिखनेवाली माँ के भीतर इतनी अधिक आग भरी हो सकती है, उसकी संस्कारी व मर्यादित छव के पीछे इतनी हिंसक प्रवृत्ति छुपी हो सकती है।

"देख रही हूँ मन्यु, वीर्य ही वीर्य भरा है इनमे। तुम्हारे कड़क लंड की इन नीली-लाल-हरी नसों को भी देख रही हूँ मैं, बिलकुल मेरे अपने दिल जैसी धड़क रही हैं और ...और तुम्हारा यह चिकना सुपाडा़ ओह! अभिमन्यु तुम्हारा यह बैंगनी सुपाड़ा तो मुझे पागल ही कर देगा बेटा ...कितना प्यारा है यह, जैसे कोई छोटा सेब हो। इसमे से बहार निकलते गढ़े रस की खुशबू, आऽईऽऽ...." अतिउत्तेजित वैशाली इसके आगे कुछ और नही कह पाती, चीखते हुए अपने दोनो से वह सचमुच किसी पागल भांति अपने बालों को नोंचने लगती है।

"क्या माँ ...खुशबू क्या?" अपनी माँ के ताउम्र रहे स्वच्छ मुंह से अपने लंड की इतनी अधिक अश्लील प्रशंसा सुनकर तत्काल अभिमन्यु भी उद्विग्न स्वर मे पूछता है, अपनी माँ के हाथों से उसके केश छुड़वाकर उसने उसके तमताते चेहरे को अपनी मजबूत हथेलियों से बलपूर्वक थाम लिया था।

"मैं तुम्हारा लंड नही चूस सकती, तुम ...तुम जबरदस्ती इसे अपनी माँ के मुंह मे ठूंस दो मन्यु और फिर जितना चाहो उतना मेरे गंदे मुंह को चोदो बेटा मगर मैं ...." एक बार पुनः वैशाली बोलते-बोलते रूक गई, उसके अंतर्मन मे रह-रह कर यह विस्फोटक प्रश्न उठ रहा था कि क्या अब वह एक ऐसी नीच माँ बन जाएगी जो अपने ही सगे जवान बेटे का लंड चूसा करती है और इसी विशेष उल्लाहना से दुखी वह नंगी अधेड़ माँ चाहकर भी स्वयं अपने बेटे के अत्यंत सुंदर व विशाल लंड को अपने छोटे--से मुंह की गहराई मे नही उतार पा रही थी, अपने बेटे को अपने मुखमैथुन की परिपक्व कला से आनंदित नही करवा पा रही थी, बेटे के गाढ़े सुगंधित वीर्य को चखने का साहस नही जुटा पा रही थी, बेटे की इस पापी मांग को जरा भी स्वीकार नही कर पा रही थी।

"जबरदस्ती और तुम्हारे साथ ...हाँ जबरदस्ती तो मैं जरूर करूंगा मगर मेरी वह जबरदस्ती तुमसे अपना लंड चुसवाने की नही सिर्फ तुम्हारी चूत को चाटने की होगी, उसे जी भरकर चूसने की होगी माँ" मुस्कुराकर ऐसा कहते हुए अभिमन्यु ने उस तात्कालिक घटनाक्रम को एक नई दिशा प्रदान कर दी। वह वैशाली को दोबारा बिस्तर पर गिरा देता है, अंतर महज इतनी था कि कुछ वक्त पीछे उसने हँसते-हँसते उसे बिस्तर पर पटक दिया था अब उसे हल्का का धकेलने भर से उसका काम पहले से भी अधिक आसान बन गया था।

"मत ...मत मन्यु, तुम्हारे आने से पहले तुम्हारे पापा ...." वैशाली अपने कथन को पूरा कर पाती, अभिमन्यु ने फौरन उसके बोलते मुंह पर अपनी दाईं हथेली को दबा दिया।

"श्श्श् मॉम! कुछ मत कहो, मुझे सब पता है और मैं उनसे कन्फर्म भी कर चुका हूँ की वह कबतक घर लौटेंगे" उसने बताया और साथ ही बिस्तर पर नंगी लेटी अपनी माँ की जुड़ी टांगों को विपरीत दिशा मे चौडा़ते हुए अतिशीघ्र वह उनके बीच पसर जाता है।

"कबतक लौटेंगे? तुम्हें ...तुम्हें कैसे पता चला कि ...आईऽऽ मन्यु! मान जाऽऽ" एकाएक वैशाली की कामुक सीत्कार से उसका अपना बेडरूम गूंज उठता है क्योंकि उसके प्रश्न की समाप्ति से पहले ही उसके बेटे ने उसकी रस उगलती चूत के रोंएदार आपस मे चिपके दोनो सूजे होंठों पर एकसाथ अपनी गीली व खुरदुरी चपटी जीभ को पूरी लंबाई मे रगड़ दिया था।

"वह सीधे शाम को आएंगे और माँ और तुम्हारी रज बहुत गाढ़ी, बहुत ...बहुत स्वादिष्ट है" अपनी बात पूरी करने के लिए क्षणमात्र को वैशाली के भभकते चूतमुख से अपनी जीभ हाटाने के उपरान्त अभिमन्यु पुनः उसे अपनी माँ की अत्यंत मादक, सुगंधित चूत की गीली पर्त पर रगड़ना शुरू कर देता है। निश्चित अपनी माँ का ध्यान बांटने के उद्देश्य से ही उसने अपने पिता से संबंधित जानकारी को अबतक उससे छुपाकर रखा था ताकि सही समय पर वह अपनी माँ को यथासंभव चौंका सके और जिसके परिणामस्वरूप उसका अपना बेटा होने के बावजूद भी वह उसके शरीर के सबसे वर्जित अंग, उसकी चूत से अपना मुंह बिना किसी अवरोध के सटा देने मे पूर्णरूप से सफल चुका था।


"उल्प्प्!" इसी बीच वह क्षण भी आया जिसकी अभिमन्यु जैसे अपरिपक्व जवान मर्द को कोई उम्मीद नही थी मगर वैशाली जैसी परिपक्व स्त्री को यकीनन इसी क्षण का इंतजार था। हुआ कुछ यह कि जबतक अभिमन्यु अपनी माँ की चूत के चिपके चीरे के ऊपर-ऊपर अपनी गीली जीभ फेरता रहा तबतक उसके आनंद, उसके अखंड रोमांच की कोई सीमा नही थी मगर ज्यों ही उसकी लपलपाती जीभ ने उसकी धधकती चूत के भीतर प्रवेश किया। उसकी माँ की चूत भीतर की घनघोर तपन, भरपूर चिकनापन, लिसलिसाहट, कसैला स्वाद, फड़फड़ाता अंदरूनी जीवंत मांस व एक ऐसी अजीब--सी गंध जिसमे उसकी माँ की गाढ़ी रज, उसके पसीने और उसके मूत्र का मिश्रण शामिल था; उसे एकाएक अकबकाई भर उठी थी और इससे पहले कि उसकी माँ को उसके जी मचला जाने के संबंध मे कुछ भी पता चल सके, वह दृढ़ता से प्रयत्न करता है कि वह उसके चूतमुख से अपना मुंह ना हटाए परंतु चाहकर भी वह पुनः अपनी जीभ को वैशाली की चूत के रस उगलते वर्जित छिद्र के भीतर ठेलने मे सक्षम नही हो पाता।

"चलो अब उठ जाओ, तुमने कोशिश की मुझे अच्छा लगा" अब चौंकने की बारी अभिमन्यु की थी और चौंकने से कहीं अधिक उसे अपनी माँ के कथन को सुनकर दुख पहुँचा था।

"तुम्हारी चूत को चाटूंगा, जी भरकर तुम्हारी गाढी़ रज पियूंगा माँ" सुबह से दर्जनों बार अपनी माँ से कहे उसके यह खोखले शब्द तत्काल उसे कुंठा से भर देते हैं, शर्मशार वह अपनी आँखें तक मूंद लेने पर विवश हो जाता है।

"होता है मन्यु, सबके साथ ऐसा होता है। औरत हो या मर्द, एक-दूसरे के गुप्तांगों को पहली बार अपने मुंह से सुख पहुँचाने मे घिन आती ही आती है। शर्मिंदा मत हो, मुझे तुमसे कोई शिकायत नही" वैशाली प्रेमपूर्वक अपने बेटे को समझाते हुए बोली। सहसा उसे उस बीते वक्त की याद आ गई थी जब पहली बार उसने अपने पति के लंड को अपने मुंह के भीतर ठूंसा था, हालांकि वह कोई जबरदस्ती भरा कृत्य नही था बल्कि हर पतिव्रता की भांति वह भी मणिक को यौन सुख के अखंड आनंद से परिचित करवाने का अनूठा प्रयत्न कर रही थी। अभिमन्यु को महज एक अकबकाई आई थी मगर इसके विपरीत वैशाली को तत्काल उल्टियां होनी शुरू हो गई थीं, अब इसे मणिक के प्रति उसका नैसर्गिक प्रेम ही कहा जाएगा की कुछ दिनों पश्चात उसने अपने अनूठे प्रयत्न को पुनः दोहराया और तबतक दोहराती रही थी जबतक कि वह बिना किसी घृणा के उसके लंड को परिपक्व होकर चूसना नही सीख गई थी।

"बाल ...बाल मुंह मे आ गए थे मॉम, झांटे बहुत बड़ी हैं ना तुम्हारी" अभिमन्यु हकलाते हुए बोला, वह बड़े जतन से मुस्कुराने का भी अभिनय करता है मगर उसकी हकलाहट उसकी फीकी मुस्कान का भेद छुपाने मे सफा नाकाम थी। बस अपने अश्लील झूठ से उसने अपनी माँ को लज्जा से अवश्य भर दिया था और जो बिस्तर पर उसके संग स्वयं भी पूर्णरूप से नंगी होकर लेटी अपने चेहरे की सुर्खियत के कारण उसके बेटे को किसी काल्पनिक काम सुंदरी सामान नजर आने लगी थी, जिसके अतुलनीय कामुक सौंदर्य का कोई मोल नही था, कोई तोड़ नही था, कोई विकल्प नही था।

"इक्स्पिरीअन्स नही मेरे पास ओरल सेक्स का मम्मी। तुम तो मुझसे बड़ी हो ...मेरी माँ हो, तुम मुझे गाइड क्यों नही करती?" शैतानीपूर्वक अपने पिछले कथन मे जोड़ वह वैशाली की दोनो पिण्डलियों को बारी-बारी थामकर उन्हें ऊपर उठाने के पश्चात उसके घुटने सीधे उसके कंधों पर दबा देता है। स्त्री मुखमैथुन व उसकी घनघोर चुदाई करने का सर्वोत्तम आसन जिसे उस जवान नवयुवक ने अनगिनती नीली फिल्मों मे देखा था, जिसमे औरत का गुप्तांग अधिकाधिक उभरकर स्पष्ट उसके प्रेमी को नजर आने लगता है।

"बेशर्म! अब क्या एक माँ खुद अपने बेटे को उसकी चूत चाटने या उसे चूसने का गाईडेन्स देगी?" अभिमन्यु की निकृष्ट मांग और उसकी शारीरिक हरकत से अत्यंत रोमांचित होते हुए वैशाली ने उल्टे उसीसे सवाल किया, उस माँ की कामुत्तेजना जैसे अकस्मात् दूनी बढ़ गई थी जब वह महसूस करती है कि उसके सगे बेटे को उसकी रस उगलती चूत के अलावा अब सिकुडन से भरा, कंपकपाता उसका कुंवारा गुदाद्वार भी प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा होगा।

"क्यों इसमे क्या बुराई है?" अभिमन्यु ने अपनी फट पड़ी आँखों को अपनी माँ के बेहद कुलबुलाते गहरे भूरे रंगत के गांड के छेद से सटाते हुए पूछा, जिसके चहुं ओर भी उसकी घनी काली झांटों का अखंड साम्राज्य मौजूद था। कुछ पसीने और कुछ उसकी माँ की चूत से बहे उसके गाढ़े कामरस से उसकी गांड की दरार पूरी तरह गीली व चिपचिपी नजर आ रही थी और उसके मलद्वार से उठने वाली तीखी गंध ने तो एकाएक पुनः अभिमन्यु को अपनी सांस रोक देने पर विवश कर दिया था।

"बुराई-वुराई मैं कुछ नही जानती और अब उठो फटाफट वर्ना तुम्हारा फिर से जी मचला जाएगा और मैं नही चाहती की तुम्हारी तबियत पर इसका कोई बुरा असर पडे़" कहकर वैशाली अपने कंधों से पार निकली अपनी टांगों को अभिमन्यु की हथेलियों से मुक्त करवाने का प्रयत्न करती है मगर तभी अपने बेटे के अगले विध्वंशक कथन और उसकी विस्फोटक हरकत से उस माँ के कान क्षणभर को शून्य मे परिवर्तित हो गए। उसके पेट मे अचानक असहाय मरोड़ उठने लगी, पूरा नग्न बदन एकसाथ ऐंठ गया, चूत झड़ने को पहुँच गई और संग-संग अति-संवेदनशील उसकी गांड का छेद भी अविश्वसनीय संसनाहट से भर उठा।

"हम्फ्! हम्फ्! देखो माँ, मैं तुम्हारी गांड के छेद को सूंघ रहा हूँ, और मुझे घिन नही आ रही। हम्फ्! बिलकुल भी नही आ रही"

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अभिमन्यु की अतिउत्तेजित मगर अनैतिक हरकत देख और उसके पापी कथन को सुन वैशाली के अंदर की ममता विकृत वासना मे परिवर्तित होते देर ना लगी। उसकी रक्तरंजित आंखों मे झांकते हुए उसका जवान बेटा उसके बदन का सबसे गुप्त व वर्जित अंग उसकी गांड के कुंवारे छेद को गहरी-गहरी सांसें लेते हुए सूंघ रहा था। अपने जिस गंदे मलद्वार का जीवनपर्यंत उपयोग उस माँ ने सिर्फ मल-त्याग करने के लिए किया था, अपने बेटे की नाक के दोनो फूलते-पिचकते नथुओं को उसके बेहद समीप देख वैशाली का ममतामयी अंतर्मन पुनः चीख-पुकार मचाने लगता है।

"म ...मत मन्यु, उन्घ! गंदी ...गंदी जगह है वह" वह अपने जबड़े भींचते हुए हकलाई।

"हम्फ्! माँ तुम्हारे बदन का कोई भी अंग गंदा नही। हाँ मुझे घिन आ रही है मगर तुम्हारा शिटहोल इतना ज्यादा इरॉटिक है कि मैं चाहकर भी इसकी गंध को सूंघने से खुद को रोक नही पा रहा हूँ ...हम्फ्। हम्फ्। अपनी मम्मी की गांड का छेद देख हूँ, जिसने मुझे पैदा किया अपनी उस सगी मॉम का एसहोल ...उफ्फ्फ्! नशा चढ़ रहा है मुझ पर ...हम्फ्। हम्फ्।" लगभग चीखते स्वर में ऐसा कहते हुए अभिमन्यु आखिरकार अपनी नाक की नुकीली नोंक वैशाली के अनछुए गुदाद्वार से रगड़ने लगा। अपने हाहाकारी कथन के समर्थन मे उसकी नाक के फूले नथुए स्वतः ही उसकी माँ के सिकुड़न से भरे मलद्वार की गहरी महरून रंगत की गोलाई पर मानो चिपक से जाते हैं, छेद के आसपास उगी उसकी माँ की काली झाटों पर पनपी पसीने की बूंदों को भी उसके छेद की मादक गंध के साथ अपने भीतर समाने लगते हैं।

"आऽऽईऽऽऽऽ! मन्यु मा ...मान जाओ, वहाँ मत ...मत बेटा" सिसयाते हुए वैशाली छाती के पार निकली अपनी दोनों टांगों को यथासंभव पुनः सीधा करने का प्रयत्न करती है मगर बेटे के नीचे दबी होने के कारण उसके दर्जनों प्रयत्न भी पूरी तरह से विफल साबित होते हैं। उसकी गांड के छेद की कुलबुलाहट तब पहले से भी अधिक कष्टकारी मोड़ ले लेती है जब अभिमन्यु की लौटती गर्म साँसें उसके मलद्वार को एकाएक झुलसाना आरम्भ कर देती हैं, इस विस्फोटक विचार से की अब उसके संस्कारी व पवित्र शरीर का ऐसा कोई अंग नही बचा जिसे उसके इकलौते जवान बेटे ने नग्न ना देखा हो अपने बेडरूम के बिस्तर पर छटपटाती वह नंगी माँ अत्यधिक उत्तेजना के प्रभाव से जैसे बेहोशी की कगार पर पहुँच जाती है। अपनी अधेड़ उम्र तक अपने बदन के जिस अन्य सबसे अधिक संवेदनशील कामांग को सदैव तिरस्कृत होना महसूस करती आई वैशाली वर्तमान मे अपनी गांड के छेद से होती असहनीय छेड़छाड़ को कैसे बरदाश्त कर पाती जबकि उसके मलद्वार को जबरन छेड़ने वाला शख्स कोई और नहीं उसका अपना जवान खून था।

"अच्छा ...अच्छा ठीक है, नही सूंघता तुम्हारे शिटहोल को पर एक बात जरूर कहूंगा माँ की तुम्हारा पति चुदाई के मामले मे एकदम चूतिया है ...हम्फ्!" एक अंतिम बार अपनी माँ की गांड के छेद को तन्मयता से सूंघने के उपरान्त वह वैशाली की कष्टप्रद फड़फड़ाती आँखों मे झांकते हुए बोला, उत्तेजना के साथ-साथ अखंड रोमांचवश अब अभिमन्यु की घिन भी काफी हद तक समाप्ति की ओर अग्रसर हो चली थी।

"बेशर्म कहीं के ...वह बाप है तुम्हारा। एक औरत के मुंह पर उसके पति का मज़ाक उड़ाने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुयी?" अपने बेटे के नीच कथन को सुन वैशाली तत्काल क्रोध से तिलमिलाते हुए बोली।

"ह ...हा! बेशर्म तो मैं हूँ मम्मी पर उससे भी ज्यादा कमीना हूँ। मैंने तुम्हें बताया था की मैं तुम्हें चोदना नही चाहता लेकिन चोदम-पट्टी के अलावा मेरी कई फैन्टेसी हैं, तो अब अपनी गांड ...मेरा मतलब है अपने कान खोलकर सुनो की मैं कितना बड़ा बेशर्म ...मेरा मतलब की कमीना हूँ" अपनी माँ के क्रोध के जवाब में अभिमन्यु ने ठहाका लगाकर हँसते हुए कहा, अब वह उस तात्कालिक क्षण को इतना अधिक उत्तेजक बना देने को उत्सुक था कि उसकी माँ इन क्षणों को ताउम्र कभी भूल न सके, वह कमरे के गरमा-गर्म वातावरण को ज्वलनशीलता के उच्चतम शिखर पर पहुंचाने का फैसला कर चुका था।

"न ...नही मन्यु, मुझे और कुछ नही जानना। खाने का समय हो चुका है, तुम्हें भी भूख लगी होगी" वैशाली एकाएक भयभीत होते हुए बोली, वह खुदपर आशंकित थी की बहककर एक माँ से औरत बनने के उपरान्त अब बेटे के समक्ष कहीं वह किसी रंडी, छिनाल, कुलटा सामान बर्ताव ना करने लग जाए।

"मेरा खाना तो मेरे नीचे दबा पड़ा है, सोच रहा हूँ माँ की आज एक जैनी से मांसाहारी बन ही जाऊं" वह दोबारा अपना वैशाली की विपरीत दिशा में खुली टांगों के मध्य झुकाते हुए कहता है।

"तुम्हारे निप्पल चूस चुका, होंठ चख लिए, तुम्हारी चूत चाटकर उसका भी थोड़ा-बहुत स्वाद ले चुका हूँ मम्मी मगर कुछ तो कमी है ...अम्म् हाँ! तुम्हारी गांड का छेद नही चूमा मैंने, नाचीज़ को इजाज़त हो तो क्या तुम्हारे एसहोल की एक किस्सी ले लूँ? छोटू सी किस्सी?" अपने पिछले कथन में जोड़ते हुए अभिमन्यु ने व्यंगात्मक ढंग से पूछा और बिना अपनी माँ के जवाब का इंतजार किए अपने होंठों को गोलाकार आकृति मे ढाल वह उन्हें हौले-हौले उसके मलद्वार के समीप ले जाने लगा।

"उई! नही मन्यु ...उई! रुक ...रुक जाओ। उफ्फ्! पागल लड़के ...मत करो ना" वैशाली तब लगातार बिस्तर पर अपनी गांड उछालते हुए चिल्ला उठती है जब उसका बेटा अपने होंठ उसकी गांड के छेद से सटा देने का भ्रम पैदा करते हुए हरबार उन्हें पीछे खींच लेता है।

"लंड नही घुसेड़ रहा तुम्हारी गांड मे जो तुम इतने नखरे चोद रही हो, सिर्फ चुम्मा लेना है माँ तुम्हारी क्यूट सी पोंद के छेद का। बोलो लूँ किस्सी की सीधा जीभ ही घुसा दूँ अंदर? फिर मत कहना कि मैंने तुम्हारे साथ कोई जबरदस्ती की है" हँसकर कहते हुए अभिमन्यु वास्तविकता मे अपनी जिह्वा को अपने सिकुड़े होंठों से बाहर निकाल देता है और ज्योंही उसकी जीभ की नुकीली नोंक को वैशाली ने अपने मलद्वार का लक्ष्य साधते देखा, मजबूरन वह माँ चीखते हुए अपने बेटे की अनैतिक इच्छा को अपनी स्वीकृति प्रदान कर बैठी।

"चूम लो मन्यु पर अंदर जीभ मत घुसाना। मेरे ...मेरे अलावा आजतक किसी और ने उस जगह को कभी छुआ तक नहीं है, मैं सहन नही कर सकूंगी बेटा ...बहुत गंदी जगह है वह" वैशाली कंपकपाते स्वर मे चीखी, उसकी चीख को पल मे और गहरा करते हुए अभिमन्यु ने तीव्रता से अपनी जीभ होंठों के भीतर कर उन्हें बिना किसी अतरिक्त झिझक के सीधे अपनी माँ की गांड के कुंवारे छेद से कठोरतापूर्वक चिपका दिया। अपनी जिह्वा को मुंह से बाहर निकालने का कारण उसका वैशाली को भयभीत करना कतई नही था बल्कि वह अपने खुश्क होंठों को अपनी लार से तर-बतर करना चाहता था ताकि उसकी माँ को उसके चुम्बन का हरसंभव स्पर्श महसूस हो सके, यह भी एहसास हो सके की उसकी गांड जोकि उसके बदन का सबसे कामुक अंग है, अब और तिरस्कृत नही रहेगा।

"ह्म्म्! ब ..बस उफ्फ्फ्!" अपने जवान बेटे के गीले होंठों के शीत स्पर्श को अपने फड़फड़ाते मलद्वार पर कसता महसूस कर एकाएक वैशाली की आँखें नाटिया गयीं और वह फ़ौरन उसकी दोनों जाँघों को बलपूर्वक थामे अभिमन्यु के हाथों की कलाई को स्वयं ताकत से जकड़ लेती है। उसका पेट तेजी से फूलने-पिचकने लगा, जिह्वा मुंह के बाहर लटक आयी, उसकी चूत के भीतर का स्पन्दन क्षणमात्र मे इतना प्रचंड हो उठता है कि उसका कामोन्माद अतिशीघ्र चरम पर पहुँच गया।

"उन्घ्! बस मन्यु ...मर जाऊंगी ओह!" सिसकते हुए उस माँ की गर्दन भी अपने आप बिस्तर से ऊपर उठ जाती है, उसके बेटे के होंठ मानो किसी जहरीली जोंक की भांति उसके अत्यन्त संवेदनशील गुदाद्वार से बुरी तरह चिपक चुके थे और इसमे भी शायद अभिमन्यु को संतोष नहीं था क्योंकि वह अपने होंठों की कड़कता से अपनी माँ की गांड के छेड़ की अतिमुलायम सिकुड़न से भरी त्वचा को जबरन अपने मुंह के भीतर खींचने का प्रयत्नशील हो चला था, यकीनन अपनी माँ को जताना चाहता था कि अब उसे वाकई अपनी जन्मदात्री के बदन के किसी भी अंग को अपने मुंह से लगाने में जरा-सी भी अकबकाई नही आ रही, कोई घिन महसूस नही हो रही।

"पुच्च्च्ऽऽ!" एक लंबी पुचकार ध्वनि के साथ ही अभिमन्यु ने अपने होंठों को अपनी माँ की गांड के छेद से पीछे खींच लिया और उसके ऐसा करते ही अविलंब आह लेती हुयी वैशाली की गर्दन पुनः बिस्तर पर गिर पड़ी।

"मुझे झड़ना है मन्यु ...आई! मुझे झड़ा दो" तत्काल वैशाली
का रुदन स्वर अभिमन्यु के कानों को थरथरा जाता है, वह स्खलन के समीप पहुँचते-पहुँचते भी स्खलित नही हो पाई थी।

"अभी नही माँ, अभी वक्त है। अभी तो हमें बहुत सी बातें करनी हैं, गंदी-गंदी बातें। इतनी गंदी की तुम आज बिना किसी सहारे के झड़ोगी, वादा करता हूँ अपने आप झड़ोगी और इतना झड़ोगी कि तुम्हारी बरसों की चुदास आज बिना चुदे ही शांत हो जायेगी। आज मैं तुम्हें वह सुख दूंगा जो तुम ताउम्र अपने पति से चुदकर भी कभी ले पायीं जबकि जिसकी तुम हमेशा से हकदार थीं" दृढ़ विश्वास से भरे स्वर मे ऐसा कहकर अभिमन्यु अपनी माँ की जाँघों को अपने हाथों की पकड़ से मुक्त कर बिना किसी रुकावट के उसके नंगे बदन पर पूरी लंबाई में पसारने लगता है। वैशाली की टांगों की जड़ पूर्व से खुली होने के कारण उसके बेटे का खड़ा विशाल लंड उसकी चूत की सूजी फांकों के समानांतर उनके बीचों-बीच धंस गया, उसके वीर्य से भरे टट्टे उसकी माँ के गुदाद्वार को थपथपाने लगे। दोनों की नाभि आपस में सट गयीं, बेटे की बलिष्ठ छाती के दबाव ने उसकी माँ के गोल-मटोल फूले मम्मों को पिचकाकर रख दिया। जबड़ों से जबड़े मिल गए, होंठों से होंठ, नाक से नाक चिपक गयी और साथ ही माथे से माथा टकराने लगा।

"उम्मम्! तुम्हारी जवानी तो जैसे अब खिली है मम्मी, बहुत चुदासी हो तुम ...वैसे तुम बूढ़ी कब होगी?" किसी अत्यन्त रोमांचित नाग की भांति अपनी माँ रुपी नागिन के छरहरे नग्न बदन से लिपटते ही अभिमन्यु आहें भरते हुए बुदबुदाया।

"बूढ़ी ...बूढ़ी ही तो हूँ मन्यु। इश्श्! मैं अब जवान नही रही" वैशाली ने ज्योंही अपना कथन पूरा किया, अभिमन्यु उसकी रस उगलती चूत के चिकने होंठों पर अपने कठोर लंड के बारम्बार लंबे-लंबे घर्षण देने लगता है।

"नही मन्यु ...तुमने वादा किया था, तुम अपनी माँ को चोदना नही चाहते। उफ्फ्! मत ...अंदर मत उफ्फ्फ्फ्फ्!" वैशाली छटपटाते हुए सिसकी, आगामी भविष्य के विचार मात्र से उसकी कामपिपासा पैश्विक होते देर ना लगी।

"क्या करूं मॉम, वादा तोड़ना तो नही चाहता मगर मजबूरन तोड़ना पड़ेगा मुझे क्योंकि तुम भी तो अपना वादा तोड़ने वाली हो। आह! चोद लेने दो मुझे अपनी माँ को, मुझे भर देने दो अपना गाढ़ा वीर्य मुझे पैदा करने वाली ...मेरी सगी माँ की चूत मे" अभिमन्यु अपने भालेनुमा दैत्य सुपाड़े से वैशाली के कुनमुनाते भंगुर को छीलते हुए बोला, साथ ही वह अपनी माँ के सिर को बिस्तर से ऊपर उठाकर उसके रेशमी मुलायम बालों के भीतर अपना संपूर्ण चेहरा घुसा देता है। उसकी कमर शीघ्र-अतिशीघ्र उसकी माँ के निचले नंगे धड़ पर स्वतः ही रगड़ खाने लगी थी, उसके गोल मांसल मम्मों को उसके बेटे की कठोर छाती ने पूर्णरूप से चपटा कर दिया था इतना चपटा की उसकी माँ के ऐंठे निप्पल उल्टे स्वयं उसीके मम्मों के मांस के भीतर दब गए थे।

"क ...कैसा वादा मन्यु, मैंने तुमसे कौन सा वादा किया जो तोड़ने वाली हूँ? इश्श्श्! अगर धोखे से भी तुम्हारा लंड मेरी चूत के अंदर घुसा मैं ...मैं रंडी कहलाऊंगी मेरे लाल, एक कुलटा बन जाऊंगी जो अपने ही सगे बेटे से चुदवाती है" वैशाली ने तड़पते हुए कहा मगर फौरन अचरज से भर उठी जब पाया कि उसकी अपनी कमर भी अपने-आप उसके बेटे की कमर से ताल मिलाते हुए जाने कब बिस्तर पर उछलने लगी थी, उसकी हथेलियां बेटे के सिर को थाम चुकी थीं और तो और बिना उस माँ के करे-धरे उसकी टांगें तक अभिमन्यु की जाँघों पर कठोरतापूर्वक कस चुकी थीं, मानो उसका उत्तेजित बदन ने उसके ममतामयी हृदय और सुलझे मस्तिष्क से पूरी तरह नाता तोड़ दिया था।

"चुदोगी तो तुम पक्का माँ, खैर कुछ देर पहले तुमने कहा था कि अब से तुम अपने बेटे ...यानी मेरे सामने हमेशा नंगी ही रहना चाहती हो। तो बताओ शाम को क्या करोगी जब तुम्हारा पति घर लौट आएगा? तब भी निभा सकोगी अपने वादे को, अपने शब्दों को?" अभिमन्यु ने विध्वंशक विस्फोट करते हुए पूछा।


"वह ...वह तो मैंने ऐसे ही कह दिया था मन्यु, तुम्हारे पापा के सामने मैं कैसे..." वैशाली बेटे के अश्लील प्रश्न के जवाब में बस मिमियाकर रह जाती है। अभिमन्यु के पत्थर सामान कठोर लंड की अपनी संवेदनशील चूत के मुहाने पर रगड़, दोनों माँ-बेटे की घनी झांटों का आपसी घर्षण, उनके नग्न शरीर का एक-दूसरे से बुरी तरह गुत्थम-गुत्था होना उस माँ की शर्म को, उसकी आतंरिक लज्जा को तार-तार कर देने में पूर्णतयः सक्षम था।

"मैं आज तुम्हारे वार्डरॉब को ताला लगा देने वाला हूँ माँ, तुम अब से इस घर में नंगी रहोगी। ना ही तुम्हें ओढ़ने को चादर मिलेगी और ना ही बदन पोंछने को टॉवल मगर क्योंकि तुम मेरी माँ हो इसलिए चाहो तो अपने गहने पहन सकती हो ...हाँ! तुम्हें सैंडिल पहनने की भी छूट है, तुम भी क्या याद रखोगी किस दिलदार से पाला पड़ा है" अभिमन्यु अपनी माँ के खुले केशों से अपना चेहरा बाहर निकालते हुए बोला तत्पश्चयात सीधे उसकी नाक को अपने होंठों से चूमने लगता है।

"मम्मी चाटूँ तुम्हारी नाक को, जैसे जानवर एक-दूसरे से अपना प्यार दिखाते हैं" अपने पिछले कथन मे जोड़ वह बिना इजाज़त के वैशाली की नाक की ऊपरी सतह को अपनी गीली जीभ से चाटने लगा, जल्द ही उसकी जीभ की नोंक उसकी माँ के दोनों फूले नाथुओं के भीतर घुसने का विफल प्रयत्न शुरू कर चुकी थी।

"उइईई माँ! मुझे नही पता था कि तुम इतने गंदे निकलोगे मन्यु ही ...ही, छी:! कहाँ जीभ घुसा रहे हो तुम्हें पता भी है" बेटे की बचकानी हरकत से गुदगुदी महसूस कर अचानक से वैशाली हँसते हुए कहती है।

"नमक है तुम्हारी नाक के अंदर माँ, काश कि मैं अंदर तक इसे चाट पाता। खैर तुम्हारा पसीना भी गजब है, पता है वियाग्रा का काम कर रहा है मुझपर, लग रहा है तुम्हारा पूरा शरीर ही चाट डालूं। उफ्फ्! तुम्हारे इन मुलायम रोमों को चूसूं, इनपर पनपे पसीने की हर बूँद को अपने गले से नीचे उतार लूँ" अभिमन्यु के शब्द उसके अखंड उन्माद के सफल परिचायक थे। वैशाली प्रत्यक्ष देख रही थी कि उसके गौरवर्णी पुत्र का सम्पूर्ण चेहरा लहू सामान झक्क लाल हो गया था, उसका शारीरिक कंपन और शरीर की गरमाहट तो मानो उस माँ को जबरन विचारमग्न हो जाने पर विवश करने लगी थी।

"अपनी माँ के पसीने से उत्तेजित हो रहे हो ना तुम? लो चाहो तो मेरी बगलें चाट सकते हो, हर किसी के शरीर का सबसे अधिक पसीना उसकी काँख मे ही इकठ्ठा होता है। एक कतरा भी मत छोड़ना मन्यु, साफ कर दो अपनी माँ की काँखें। चाट लो इनके अंदर उगे सारे रोमों को, हम्म्म्! उतार लो सारा पसीना अपने गले के नीचे" एकाएक वैशाली के भीतर भी उबाल आ गया, वह जबरदस्ती अभिमन्यु के सिर को अपनी बायीं काँख के ऊपर दबाते हुए चिल्लाई।

"हे ...हे! आ ...आराम से हे ...हे! हे ...हे! आईईऽऽ पागल काटो ...काटो मत हे ...हे!" वैशाली के नीच कथन और उसकी अनुमति ने अभिमन्यु को जैसे सचमुच पागल बना डाला, वह तत्काल अपनी माँ की बायीं काँख पर टूट पड़ता है। पहले-पहल उसने काँख के चहुंओर चूमा, फिर अपनी जीभ को उसकी पूरी काँख के भीतर लपलपाते हुए वहाँ की कोमल त्वचा को रोमों सहित जोश-खरोश से चाटना शुरू कर देता है। उसकी उत्तेजना इस बात का प्रमाण थी की जल्द ही वह बेकाबू होकर अपनी माँ की काँख के भीतर अपने नुकीले दाँत गड़ाने लगा था, उसके नर्म रोमों को अपने दांतों की पकड़ से खींचने लगा था, उन्हें उखाड़ तक देने को उत्सुक हो चला था। वैशाली की हंसी, उसकी कामुक सिसियाहट, उसकी पीड़ा, उसकी अनय-विनय उस जवान मर्द के उत्साह को दूना कर रही थीं। अबतक उस नए-नवेले मर्द ने सिर्फ चुदाई का आनंद उठाया था, वह भी कुछेक बाजारू रंडियों के साथ मगर वर्तमान मे पहली बार वह महसूस कर रहा था कि सिर्फ चूत मार लेना सच्चा सुख नही, बल्कि सहवास जितना लंबा और गंदा होगा उतना ही आनंद पहुँचाता है।

"बस बहुत हुआ मन्यु, अब उठो फटाफट" ज्योंही अभिमन्यु ने अपना चेहरा अपनी माँ की बायीं काँख से बाहर निकाला वह बिस्तर से उठने की कोशिश करते हुए बोली।

"पहले मेरी फैंटेसी सुन लो मम्मी, पापा शाम को आएंगे और तबतक मुझे तुम्हें पूरी तरह से तैयार करना है। आखिर तुम जैसा गदराया माल कोई चूतिया ही होगा जो तुम्हें अपने नीचे लाने के बाद बिना कुछ किए छोड़ देगा" जवाब मे अभिमन्यु ने पुनः अपनी माँ को अपने शरीर के नीचे दबाते हुए कहा।

"तैयार? नही मन्यु ...तुम्हारे पापा के लौट आने के बाद मैं कुछ भी गलत-शालत नही करने वाली" वैशाली अपने निचले होंठ को दांतों के मध्य भींचते हुए एलान करती है।

"तुम क्या मॉम, तुम्हारे फ़रिश्ते भी अब वही करेंगे जो तुम्हारा बेटा चाहेगा। सबसे पहले आज से इस घर के अंदर तुम नंगी ही रहोगी, चाहे घर मे मैं मौजूद रहूँ या तुम्हारा पति और या फिर हम दोनों ही मौजूद रहें" पलटवार मे अभिमन्यु भी एलान करता है।

"अब तुम्हारा दिनभर का रूटीन सुनो। सुबह नहा-धोकर सीधा तुम मेरे कमरे मे आओगी और वह भी बिना अपना गीला बदन पोंछे, एकदम नंगी। समझी मम्मी, रोज सुबह तुम्हें ऐसा ही करना होगा" उसने शैतानी मुस्कान के साथ अपने पिछले कथन मे जोड़ा।

"ऐसा कुछ नही होगा मन्यु, तु ...तुम्हारा दिमाग खराब तो नही हो गया ना" वैशाली की घबराहट उसके शब्दों की कपकपाहट से बयान हो रही थी।

"होगा मम्मी, जरूर होगा। अब आगे सुनो, मेरे कमरे मे आने के बाद तुम मुझे अपने गीले बालों, अपने गीले नंगे बदन की मदद से नींद से जगाने की कोशिश करोगी। तुम अपने गीले बदन को मेरे नंगे शरीर पर रगड़ोगी, अपने गीले बालों से निचुड़ती पानी की बूंदों को मेरे चेहरे पर टपकाओगी, मुझे प्यार से पुचकारोगी, पुकारोगी मगर मैं नही उठूँगा और पता है माँ इसके बाद तुम क्या किया करोगी?" अभिमन्यु ने अपनी माँ की आश्चर्य से फट पड़ी कजरारी आँखों मे झांकते हुए पूछा, उसके चेहरे की शैतानी मुस्कराहट ज्यों की त्यों जारी थी।

"मुझे नही पता और मुझे जानना भी नही है मन्यु, ऐसा कुछ नही होगा ...कभी नही होगा" वैशाली अपनी आँखों को दूसरी दिशा मे मोड़ने का प्रयास करते हुए बोली, वह नही चाहती थी कि उसके अनुमानित भय के अंशमात्र का संकेत भी उसके बेटे को पता चल सके।

"नही पता तो पूछ लो मॉम क्योंकि कल से तुम्हें वाकई वही सब करना होगा जो मैंने तुम्हारे डेली रूटीन के लिए तय किया है" अभिमन्यु अपने चेहरे को एक बार फिर अपनी माँ के चेहरे पर झुकाते हुए कहता है ताकि वैशाली की आँखों का टूटा जुड़ाव पुनः उसकी आँखों से हो सके और ऐसा हुआ भी, अनजाने डर से घबराई उसकी माँ दोबारा उसकी आँखों में झाँकने लगी थी।

"पूछो जल्दी वरना मेरी कमर के रुके झटके फिर से चालू हो जाएंगे और फिर मुझे दोष मत देना की मैंने जानबूचकर तुम्हें चोद दिया" अपने कथन की सत्यता को प्रदर्शित करते हुए अभिमन्यु सचमुच अपनी कमर को हौले-हौले झटकने लगता है और यहीं वैशाली का साहस जवाब दे गया।

"बोलो मुझे आगे क्या करना होगा?" प्रश्न पूछते ही वैशाली की आँखें डबडबा जाती हैं मगर उस माँ के अनुमान मुताबिक उसके बेटे की वासना पर शायद उसकी नम आँखों का अब कोई प्रभाव पड़ना शेष ना था।

"ह्म्म! यह सही सवाल किया ना तुमने। तो हाँ! जब मैं नींद से बाहर नही आऊंगा तब तुम मेरे बिस्तर पर चढ़ोगी और अपने घुटने मोड़कर सीधे मेरे चेहरे के ऊपर बैठ जाओगी। तुम मेरे लंड को अपने दोनों हाथों से हिलाते हुए मेरे होंठों पर अपनी चूत रगड़ना शुरू करोगी और साथ ही तब तुम्हारी गांड का छेद बिलकुल मेरी नाक से चिपका होगा। पता है मॉम इसके बाद क्या होगा?" अभिमन्यु के इस प्रश्न के जवाब में वैशाली ने मूक इशारा करते हुए फौरन अपनी पलकें झपका दीं।

"तुम्हारा पति तुम्हें कई आवाजें देगा मगर तुम उसे कोई जवाब नही दे सकोगी क्योंकि तबतक तुम भी मेरे लंड को चूसने भिड़ चुकी होगी और इसीके साथ तुम्हारा पति शोर मचाते हुए कमरे के अंदर आ जाएगा। उसे ऑफिस जाने मे देर हो रही होगी, वह तुमपर चिल्लाएगा लेकिन तुम उसकी नही सुनोगी, जीवन भर से तो सुनती चली आ रही हो। ठीक उसी वक्त मैं भी जाग जाऊंगा और तुम्हारी गुदाज गांड को थप्पड़ लगाकर तुम्हारे एसहोल को सूंघते हुए तुम्हारी चूत चूसने लगूंगा, उसे अपनी जीभ से चाटने लगूंगा, जीभ से चोदने लगूंगा और हम तुम्हारे पति ...यानी कि मेरे पापा के सामने ही एक-दूसरे के मुँह के अंदर झड़ने लगेंगे। हमें कोई शर्म नही होगी कि कमरे के अंदर हमारे अलावा भी कोई और मौजूद है, तुम मेरा गाढ़ा वीर्य पीने लगोगी और मैं तुम्हारी स्वादिष्ट रज को अपने गले के नीचे उतरने लगूंगा" बोलते-बोलते एकाएक अभिमन्यु को भी समझ नही आया कि बिना सोचे-विचारे उसने यह क्या अनर्थ कह दिया मगर तत्काल वह यह भी महसूस करता है कि स्वयं की मनघड़ंत कल्पना से उसके लंड की कठोरता जैसे कई गुना बढ़ गयी है, उसके टट्टों मे अविश्वसनीय उबाल आ गया है।

"उफ्फ्फ्! तुम्हारे पाप हम दोनों को मार नही देंगे भला?" वैशाली ने लंबी आह भरते हुए पूछा, अकस्मात् उसे भी ठीक वैसी ही कामोत्तेजना का एहसास हुआ जैसी उसके बेटे ने महसूस की थी। अपने सगे जवान बेटे के साथ रंगरेलियां मनाते हुए पकड़े जाने का रोमांच क्या होता है यह रोमांच वह कुछ वक्त पीछे झेल चुकी थी और अब तो अभिमन्यु ने उसे अपनी झूठी कल्पना के जरिए सचमुच उसके पति द्वारा पकड़वा दिया था, यह वाकई उस नारी, पत्नी व एक माँ के लिए अखंड रोमांच की पराकाष्ठा थी।

"उनसे कुछ ना हो पाएगा माँ। वह तुम्हारी जवानी का भार नही उठा पा रहे, तुम्हारी प्यास बुझाना अब उनके बस मे नही रहा। नामर्द हो गया है तुम्हारा पति, अब मुझे ही तुम्हें तृप्त करना होगा। एक तरह से अब तुम मुझे ही अपना पति मान लो, रात-दिन चोद-चोदकर मैं तुम्हारी जीवन भर की प्यास मिटा दूंगा" अब अभिमन्यु नही बोल रहा था, वासना उसके सर पर नंगी नाच रही थी।

"धत्त! वह नामर्द नही हैं" कहते हुए वैशाली के चेहरे पर चौड़ी मुस्कान छा गई, जिसे देख अभिमन्यु का दिल प्रसन्नता से झूम उठा। जहाँ एक स्त्री को अत्यन्त-तुरंत उसके पति की उपेक्षा, उसका प्रत्यक्ष अपमान करने वाले का मुंह नोंच लेना चाहिए था वहीं वैशाली के मुखमंडल पर सहसा मुस्कराहट छा जाना उसके कौटुम्बिक व्यभिचार पर पूर्णतयः अपनी मोहर लगा देने समान था।

"रोज सुबह नाश्ते की टेबल पर ठीक तुम्हारे पति की कुर्सी के पास खड़े होकर मैं तुम्हारी भरपूर चुदाई किया करूंगा माँ, तुम टेबल पर नंगी लेटी हुई अपनी कामुक सिसकियों से मुझे उकसाया करोगी और मैं तुम्हारे पति की शर्मिंदा आँखों मे झांकते हुए तुम्हारी चूत के भीतर ऐसे करारे धक्के मारा करूंगा, जिससे पूरी टेबल हिल जाया करेगी। ओह! मम्मी कितना मजा आएगा जब तुम बेशर्मों की तरह चीख-चीखकर अपने बेटे का नाम लेते हुए, अपने पति की आँखों के सामने झड़ा करोगी और ...और मैं भी उसी वक्त तुम्हारी चूत की गहराइयों मे अपना वीर्य उड़ेल दिया करूंगा" कहकर अभिमन्यु अपनी दायीं हथेली की मदद से अपने कठोर लंड का बेहद सूजा सुपाड़ा अपनी माँ की चूत के रस उगलते होंठों के ठीक बीचों-बीच तेजी से रगड़ने लगता है, उसे पक्का यकीन हो चला था कि अब उसकी माँ ताउम्र उसके बस मे रहने वाली थी।

"मजा आएगा ना मम्मी, जब तुम रोज अपने नामर्द पति के सामने अपने बेटे से चुदवाया करोगी। बोलो मम्मी मजा आएगा ना तुम्हें" उसने अपने सुपाड़े के घर्षण को तीव्र करते हुए पिछले कथन मे जोड़ा।

"हाँ मन्यु मजा ...नही! नही! उन्घ्! कोई मजा नही। उफ्फ्फ्! मान जाओ" वैशाली को पुनः अपना चरम महसूस हुआ और वह फौरन अपनी चूत को अपने बेटे के लंड पर ठोकने लगती है, इस विचार से कि यदि वह अब नही झड़ पाई तो कहीं पागल ना हो जाए। यह ख्याल ही बहुत उत्तेजक था कि वह वास्तविकता मे अपने पति की उपस्थिति में अपने बेटे से चुदवा रही है और उसे इस नीच, पापी कार्य को करने में जरा सी भी शर्म महसूस नही हो रही।


"सोचो माँ कितना मजा आएगा जब तुम घर आए मेहमानों के स्वागत के लिए नंगी ही घर का दरवाज़ा खोला करोगी। उन्हें नंगी ही चाय-नाश्ता करवाओगी, अपने मम्मों को घड़ी-घड़ी उछाला करोगी, जानबूचकर अपनी चूत को खुजाया करोगी, उनके सामने ठुमक-ठुमक कर चला करोगी। हम हर मेहमान को तुम्हारा नंगा मुजरा भी दिखवाया करेंगे, हम अनुभा ...अनुभा को भी इसमे शामिल करेंगे, तुम्हारा दामाद भी मौजूद होगा। तुम माँ-बेटी के छिनालपन की हम प्रतियोगिता रखेंगे" अभिमन्यु बोलता ही जाता अगर उसकी माँ की चीखों से पूरा बैडरूम नही गूँज गया होता।

"रंडी ...रंडी बनाना है ना अपनी माँ को, उन्घ्! अपनी बहन को भी इसमे शामिल करना है। ओह! फिर चो ...चोदो मुझे, चोदो अपनी माँ को ...आईईऽऽ! चोदो मुझे उफ्फ्फ्! और बन जाओ मादरऽऽचोदऽऽऽऽ" वैशाली की आँखों से झर-झर आँसू बह निकले, उसका गला चीखते-चीखते रुंध गया।

"पता तो चले सभी रिश्तेदारों को की तुम माँ-बेटी कितनी बड़ी छिनाल हो। यह संस्कार, मान-मर्यादा तो एक ढोंग है ...सच तो यह है माँ की तुम मर्दों से क्या, जानवरों तक से चुदवा लो। कोठे पर बेच देना चाहिए तुम रंडी माँ-बेटी को और तुम्हारे जिस्म की कमाई से ही हमारे घर का चूल्हा जलना चाहिए। तुम्हें पड़ोसियों, दुकानदारों, दूधवाले, सब्जीवाले, रद्दीवाले, पपेरवाले, धोबी ...यहाँ तक कि अपने बेटे-भाई के दोस्तों तक से चुदना चाहिए और हम बाप-बेटे तुम्हारी चुदाई को देखकर मुट्ठ मारेंगे" इसबार भी खलल पड़ा और अभिमन्यु पुनः बोलते-बोलते रुक गया मगर इसबार का खलल वैशाली की चीख के साथ उसके थप्पड़ भी थे जो वह पूरी ताकत से अपने बेटे के गालों पर अपने दोनों हाथों से जड़ती जा रही थी।

"बेशर्म! तू पैदा होते ही मर क्यों नही गया हरामजादे। तेरे प्यार की वजह से तेरी माँ होकर भी मैं तेरे नीचे नंगी दबी पड़ी हूँ और तू है जो मुझे, मेरी बेटी और मेरे पति को गाली पर गाली दिए जा रहा है, हमें अपमानित कर रहा है। थू है तुझपर थूऽऽ!" रोते हुए अपने कथन को पूरा कर सत्यता मे वैशाली ने बेटे के मुँह पर थूक दिया और बिस्तर से उठने का प्रयत्न करने लगी मगर वह हिल भी ना सकी क्योंकि अभिमन्यु के लंड का घर्षण अब इतने वेग से उसकी चूतमुख पर होने लगा था कि वह उठते-उठते अपने आप दोबारा बिस्तर पर गिर पड़ी थी।

"अब तो झड़ जाओ माँ, आखिर किस मिट्टी की बनी हो तुम" यहाँ अभिमन्यु का टोकना हुआ और वहाँ वैशाली की गर्दन अकड़ जाती है।

"आईऽऽ! हट ...हट जाओ मेरे ऊपर से, उफ्फ्! लानत है तुम जैसे बेटे पर। मैं आई मन्युऽऽ ...मैं आई" जोरदार स्खलन को पाते हुए वैशाली की गांड के छेद और उसके निप्पलों मे भी सनसनाहट की तीक्ष्ण लहर दौड़ जाती है।

"झड़ो माँ खुल कर झड़ो, इसीलिए मैंने खुद को कमीना कहा था। मैं तुम्हारा बेटा हूँ कोई दल्ला नही जो दूसरों के सामने अपने घर की अमानत को परोसने में सुख महसूस करते हैं, काट कर ना फेंक दूँ जो तुमपर या अनुभा पर गलत नजर रखते हों। मैं पापा से भी उतना ही प्यार करता हूँ जितना की तुम और अनुभा करते हो मगर आज तुम्हें खुलकर झड़वाने की कोशिश में शायद मैं ही पापी बन गया, अपनी माँ की नजरों मे गिर गया। वाकई लानत है मुझपर जो मैंने तुम्हारे और अनुभा के बारे मे इतना गलत सोचा, माफ करना माँ मैं जो करना चाहता था वह कर ना सका, सब उलटा-पुलटा हो गया" कहकर अभिमन्यु अपनी माँ को उसके स्खलन के बीचों-बीच छोड़ उसके नग्न बदन से करवट लेते हुए बिस्तर से नीचे उतरने लगा मगर इससे पहले की उसके कदम फर्श को छू भी पाते वैशाली उसकी दायीं कोहनी को बलपूर्वक थाम लेती है।

"सजा ...सजा सुने बैगर तुम कहीं नही जा सकते मन्यु, उफ्फ्फ्! यह ड्रामा भी तुम्हें अभी करना था। देख तो लो कि तुम्हारी माँ किसी तरह झड़ती है, उन्घ्! करीब से देखो तुम्हारी माँ ने कितनी ज्यादा रज उगली है" झड़ते हुए भी वैशाली के मुंह से शब्दों का लगातार बाहर आना अभिमन्यु के आश्चर्य का केंद्रबिंदु बन गया और ना चाहते हुए भी उसकी आँखें उसकी माँ की तीव्रता से रस उगलती चूत से चिपकी रह जाती हैं। उसकी माँ के पंजे ऐंठ गए थे, कमर स्वतः ही बिस्तर पर उछल रही थी, जाँघों का मांस ठोस हो गया था, बाएं हाथ की मुट्ठी भिंच चुकी थी।

"तुमसे नाराज नही हूँ मन्यु पर मैं वाकई डर गयी थी" स्खलन समाप्ति पर एकाएक वैशाली की जोरदार रुलाई फूट पड़ी, अभिमन्यु भी जान रहा था कि उसकी माँ को उसके इस बेतुके, बेवक़्त स्खलन का कोई विशेष आनंद नही पहुँच सका था और इसी विचार से अपना सिर खुजलाते हुए वह पुनः अपनी माँ के समीप लौट आता है।

"तुम रोती हो तो मेरा दिल जलने लगता है माँ। तुम डरा मत करो, मेरे रहते कोई भेन का लौड़ा तुम्हें चोट नही पहुंचा सकता ...तुम यह अच्छे से जानती हो" ढाढ़स बंधाते हुए अभिमन्यु पुनः अपनी माँ के ऊपर पूर्व की भांति पसर जाता है।

"तुम ही डराते हो और कहते हो यह कर दूँगा ...वह कर दूँगा आज मेरा मन खट्टा हो गया मन्यु" वैशाली प्रेमपूर्वक बेटे के गालों पर अपनी नाजुक उंगलियां फेरते हुए बोली, उसके थप्पड़ों ने सचमुच अभिमन्यु के गालों को सुर्खियत प्रदान कर दी थी।

"क्या कहा, तुम्हारा खट्टा खाने का मन है मगर हमने तो अभी चुदाई की शुरुआत की ही नही। सच-सच बताओ माँ, किसका पाप है यह" अभिमन्यु का अपनी माँ को हँसाना एकबार फिर से चालू हो गया।

"मारूंगी दोबारा से" वैशाली नाक सुड़कते हुए तुनकी।

"अरे वाह माँ! अब चाटूँ तुम्हारी नाक को, अब तो बह रही है" कहते हुए अभिमन्यु ने ज्योंही अपना चेहरा अपनी माँ के चेहरे पर झुकाया, वह अपने होंठों पर जीभ फेरने लगी। इशारा तगड़ा था और निमंत्रण स्वीकारने योग्य भी, पल भर में माँ बेटे दीर्घ कालीन चुम्बन में खो जाते हैं।

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वैशाली और अभिमन्यु घर के मुखिया के बिस्तर पर नग्न लेटे हुए एक-दूसरे को चूमने में जैसे खो से गए थे, उनके बीच माँ-बेटे होने का अत्यंतपवित्र रिश्ता भी वासना की तपिश मे मानो उन्होंने भुला सा दिया था। अपनी-अपनी हथेलियों से एक-दूसरे का सिर थामे, दोनों विपरीत लिंग के होंठों पर अपना भरपूर दावा ठोक रहे थे। जहाँ एक अधेड़ माँ की कोमल जिह्वा उसके सगे जवान बेटे के मुंह में निरंतर मिठास घोल रही थी वहीं बेटे के कठोर निचले होंठ को उसकी माँ अपने नुकीले दांतों के मध्य दबाकर उसकी कठोरता से युद्ध करने को उत्सुक हो चली थी।

"उम्म्! पुच्च्च्!" लगातार एक-दूसरे की सुगन्धित लार को सुड़कते हुए अपने गले से नीचे उतरने के प्रयास में दोनों माँ-बेटे की आँखों का जुड़ाव उनकी उत्तेजना को हरसंभव प्रगति प्रदान करने में सक्षम था और इसीके साथ वैशाली के मन-मस्तिष्क मे कुछ देर पहले उसके बेटे द्वारा कहे गए पापी व बेहद नीच शब्दों का भान पुनः होने लगा।

"तो तुम अपनी माँ के अलावा अपनी बहन पर भी अपनी गंदी नजर रखते हो?" अचानक वैशाली ने उनके बीच काफी देर से चल रहे प्रगाढ़ चुम्बन को तोड़ते हुए पूछा, अभिमन्यु के आश्चर्य को उसकी माँ के प्रश्न ने सहसा बढ़ा दिया था।

"इंसेस्ट, एम आई एल एफ, बी टी डब्ल्यू यह मेरी फेवरेट पॉर्न थीम रही हैं माँ। अनुभा के बारे मे तो छोड़ो, जब से हम एक-दूसरे के करीब आए हैं मैंने तो हमारे बारे मे भी कभी ऐसा नही सोचा था। कल्पना कभी सच नही होती और सच कभी काल्पनिक नही होता, खैर मुझे तो अब भी यहसब सपने सा लगता है" जवाब मे अभिमन्यु बिना किसी अतिरिक्त झिझक के बोला।

"फिर आज कैसे तुम्हारी जुबान पर अनुभा का नाम आ गया? मेरे साथ तो तुमने अपनी बहन और अपने पापा तक को गाली दे डाली। क्यों मन्यु? क्या मैं तुम्हारे कहे हर गंदे शब्द को सच समझूं क्योंकि तुम्हारे शब्द काल्पनिक नही थे, मेरे कानों मे वह अबतक गूँज रहे हैं" वैशाली का अगला प्रश्न उसके बेटे को पहले से कहीं अधिक शर्मसार कर देने वाला था, अभिमन्यु तत्काल समझ गया कि उसकी माँ को उसकी गलती का स्पष्टीकरण हर हाल में चाहिए और वह स्वयं भी चाहता था कि खुद को दोषमुक्त करने का मौका वह किसी भी सूरत मे ना छोड़े। आखिर चूक उसीसे हुई थी, तो अपनी उस चूक में सुधार भी उसे खुद ही करना था।

"कॅकॅल्ड, स्वॉपिंग, शेयरिंग, एक्सबिशन पॉर्न देखकर। नेट पर ऐसी थीम्स से संबंधित लाखों कहानियां भी मौजूद हैं" अभिमन्यु ने इसबार भी दृढ़ता से जवाब दिया।

"वाइफ स्वॉपिंग के बारे मे पता है मुझे, एक्सबिशन भी जानती हूँ पर यह कॅकॅल्ड क्या होता है? माँ और बहन की अदला-बदली भी होने लगी है क्या आजकल? और शेयरिंग से तुम्हारा मतलब?" वैशाली बेटे की नग्न पीठ पर अपनी दायीं हथेली फेरते हुए पूछती है, उसके सवालों से अभिमन्यु का जरा भी भयभीत ना होना उसे वैसे भी उसके निर्दोष होने का पुख्ता प्रमाण दे चुका था।

"हिजड़े हैं साले! अपने घर की औरतों को दूसरे मर्दों के सामने परोसकर, उनकी चुदाई देखते हुए मुट्ठ मारने मे ना जाने लोगों को क्या मजा मिलता है? वहाँ उनकी माँ, बहन, बेटी या बीवी दूसरे मर्दों से चुदवाते हुए जोरदार आहें भर रही होती हैं और यहाँ खुशी से अपना लंड हिलाया जाता है। कुछ लोगों को छुपछुपाकर ऐसा करने मे आनंद मिलता है तो कई सामने मौजूद रहकर इसका लुफ्त उठाते हैं" कहते-कहते अभिमन्यु तब अचानक से शांत हो जाता है जब अपनी माँ के दाएं हाथ की उंगलियों का कोमल स्पर्श बारी-बारी उसे अपनी गांड के दोनों पटों पर घूमता महसूस होता है।

"हम्म! मैं सुन रही हूँ आगे बोलो" बोलकर वैशाली अपने मुखमंडल पर कोई विशेष भाव लाए बिना ही अपनी नन्ही उंगलियों को अपने बेटे की गांड की कठोर मर्दानी त्वचा पर फिसलाती रहती है। कुंठास्वरूप कि अभिमन्यु ने उसे कैसे भी कर, सही-गलत जिस भी परिस्थिति का सामना किया हो मगर अपनी माँ को स्खलित करने मे सफल जरूर रहा था लेकिन वह अपने बेटे की तड़प को जरा--सा भी कम नही कर पाई थी। उसके बेटे का लंड अब भी पत्थर समान कड़क था, जो अपने तनाव की गवाही प्रत्यक्ष उसकी चूत के होंठों के बीच धंस कर दे रहा था।

"मैं देखना चाहता था, जानना चाहता था कि मेरी उन गंदी बातों का असर तुमपर होता है या नही क्योंकि मुझे तो लोगों की ऐसी चुतियापी मानसिकता से हमेशा नफरत रही है। ऐसे लोग या तो अपनी मर्जी से छक्का बन जाएं या समाज मे उन्हें खुद को गे घोषित कर देना चाहिए या फिर सबसे बढ़िया ऑप्शन यह है कि उन्हें सचमुच अपने घर की औरतों का दल्ला बन जाना चाहिए, कम से कम इसी बहाने मुफ्त मे उनके घर का चूल्हा भी जलता रहेगा और मनमुताबिक मुट्ठ मारने का सुख मिलेगा सो अलग" एकबार फिर अभिमन्यु बोलते-बोलते रुक गया, उसकी माँ की उंगलियां एकाएक उसकी गांड की पसीने से लथपथ दरार के भीतर जो प्रवेश कर गयीं थी।

"फिर क्या देखा तुमने? क्या जाना? क्या तुम्हारी माँ पर तुम्हारी गंदी बातों का कोई असर तुम्हें समझ आया?" पूछते हुए वैशाली अपने दाएं हाथ की उंगलियों को बेटे की गांड की दरार से बाहर निकाल लेती है, जाने अकस्मात् उस माँ को क्या ठरक चढ़ी कि वह अभिमन्यु की आँखों में झांकते हुए ही एक-एक कर अपनी उन्हीं उंगलियों को अपने होंठों के भीतर ठेल बेहद कामुकतापूर्वक चूसना शुरू कर देती है।

"उम्म्ऽऽ! पसीना तो तुम्हारा भी कम नशीला नही मन्यु, जब मेरी कांख के पसीने ने तुमपर वियाग्रा का काम किया था तो सोचो तुम्हारी गांड की दरार के अंदर की गंध को खुद में समेटे हुए पसीने में कितना ज्यादा नशा होगा। मैं जवानी भर से तुम्हारे पापा का लंड चूसती रही हूँ मगर किसी मर्द की गांड के छेद को कभी नही चाटा, तुमने अपनी माँ के एसहोल को किस्सी कर आज उसे एक नई सीख दी है" अश्लीलता की बीती सभी हदें पारकर वैशाली ने पिछले कथन में जोड़ा, वह अपनी दायीं सबसे बड़ी उंगली को चूसने में अधिक दमखम दिखा रही थी और ऐसा करते हुए उसके चेहरे पर वही चिरपरिचित शैतानी मुस्कान छा चुकी थी जिसे अकसर वह अपने बेटे के चेहरे पर छाते देखा करती थी।

"असर हुआ था ना, बिलकुल हुआ था माँ। यह लाल निशान यूं हीं नही मेरे गालों पर छप गये हैं" अभिमन्यु अपनी माँ की तात्कालिक नीच हरकतों पर गौर फरमाते हुए बोला।

"अब गलती करोगे तो पिटोगे ही। शुक्र करो लड़के कि सिर्फ गाल लाल हुए हैं, मेरा दिल मजबूत होता तो मार-मारकर तुम्हारी गांड भी लाल कर देती" वैशाली खिलखिलाते हुए बोली, तत्पश्चात अपनी उसी उंगली दोबारा चूसने लगती है। कुछ क्षणों तक माँ-बेटे एकटक एक-दूसरे की आँखों मे झांकते रहे, जहाँ वैशाली का बेशर्मी के साथ अपनी उंगली को चूसना लगातार जारी था वहीं अभिमन्यु अपनी माँ के सहसा बदले भावों का बारीकी से अवलोकन करने में व्यस्त हो चला था।

अपनी आँखों का जुड़ाव बेटे की आँखों से रखते हुए ही वैशाली अपनी उंगली को एक विशेष चिपचिपी ध्वनि के साथ अपने मुंह से बाहर खिंचती है और तत्काल उसका दाहिना हाथ पुनः अभिमन्यु की गांड की दिशा में आगे बढ़ जाता है। एकाएक अपनी माँ की थूक से तर उंगली को अपनी गांड की शुरूआती दरार के भीतर घुसता महसूस अभिमन्यु को सारा सार पलों में समझ आ गया। वैशाली की उंगली झांटों भरी दरार की चिकनी सतह पर फिसलती हुई सीधे उसके बेटे के कुलबुलाते मलद्वार पर आकर ठहर जाती है और तभी दोनों माँ-बेटे एकसाथ मुस्कुरा उठते हैं।

"यह तो आखिरी असर था माँ जिसने मुझे समझाया कि मेरी तरह तुम्हें भी वह चुतियापी थीम्स कुछ खासी पसंद नही आई थीं मगर उससे पहले मेरा हम-दोनों को पेला-पेली करते हुए तुम्हारे पति से रंगे हाथों पकड़वाना तुम्हें जरूर पसंद आया था। आया था ना माँ? तुम उसी वजह से अपने आप झड़ने लगी थी क्योंकि तुम्हारे पति की मौजूदगी मे हम-दोनों के चुदाई मिलाप की कल्पना को सुनकर तुम चुदासी नही, अचानक महाचुदासी बन गयी थी मम्मी। शुक्र तो अब तुम्हें मनाना चाहिए की मैंने खुद पर कंट्रोल बनाए रखा वर्ना तुम तो मुझे चोदने की इजाजत दे चुकी थी, अभी प्यासी चूत मे अपने जवान बेटे का लंड घुसवाने को तड़प उठी थी" इसबार अभिमन्यु बिना किसी रुकावट के अपना कथन पूरा करने मे सफल रहा था। अपने कथन में उसने अपने जिस कंट्रोल, जिस संयम का उदाहरण पेश किया था वह वास्तविकता मे वैशाली को आश्चर्य से भर देने को काफी था।

"हे ...हे ...हे! घुसेड़ो ना अपनी उंगली मेरी गांड के छेद मे, तुम रुक क्यों गई माँ? या फिर से तुम्हारी गांड फट गई? जैसे अपने पति के हाथों पकड़े जाने की कल्पना भर से फट गई थी" हँसते हुए अभिमन्यु ने पिछले कथन मे जोड़ा, वह तो वाकई उसकी मुँहचोदी की सत्यता का प्रभाव था जो वैशाली बल लगाकर भी उसके अतिसंवेदनशील मलद्वार को अपनी उंगली से भेद नही पाई थी, अपने नुकीले नाखून की सहायता से उसकी सिकुड़ी त्वचा को कुरेदने मात्र से उस माँ को संतोष करना पड़ा था।

"तुमने सही कहा मन्यु। कोई औरत अपना मुँह काला करे और अपने पति द्वारा रंगे हाथों पकड़ी जाए, उसकी गांड फटना नेचुरल है। मैं यह भी मानती हूँ की मेरे अचानक से झड़ जाने का कारण तुम्हारे मुँह से तुम्हारे पापा का जिक्र था मगर मैंने तुम्हें मुझे चोदने की इजाजद इसलिए दी थी क्योंकि दुनिया की कोई माँ इतनी हिम्मत वाली नही हो सकती, जिसके बेटे का कड़क लंड उसकी उत्तेजित चूत से लगातार रगड़ खा रहा हो और वह टूटकर बिखरने से खुद को रोक ले" वैशाली ने भी बेहद गंभीरतापूर्वक अपने पक्ष को पेश किया और अपनी उसी गंभीरता की आड़ मे कथन समाप्ति के उपरान्त वह अपनी उंगली लगभग आधी अभिमन्यु की गांड के छेद के भीतर जबरन घुसेड़ देती है।

"आईईऽऽ! पागल ...पागल हो क्या तुम? बताकर तो घुसानी चाहिए थी दुष्ट औरत, उफ्फ्फ्! दर्द नही होता क्या मुझे" अपनी माँ की शैतानी क्रिया को समझने मे नाकाम रहे अभिमन्यु दर्द से बिलखते हुए चीखा, अब ठहाका मारकर हँसने की बारी वैशाली की थी।

"वाह बच्चू! तुम करो तो चमत्कार और हम करें तो बलात्कार" हँसते हुए वैशाली ने पुनः जोर लगाया और इसबार उसकी थूक से सनी उंगली उसके बेटे की गांड के छेद का अंदरूनी छल्ला भी पारकर जाती है।

"ओह माँऽऽ!" पीड़ा से बेहाल अभिमन्यु दोबारा कराह उठा हालांकि उसकी माँ की उंगली उतनी मोटी नही थी जितने मे उसकी जान पर बन आती मगर उसके साथ यह पहली बार हुआ था जो किसी वस्तुविशेष ने उसके मलद्वार के भीतर प्रवेश किया था।

"तुमने भी जबरदस्ती अपनी माँ की पोंद के छेद को किस्सी किया था, तब तो बड़ा मजा आ रहा था" वैशाली बेटे के खुल चुके होंठों पर लघु चुम्बन अंकित करते हुए चहकी, उसके चेहरे पर छाई बचकानी हँसी से अभिमन्यु हतप्रभ हुए बगैर नही रह सका था। उसे अपनी माँ का प्रफुल्लित मुखमंडल इतना अधिक सुंदर दिखाई पड़ने लगा था कि वह तत्काल दर्दभरी झूठी आहें भरना शुरू कर देता है, इस विचार से कि कुछ वक्त और वह अपनी माँ के चेहरे को खुशनुमा होते देख सके।

"ओह! ओह! ओह! मैं ...मैं भी बदला लूँगा तुमसे मम्मी। याद रखना, उंगली से ज्यादा दर्द लंड देता है .. गांड का छेद फट जाता है, औरत हगने तक को तरस जाती है" अभिमन्यु धमकी के स्वर मे बोला। क्षणभर भी नही बीत पाया और वैशाली अपनी उंगली को झटके से बाहर खींच लेती है, उसके चेहरे की सुर्ख हँसी फक्क सफेदी में परिवर्तित हो चुकी थी।

"वहाँ नही मन्यु, वहाँ ...वहाँ नही करना" अनजाने भय की प्रचुरता से कांपते वैशाली के स्वर फूटे, अचानक अभिमन्यु को लगा जैसे वह फौरन दीवार पर अपना माथा ठोक ले।

"इतना क्यों डरती हो तुम कि मजाक और गुस्से मे अंतर भी नही कर पाती?" वह अपना दायां हाथ अपनी पीठ पर ले जाकर अपनी माँ के उसी हाथ को थामते हुए पूछता है जिसकी उंगली ने कुछ वक्त पीछे जबरन उसकी गांड के छेद को भेदा था।

"वहाँ बहुत दर्द होता है, तुम्हारे पापा ने..." वैशाली ने जवाब मे बोलना चाहा मगर अभिमन्यु के उसे बीच मे टोक देने से वह अपना कथन पूरा नही कर पाती।


"जनता हूँ, तुम्हारी गांड कुंवारी है मम्मी ...लेकिन पता है ऐसा क्यों है? चलो मैं ही बता देता हूँ। तुम्हारी चूत तो मुझे वर्जिन मिल नही सकती थी खास इसीलिए पापा ने तुम्हारी गांड को वर्जिन छोड़ दिया, वह हमेशा से चाहते थे कि बड़ा होकर मैं ही तुम्हारी गांड के छेद का उद्घाटन करूं और अगर तुम्हें मुझपर यकीन ना हो तो शाम को अपने पति से कन्फर्म कर लेना, तब तुम खुद अपने बेटे से अपनी गांड मरवाने के लिए बेचैन रहने लगोगी" अभिमन्यु पुनः दुष्ट हँसी हँसते हुए बोला और अपनी माँ के हाथ को उसके मुँह के समीप लाने लगता है।

"अब अपनी इसी उंगली को सूँघो, दोबारा से इसे चूसो माँ ...आखिर तुम्हें पता होना चाहिए एक जवान मर्द की गांड के छेद के अंदर की महक और स्वाद कैसा होता है? फिर मैं तो तुम्हारा अपना बेटा हूँ, शायद तुम्हें घिन ना आए" उसने अपने पिछले कथन मे जोड़ा। अपने बेटे के सर्वदा अनुचित शब्दों के सम्मोहनपाश मे बंधकर एकाएक वैशाली स्वयं को इस बुरी तरह उत्तेजित होना महसूस करती है कि वह माँ अपनी सारी लज्जा, सारी शर्म त्यागकर बिना किसी घृणा के अपनी मैली उंगली को प्रत्यक्ष बेटे की आँखों मे झांकते हुए बड़े उत्साह से सूंघने लगी।

"हम्फ्! तुम अपनी माँ से और क्या-क्या गंदे काम करवाना चाहते हो मन्यु? हम्फ्ऽऽ! अभी बता दो बेटा ...रोज पागल होने से अच्छा है, आज ही सारी कसर निकल जाए ...हम्फ्ऽऽ! हम्फ्ऽऽ!" कहकर वैशाली ने देर नही की और किसी चरित्रहीन कुलटा की भांति अपने बेटे की गुदागंध से सनी उंगली को सीधे अपने मुंह के भीतर घुसेड़ लेती है। उसके गहरे मूँगिया रंगत के भरे हुए होंठ सिकुड़कर स्वतः ही उसकी उंगली पर कस गए थे, जिनकी अत्यंत कोमल त्वचा से व्यभिचारिणी बनने को बेहद उत्सुक हो चली वह अधेड़ माँ बहुत ही कामुकतापूर्वक अपनी गंदी उंगली को हौले-हौले चूसना प्रारंभ कर चुकी थी।

"उम्मम्! तुम्हारी माँ मर्दानी महक और उसके स्वाद से एक लंबे अरसे से परिचित है मन्यु, क्योंकि मैं लंड चूसने मे एक्सपर्ट हूँ। लगभग हर चुदाई से पहले तुम्हारे पापा मुझसे अपना लंड जरूर चुसवाया करते थे, मेरे मुँह मे झड़ भी जाते। हालांकि मैं कभी उनका वीर्य अपने गले से नीचे नही उतार सकी मगर वीर्य की जो तीखी गंध मेरे मुँह के अंदर रह जाती, ना बता सकने वाला उसका अजीब--सा स्वाद जो मेरी जीभ, मेरे दांतों, मसूड़ों मे बसा रह जाता कुछ ऐसा ही स्वाद तुम्हारी गांड के छेद का है ...हाँ! उम्म्! महक वीर्य से ज्यादा तीखी और उत्तेजक है मगर ..." वैशाली बेशर्मों की भांति अपने और अपने पति के अत्यधिक गोपनीय सहवासी राज़ों को खोलती ही जाती अगर अभिमन्यु की आश्चर्य से फट पड़ी आँखों के साथ उसे हैरानीपूर्वक खुल चुका उसका मुँह भी दिखाई नही देता, उसने सहसा यह भी महसूस किया कि उसके भड़काऊ कथन और उनमे शामिल अश्लील शब्दों का सबसे ज्यादा असर उसके बेटे के लंड की कठोरता पर हुआ था, जो उसकी रसीली चूत के मुहाने पर अब भी धीरे-धीरे रगड़ खाए जा रहा था।

"मगर ...मगर क्या माँ? मगर क्या?" अभिमन्यु ने अकस्मात् बेकाबू हुई अपनी अनियंत्रित साँसों की परवाह किए बगैर पूछा। उसकी उत्सुकता, उसका परिवर्तित उन्माद उसकी कमर के धीमे झटकों को एकाएक रफ्तार प्रदान कर गया था।

"तुम अपनी माँ को चोदना नही चाहते फिर अचानक मेरी गांड मे इंटरेस्ट क्यों लेने लगे हो? चोदा तो दोनों को जाता है" अभिमन्यु के प्रश्न को नकार हड़बड़ी मे वैशाली अपना सवाल पूछ बैठी। वैसे प्रश्न तो उसका भी अत्यंत महत्वपूर्ण था, जिसके उत्तर प्राप्ति से दोनों माँ-बेटे के बीच पनपे अनाचार को सही पथ मिल जाना था, जिसपर साथ उन्हें एक अंतिम सफर तय करना शेष रह जाना था।

"चोदा चूत को जाता है माँ ...हाँ! मैं तुम्हें चोदना नही चाहता लेकिन गांड चोदी नही जाती, वह मारी या मरवाई जाती है। तो चुनना अब तुम्हें है मम्मी, मुझसे अपनी चूत चुदवाओगी या फिर अपनी गांड मरवानी है? तुम्हारे दोनों छेदों मे से एक को तो हलाल होगा ही होगा, आखिरी फैसला तुमपर है" अभिमन्यु ने बिना किसी झिझक अपना अनैतिक पक्ष प्रस्तुत कर दिया। उसके शब्दों में उसकी भरपूर जवानी, उसकी मर्दानगी, उसका लक्ष्य और सबसे मुख्य उसका खुदपर अटल विश्वास, वस्तुविशेष को पाने की लालसा व जिद, विनय नही बल्कि एक आज्ञारुपी मिश्रण सम्मिलित था।

"मेरी चूत तुम चोदना नही चाहते और तुमसे अपनी गांड मैं मरवा नही पाऊंगी, तो सबकुछ यहीं रद्द हुआ समझो" वैशाली के शब्दों में भी बेटे सामान एकदम वही दृढ़ भाव शामिल थे।

"एक सवाल और है मेरा, मुझे उसका सही जवाब हर हाल मे चाहिए मन्यु। तुमने बताया कि तुम्हें घर की औरतों को बाहरी मर्दों के सामने परोसने वाले लोगों से सख्त नफरत है, तो क्या घर के अंदर रिश्तों का कोई महत्व नही? तुम्हारी नजर मे हम जो कर रहे हैं, क्या यह सही है? तुम अनुभा के संग भी यही सब करना चाहते हो ना, जो हम माँ-बेटे होकर भी कर रहे हैं?" मौके की नज़ाकत को समझ वैशाली ने बेहद तार्किक प्रश्न पूछा, उसके इस प्रश्न का उत्तर तो वह स्वयं भी नही जानती थी। हालांकि उसे मालूम था कि वह और अभिमन्यु उनके पवित्र रिश्ते की मर्यादा को तोड़कर काफी आगे बढ़ चुके हैं, अब उनका चाहकर भी पीछे लौट पाना मुमकिन नही रहा था, सिर्फ एक छोटी सी निर्णायक सहमति और दोनों के तन का मिलन निश्चित था।

"तुमने भी तो कहा था कि आज के इंसान की यही सबसे बड़ी खूबी है, वह पाप की ओर पुण्य से ज्यादा आकर्षित होता है। वह सही-गलत मे फर्क जानता है, पहचानता है मगर चलता उसी राह पर है जो सरासर गलत है। मानो कल को मैं या पापा तुम्हें कोठे पर बिठा दें या घर के अंदर-बाहर तुम्हें परिचित-अपरिचितों के सामने परोस दें, ज्यादा बदनामी किसकी होगी? चोदने वाले की या चुदवाने वाले की? जाहिर सी बात है, चुदवाने वाले की। घर-परिवार के सदस्यों में अगर गलत रिश्ते बनते भी हैं तो उनके खुलासे घर की चारदीवारी के बाहर नही होते, मामले अपनों के बीच ही सुलझाये जा सकते हैं। मेरे मन में कभी ना तो तुम्हारे बारे में गलत विचार रहे और ना ही अनुभा के बारे में, गलती हम दोनों की है माँ। हम पीछे लौट सकते हैं, वक्त है हमारे पास और आपसी प्यार की इतनी ताकत मौजूद है कि आगे हम कपड़ों मे भी अपने रिश्ते को जीवनभर निभा सकेंगे मगर तुम्हीं सोचो मॉम क्या तुम इस वर्तमान समय से कभी अपना पीछा छुड़ा पाओगी? मुझे कपड़ों मे देखकर क्या तुम मेरे नंगे शरीर को भुला पाओगी? क्या यह उत्तेजक पल तुम्हारे जेहन से जा सकेंगे कि तुम्हारा सगा खून होकर भी कभी मैंने तुम्हारी नंगी चूत पर अपना खड़ा लंड रगड़ा था? क्या कभी याद नही करोगी कि तुम अपने बेटे के सामने पूरी तरह से नंगी रहने का प्रण कर चुकी थी? मेरा भी ठीक यही हाल होगा माँ, मैं भी इन पलों को कभी नही भुला सकूंगा" अभिमन्यु साँस लेने को ठहरा तो अपनी माँ को बहुत ही मायूस पाता है। जाहिर था कि उसके मुँह से निकला हर शब्द उसके दिल से होकर गुज़रा था और जो किसी नुकीले तीर समान सीधे उसकी माँ के दिल को भेद गया था, माँ-बेटे के वह दिल जो वाकई कभी दो हुआ करते थे लेकिन परिस्थिति ने आज उन्हें एक में तब्दील कर दिया था।

"पापा को हमारे बारे मे पता चल सकता है और नही भी मगर वह हमारा नुकसान नही कर पाएंगे। उन्हें तुमसे आज भी उतना ही प्यार है जितना पहले था, मुझे भी वह चाहकर खुद से अलग नही कर सकेंगे क्योंकि जान हूँ मैं उनकी। हाँ! उनकी नाराज़गी कबतक रहेगी कुछ कहा नही जा सकता लेकिन नाराज़गी खत्म होते ही घर का माहौल कुछ और होगा मम्मी, फिर हम दोनों मिलकर तुम्हें बजाया करेंगे। वैसे भी औरत ऑडियो कैसेट की तरह होती है, दोनों तरफ से बजाई जाती है। रोज तुम्हारा सैंडविच बनेगा, जिसे खाने के लिए हम बाप-बेटे हमेशा भूखे रहेंगे और तुम्हारी भूख, प्यास, तड़प, चुदास सब जैसे कभी तुमतक फटका भी नही करेगी। एक जरूरी बात और मम्मी तुम्हारी उस कमीनी दोस्त मिसिज मेहता को मैं किसी भी सूरत मे नही छोड़ने वाला, तुम चाहो या ना चाहो वह तो मुझसे पक्का चुदेगी ...मेरा वादा है तुमसे" कहकर अभिमन्यु अपने दांतों को आपस में घिसने लगा, एकाएक उसके चेहरे पर क्रोधित भाव उमड़ने लगे थे।

"ऐसा शायद ही हो पाए मन्यु कि तुम्हारे पापा हम-दोनों को माफ कर सकें पर मैं यह भी सोच रही हूँ कि उन्हें हमारे बारे मे पता कैसे चलेगा? मैं बताऊंगी नही और तुम्हारी गांड सिर्फ दिखावे की है। खुश मत को इतना, सबकुछ अभी भी रद्द ही समझो और रही बात सुधा की तो तुम उसके आस-पास भी नही फटकोगे वर्ना मुझसे बुरा कोई नही होगा समझे। अब हटो मेरे ऊपर से, घंटेभर से ज्यादा हो गया तुम्हारा भार सहते-सहते" वैशाली का चेहरा कुछ क्षणों पहले उसके बेटे की गंभीर बातों को सुन मायूस होकर लटक गया था, अब उसकी मायूसी लगभग छट चुकी थी।

"नही मम्मी, अभी नही ...पापा तो शाम को लौटेंगे, कुछ देर और मुझे तुम्हारे नंगे बदन से चिपके रहना है। तुम्हें पता नही कि तुमने मुझपर कैसा जादू कर दिया है, अब तो एक पल को भी मैं तुमसे जुदा नही रह पाऊंगा। तुमने ऐसा क्यों किया ...मेरी माँ होकर भी तुम मुझसे एक औरत की तरह प्यार क्यों करने लगीं? क्यों तुम्हारी चूत तुम्हारे अपने बेटे के बारे मे सोचकर झरने-सी बहने लगती है? क्यों तुम्हारे ममतामयी निप्पल औरतरूपी निप्पलों समान ऐंठ जाते हैं? क्यों तुम्हारी गांड का छेद कुलबुलाने लगता है? आखिर क्यों तुम इतनी चुदासी हो जाती हो माँ कि तुम्हारी ताउम्र शर्म, मर्यादा, संस्कार ...तुम्हारे कपड़ों की तरह ही तुम्हारे अपने खून के आगे खुद-ब-खुद नंगे हो जाते हैं? आखिर क्यों?" उद्विग्न स्वर मे ऐसे विस्फोटक प्रश्न पूछते हुए अचानक अभिमन्यु वैशाली से बुरी तरह लिपट जाता है। उस नए-नवेले मर्द की बलिष्ठ बाहें उसकी माँ की अत्यंत चिकनी पीठ पर बलपूर्वक कस गई थीं, उसने अपना सुर्ख तमतमाया चेहरा अपनी माँ की नग्न छाती के बीचों-बीच धांस दिया था। अपने निचले धड़ को वह उत्तेजित मर्द पागलों की भाँति अपनी माँ के निचले नंगे धड़ पर रगड़ने लगा था, अपनी माँ की स्पंदनशील चूत के सूजे होंठों पर तीव्रता से अपने पत्थर समान कठोर लंड को घिसना शुरू कर चुका था, अपने लिसलिसे फूले सुपाड़े से बारम्बार अपनी माँ के फड़फड़ाते भांगुर को छीलते हुए वह आनंदमयी सीत्कारें भरने लगा था।

"क्योंकि ...क्योंकि मैं माँ हूँ तुम्हारी ...तुम्हें पैदा करने वाली, जन्म देनेवाली ...आहऽऽ मन्यु! तुम्हारी जन्मदात्री हूँ मैं" ममतास्वरूप चीखते हुए वैशाली को एहसास हुआ जैसे सहसा उसके स्तन पहले से अधिक भारी हो गए हों, लगातार तेजी से फूलते जा रहे हों। बीते दो दशकों का उनका खालीपन पुनः भराव की ओर अग्रसित हो चला हो जिनके ऊपर शुशोभित निप्पलों से अब किसी भी पल दोबारा ढूध का उत्सर्जन हो जाने वाला हो।

"हटो मन्यु ...उन्ह! मुझे जाने दो बेटा, बहुत ...बहुत प्यार कर लिया तुमने अपनी माँ से" कुछ भय, कुछ रोमांच और कुछ प्रेमरूपी भावों से सम्मिश्रण से गदगद वैशाली दोबारा चीखते हुए बोली।

"नही माँ नही, तुम कहीं मत जाओ ...मेरे पास रहो, उफ्फ्! एकबार फिर मुझे खुद मे समेट लो" अभिमन्यु की हाहाकारी सीत्कार ज्यों की त्यों बरकरार थी, बल्कि अब वह स्वयं ही खुद को अपनी माँ के भीतर पुनः समाने हेतु प्रचंड लालायित हो चुका था।

"वापस ...मैं वापस आऊंगी मन्यु, मुझसे ...मुझसे भी अब अपने बेटे से अलग होकर रहा नही जाएगा" वैशाली अनुरोध के स्वर मे बुदबुदाई।

"जब वापस आना ही है तो दूर क्यों जा रही हो माँ? मैं कहीं नही जाने दूंगा तुम्हें ...कहीं नही" अपने भावभीन स्वरों के साथ अभिमन्यु अपनी शारीरिक पकड़ भी अपनी माँ पर कसते हुए सिसियाया।

"मुझे सूसू आई है मन्यु, मैं वापस आऊंगी ना बेटा ...ओह! जल्दी वापस आ जाऊंगी" वैशाली दोबारा हौले से बुदबुदाई मगर अभिमन्यु मानो उसके नग्न बदन को छोड़ने के लिए कतई राजी नही था, बल्कि उसके थरथराते होंठों से बाहर निकले उसके अगले विध्वंशक शब्द वैशाली के मूत्रप्रवाह को अकस्मात् कष्टकारी पीड़ा मे बदल देते हैं।

"सूसू यहीं बिस्तर पर कर लो माँ, मुझे ...मुझे भी देखना है कि तुम्हारी सुदंर--सी चूत से मूत की धार कैसे बाहर निकलती है

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एक मर्यादित पति-पत्नी का सहवासी रिश्ता कहीं ना कहीं उनके शयनकक्ष तक ही सीमित माना जाता है, जिसकी चारदीवारी के अंदर का उनका संसार कैसा होता होगा? यह जानने का अधिकार शायद ही किसी अन्य को कभी रहा हो। मणिक और वैशाली ने ताउम्र अपने शयनकक्ष की गरिमा को बनाए रखा था मगर वर्तमान मे वासना का जो नंगा नाच वहाँ अपने पैर पसार चुका था, कौन कह सकता था कि अब भी उनके शयनकक्ष की वही गरिमा बरकरार थी या भविष्य में रहने वाली थी। पति-पत्नी के शयनकक्ष के बिस्तर पर आज पत्नी तो मौजूद थी लेकिन उसका पति नदारद था, पति के स्थान पर उसकी पत्नी के संग गुत्थम-गुत्था होने वाला शख्स कोई और नही उनके विवाहित जीवन का प्रेम उनका एकलौता जवान बेटा था, तो उनके शयनकक्ष की गरिमा आखिर बरकरार रहती भी कैसे?

माँ-बेटे पूर्णरूप से नंगे होकर एक-दूसरे के बदन की पापी तपन का भरपूर लुफ्त उठा रहे थे और इसी बीच वैशाली मूत्रउत्सर्जन की इच्छा से बिस्तर पर छटपटाने लगी थी, वह माँ विनयस्वरूप अभिमन्यु की मर्दाना पकड़ से खुद को मुक्त कर देने की गुहार लगाती है मगर उसका बेटा क्षणमात्र को भी अपनी माँ की जुदाई बरदाश्त करने को कतई तैयार नही होता बल्कि अश्लीलतापूर्वक उसे बिस्तर पर ही मूत देने के लिए मनाना आरंभ कर देता है, अपनी नीच मंशा के तहत कि अब वह अपनी जन्मदात्री की चूत से बहती उसकी मूत की धार को देखने हेतु बेहद लालायित हो चुका है।

"यहाँ ...यहाँ बिस्तर पर कैसे मन्यु? बिस्तर गीला हो जाएगा" वैशाली के कांपते स्वर फूटे। अपने बेटे के जिद्दी स्वभाव से अब वह काफी हदतक परिचित हो चली थी, अच्छे से जान चुकी थी कि अभिमन्यु के मन-मस्तिष्क मे एकबार कोई लालसा घर कर जाए तो उसके पूरे हो जाने तक उसका अपनी हार स्वीकारना असंभव था।

"तो क्या?" अपनी माँ के कथन को सुन अभिमन्यु तीव्रता से अपना चेहरा ऊपर उठाते हुए चहका।

"तुम्हें इस बात का डर है कि तुम्हारे मूतने से बिस्तर गीला हो जाएगा ...ओह! थैंक्यू ...थैंक्यू माँ" उसने बेहतरीन चूतियापे का परिचय देते हुए पिछले कथन मे जोड़ा।

"जाहिर है गीला तो होगा ही पर तुम इतना खुश क्यों हो रहे हो और अचानक यह थैंक्यू किस लिए?" बेटे की बेवकूफी भरी बात पर चौंकते हुए वैशाली ने पूछा।

"खुश! खुश दुनिया का कौन सा बेटा नही होगा माँ और मेरा थैंक्यू मेरी उसी खुशी को जाहिर करने का जरिया है क्योंकि तुम्हें इस बात की फिक्र नही की तुम अपने बेटे की खुली आँखों के सामने मूतोगी, बल्कि तुम्हें बिस्तर के गीले हो जाने की फिक्र ज्यादा है" अभिमन्यु दाँत निकालकर हँसते हुए बोला।

"तुम्हारी बेशर्मी का कोई अंत नही मन्यु, बातें घुमाकर दूसरों को उलझाने मे तुम माहिर हो। भूल जाओ कि अब से तुम्हारी माँ तुम्हारी बातों के जाल मे दोबारा कभी फँसेगी ...मैं तुम्हारे सामने सूसू नही करूँगी! नही करूँगी! नही करूँगी" बेटे की शैतानी हँसी के जवाब मे वैशाली ने तुनकते हुए कहा। उस अधेड़ माँ के लिए यह सोच ही कितनी अधिक उत्तेजक थी कि वास्तविकता मे वह किसी लज्जाहीन वैश्या की भांति अपनी नग्न टाँगें चौड़ाए जोरों से मूत रही है और उस प्रचण्ड रोमांचक दृश्यपर अपनी आँखें गड़ाए उसका अपना जवान बेटा उसकी चूत की सूजी फांखों से भलभलाकर बाहर आते पेशाब को गहरी-गहरी आहें भरते हुए देख रहा है।

"माँ! माँ! माँ! तुम बार-बार क्यों भूल जाती हो कि अबसे तुम क्या, तुम्हारे पुरखे भी वही करेंगे जैसा मैं चाहूँगा। चलो उठो फटाफट, अभी और इसी वक्त से तुम्हारी ट्रेनिंग शुरू हुई समझो" बेहद गर्वित स्वर मे ऐसा कहकर अभिमन्यु सतर्कतापूर्वक अपनी माँ के पसीने से लथपथ नग्न बदन के ऊपर से परे हटने लगा, सतर्कता बरतने का उसका कोई खास उद्देश्य तो नही था मगर भविष्य की आनंदित सोच उसे वैशाली पर किसी भी तरह की कोई ढ़ील ना देने का भरपूर संकेत कर रही थी। उसकी माँ कहीं उसकी पकड़ से छूटकर बिस्तर से नीचे ना उतर जाए, वह बलपूर्वक सीधे उसकी बायीं पिंडली को जकड़ लेता है।

"क्या तुम मुझे अपना गुलाम बनना चाहते हो?" तत्काल वैशाली अपने बेटे पर आशंकित निगाहें डालते हुए पूछती है, हालांकि अभिमन्यु की कथनी और करनी का अंतर वह बखूबी समझती थी परंतु हर बात के स्पष्टीकरण की अपनी पुरानी आदत के हाथों विवश थी।

"अपनी औरत को बस मे रखना कोई गलत बात नही" प्रत्युत्तर मे अभिमन्यु गंभीरतापूर्वक बोला।

" मैं! ...और तुम्हारी औरत?" अभिमन्यु के नीच कथन को सुन वैशाली ने लज्जित मुस्कान के साथ पूछा। उम्र के हिसाब से अपने बेटे की निपुणता, पविपक्वता का उस माँ के पास कोई उत्तर नही था और तो और उसके अत्यंत प्रभावी अश्लील वाचन की तो वह पूरी तरह से कायल चुकी थी।

"हाँ माँ! तुम मेरी ...सिर्फ मेरी औरत हो। अब सवाल चोदना छोड़कर अपनी इन छोटी-छोटी उंगलियों से अपना प्यारा--सा भोसड़ा खोलो और फटाक से अपने बेटे को मूतकर दिखाओ" अपनी अनुचित ज़िद पर टिके अभिमन्यु ने क्रोधित स्वर मे कहा। अपने पापी कथन मे शामिल अपनी माँ के कामुक बदन की अमर्यादित संज्ञा को वास्तविकता प्रदान करते हुए बारी-बारी वैशाली की दोनों हाथोलियों को चूमने के उपरान्त अतिशीघ्र वह अपने होंठ उसकी चूत के स्पंदनशील खौलते मुहाने से सटा देता है।

"आह्हऽऽ मऽऽन्युऽऽऽऽ! न ...नहीऽऽ" वैशाली की आनंदित सीत्कार से सहसा पूरा बेडरूम गूँज उठा।

"जल्दी मूतो माँ वर्ना तुम्हारी चूत पर काट लूँगा, चबा जाऊँगा इसकी दोनों फांकें ...फिर देना अपने पति को झूठा जवाब कि कीड़े ने काट खाया" कहकर अभिमन्यु सचमुच अपनी माँ की चूत की दायीं फांक अपने नुकीले दाँतों के मध्य फँसा लेता है पर चाहकर भी उसकी बेहद मुलायम त्वचा पर अपने दाँत नही गड़ा पाता। वैशाली की लंबी-लंबी कामुक सिसकारियां उसके कानों को अविश्वसनीय सुख का अनुभव करवा रही थीं परंतु अपनी माँ को मानसिक या शारीरिक कष्ट पहुंचाने मे वह पूर्ण विफल रहा था।

"तो तुम ऐसे नही मानोगी क्योंकि तुम जानती हो कि मैं तुम्हें चोटिल नही कर सकता मगर मेरे पास एक मस्त-फाडू आइडिया है माँ ...क्यों ना मैं तुम्हारे यहाँ जोर से दबाऊं, तुम्हारा मूत अपने आप छूट जाएगा, हा! हा! हा! हा!" दुष्ट हँसी हँसते हुए अभिमन्यु तत्काल अपनी माँ के फूले पेडू पर अपने दाएं अंगूठे से बारम्बार दबाव देने लगता है, अपनी मर्दाना बायीं हथेली में उसने बलपूर्वक वैशाली की नाजुक दोनों कलाईयाँ एक-साथ जकड़ रखी थीं।

"मत ...मत करो मन्यु, ओह! बिस्तर गीला हो जाएगा" छटपटाती वैशाली कांपते स्वर मे चीखी, अभिमन्यु के अंगूठे के तीव्र दबाव के प्रभाव से उसके पेडू केे भीतर एकत्रित मूत्र उसकी चूत से बाहर निकल जाने पर जल्द ही आमदा हो गया था।

"शूऽऽऽ! मूतो मम्मी मूतो ...तुम्हारी क्यूट--सी चूत से तुम्हारा सूसू बाहर निकले ना निकले मगर मैं जरूर झड़ जाऊँगा। बचपन मे तुम मुझे मुतवाती थीं, देखो जवान होकर आज मैं तुम्हें मुतवा रहा हूँ ...शूऽऽ! कर दो सूसू मम्मी, शर्माओ मत। तुम्हारे बेटे के अलावा तुम्हें कोई और नही देख रहा, मूत दो बिस्तर पर ही ...शूऽऽऽऽ!" अभिमन्यु सफा नंगपन पर उतारू होते हुए बोला, उसके अत्यंत प्रभावशाली मुखमंडल पर एक अवसरवादी मर्द होने के साक्ष्य उभर आये थे। उसकी वाणी से मिलनसार होते उसके बेहतरीन अभिनय को उपेक्षित कर पाना वैशाली के बस से कोसों दूर था, उसके कथन के भीतर छुपी उसकी निकृष्ट उत्सुकता, जिज्ञासा आदि के परिणामस्वरूप वह अधेड़ नंगी माँ खुद ब खुद टूटकर बिखर जाती है।

"मैं तैयार हूँ मन्यु। मूतूंगी ...तुम्हारी आँखों के सामने मूतूूंगी लेकिन यहाँ बिस्तर पर नही, बाथरूम मे" वैशाली का थरथराता स्वर उसके खोखले विरोध का सफल परिचायक था। नारी की तो सदैव से यही इच्छा रहती है कि उसका मर्द प्रेम, भय, क्रोध, आज्ञा किसी भी भाव का प्रयोग कर उसे सदा टूटने पर मजबूर करे, इसे नारी के संकोची या दुर्बल स्वभाव से नही आँका जाना चाहिए बल्कि इसमें उसके मर्द की, मर्दानगी, बलिष्ठता, उसके प्रति हरसंभव सम्मान की भावना निहित होती है।

"तुम्हारी इसी अदा का मैं दीवाना हूँ माँ। ना ना करते हुए भी आखिरकार तुम अपने बेटे के काबू मे आ ही जाती हो जैसे तुमने वाकई मान लिया हो कि अब से मैं ही तुम्हारा असली मर्द हूँ" अपनी माँ की स्वीकृति मिलते ही अभिमन्यु अपनी बाएं हथेली मे कैद उसकी दोनों कलाइयों को क्षणों मे मुक्त करते हुए चहका तत्पश्चयात फौरन उसकी दोनों पिंडलियाँ पकड़कर पीछे खिसकते हुए अपने साथ उसे भी बिस्तर के अंत तक खींच लाता है। वैशाली उसकी तीव्रता से अचानक आश्चर्य मे पड़ गई थी और जबतक उसे कुछ भी समझ आ पाता, उसके बेटे ने एकबार फिर उसकी दोनों टाँगों को ऊपर उठाते हुए बलपूर्वक उन्हें पुनः उसकी नग्न छाती से चिपका दिया था।

"यहाँ नही मन्यु ...बाथरूम ही ठीक रहेगा बेटा" असंतुष्ट वैशाली की विनय दोबारा गतिशील हो चुकी थी। अभिमन्यु ने उसके मूत्रउत्सर्जन को देखने हेतु जबरन उसे किस शर्मनाक आसान मे ढाल दिया था, माना कि अब उसके पेशाब से बिस्तर के गीले हो जाने के आसार लगभग समाप्त हो गए थे मगर बाथरूम के भीतर बैठकर मूतने और बिस्तर पर लेटे-लेते मूतने का अंतर उस माँ की मानवीय उत्तेजना को एकाएक पैश्विक हिंसा मे परिवर्तित कर जाता है।

"अब कोई ना नुकुर नही मम्मी वर्ना अब जरूर मैं तुम्हारे यह गोरे-गोरे पोंद चबा जाऊंगा या तुम्हारी गांड के इस कुँवारे छेद के अंदर जबरदस्ती अपनी जीभ घुसेड़ दूँगा। बस अब मूत दो, तुम्हारे मूत की धार को सामने की उस दीवार से टकराते हुए देखना है मुझे। मूतो माँ मूतो ...शूऽऽऽऽ" अभिमन्यु के पूर्णतः निषेध वाक् प्रयोग के जवाब मे अकस्मात् वैशाली का तन उसके मस्तिष्क का साथ छोड़ देने को विवश हो गया और एक लंबी सीत्कार के साथ उसकी चूत के आपस मे सटे होंठ भी स्वतः ही खुल जाते है।

"फिसश्श्ऽऽ सश्श्श्ऽऽऽ" एक विशेष मधुर ध्वनि जिससे वैशाली का परिचय तो उसके बचपन से था मगर अभिमन्यु के कानों मे अचानक रस घुलने लगा था। उस नवयुवक के दिल की धड़कने सहसा रुक--सी जाती हैं जब वह वास्तविकता मे अपनी माँ की चूत के चिपके चीरे को चीरकर तीव्रता से बाहर निकले उसके मूत्र के लंबे फव्वारे की आरंभिक चोट को सीधे बिस्तर के सामने की दीवार से टकराते हुए पाता है, अपने मृत होते ह्रदय को जीवंत बनाए रखने के लिए वह नया नवेला मर्द बलपूर्वक अपनी छाती पर ताबड़तोड़ घूंसे जड़ने लगता है।

"मत मन्यु, मेरा ...मेरा हाथ पकड़ो" अपने बेटे को खुद की ही छाती पर मूसल आघात करते देख वैशाली उसकी ओर अपना बायां हाथ बढ़ाते हुए सिसकी और जैसे अभिमन्यु को अपनी माँ के इसी सहारे की तलाश थी, वह तत्काल उसके बाएं पंजे को अपने दोनों हाथों के बीच कस लेता है।

"अपनी माँ की बेशर्मी पर तुम्हें खुद को सजा देने का कोई हक नही मन्यु। बस चुपचाप देखो तुम्हारी माँ कैसे मूतती है, उसके फटे भोसड़े से छलककर उसका सूसू कैसे बाहर आता है" कमरे मे पसरे अत्यंत तनावपूर्ण वातावरण, अपने सहमे बेटे और स्वयं को संयत करने के प्रयास मे हँसते हुए उसने पिछले कथन मे जोड़ा मगर अभिमन्यु की फट पड़ी आँखें तो मानो उसकी माँ की चूत से भलाभल बहते उसके गरमा-गरम मूत्र की मोटी धार को विस्मय से देखते रहने में झपकना भी भूल चुकी थीं।

"मेरी सीटी तुम्हारे पापा ने पंचर कर दी है मन्यु। यह दिन हमारे जीवन मे आएगा अगर ऐसा पता होता तो अनुभा की शादी होने से पहले तुम्हें उसकी कुंवारी सीटी जरूर सुनवाती, हम माँ-बेटी एकसाथ तुम्हारे सामने मूतते और हमारे मुतास कॉम्पिटिशन के मेन जज होते तुम्हारे पापा" जाने क्या सोचकर वैशाली के मुँह से ऐसी विध्वंशक बात बाहर निकल आई और जिसे सुन तत्काल जहाँ अभिमन्यु अपनी हैरत भरी आँखें अपनी माँ की मूतती चूत से हटाकर उसकी मादक आँखों से जोड़ देने पर मजबूर हो जाता है वहीं वैशाली की गांड के छेद पर अविलंब झटके लगने लगते हैं, जो प्रमाण था कि उसके मूत्रउत्सर्जन के अब कुछ अंतिम पल ही शेष बाकी थे।

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ठीक ही तो किया उन्होंने जो तुम्हारी चूत पंचर कर दी, अब यह पंचर कभी जुड़ नही सकता और ना ही इसमें आगे होने वाले पंचरों का उन्हें कभी पता चलेगा। वैसे मुझे यह ठरक तुम्हीं से मिली है माँ, लगता है अपने इस नए मर्द को तुम जल्दी ही मादरचोद भी बना दोगी" इसबार अभिमन्यु मुस्कुराते हुए बोला क्योंकि अपने ही पिछले अश्लील कथन पर उसकी माँ का सुर्ख चेहरा अचानक से पीला पड़ गया था, माँ-बेटे के बीच का ऐसा प्रेम, लगाव, खुलापन ना ही उसने कभी किसी कहानी मे पढ़ा था और ना ही किसी पोर्न वीडियो मे देखा था। वह एकाएक गर्व से भर उठता है, जब उसके बचकाने मस्तिष्क में उनका व्यभिचारी सम्बन्ध उसे कोई नया इतिहास बनाता हुआ--सा नज़र आता है।

"धत्! लगाऊंगी एक अगर फिर कभी मुझे अपनी औरत बोला तो। मैं अपने पति माणिकचंद गुटखे की थी, हूँ और हमेशा रहूंगी" वैशाली की खोई हुई हँसी भी फौरन लौट आई, कुछ असर इसका भी अवश्य था कि अब वह अनचाहे मूत्रदबाव से पूरी तरह मुक्त थी।

"एक क्या दो ...चार ...दस लगा लेना मम्मी मगर यह मत भूल जाना कि घर के भेदी ने ही कभी लंका तक की लंका लगवा दी थी। कभी माणिकचंद जी ने तुम्हारी जिस चूत मे सेंध मारी थी, मैं भी उसमें सेंध लगाने के नजदीक ही हूँ। खैर तुम्हारी दोस्त सुधा को तो मैं पक्का चोदूँगा, अब तुम्हारी चूत नही मिलेगी तो मैं कैसे अपनी गर्मी शांत करूँगा भला" अभिमन्यु अपनी माँ के टांगों पर बनाए अपनी हथेलियों के दबाव को खत्म करते हुए बोला, उसने जानबूचकर अपने कथन मे सुधा को घुसेड़ा था ताकि अपनी माँ के चेहरे पर आए या आने वाले बदलाव पर अपनी परिपक्व नजर रख सके।

"किसी के पास जाने की जरुरत नही तुम्हें, मैं जल्द से जल्द तुम्हारी गर्मी शांत करने का हल भी ढूंढ लूँगी। वादा करो मन्यु, मुझसे बिना पूछे अब ना तो दोबारा तुम उन बाजारू रंडियों के पास जाओगे और ना ही उस कमीनी सुधा के पास वर्ना ...." कहते-कहते एकाएक जबड़े मिसमिसा जाने से वैशाली चुप हो गई, अभिमन्यु को जो बदलाव देखना था जाने-अनजाने उसकी माँ ने उसे दिखा दिया था। जलन की प्रारंभिक तपन से उसकी माँ को यह आभास भी नही हो पाया था कि उसकी टाँगें अबतक ज्यों की त्यों उसकी छाती से चिपकी हुई थीं जबकि अपनी हथेलियों की गिरफ्त से वह कबका उन्हें आजाद कर चुका था। उसने यह भी स्पष्ट देखा कि मनचाहे मूत्रउत्सर्जन के उपरान्त भी उसकी माँ की चूत से चिपचिपे द्रव्य का बहना निरंतर जारी था, जो कि पूर्ण साक्ष्य था कि अभी भी उसकी माँ के भीतर उत्तेजना के कण बचे थे।

"मेरी गर्मी निकालने का कोई हल निकले या ना निकले माँ पर तुम्हारी गर्मी अभी पूरी तरह से नही निकल पाई है, देखो तुम्हारी चूत अभी भी झरने सी बह रही है" कथन उवाच से पूर्व अभिमन्यु बड़ी चतुराई से बिस्तर से नीचे उतरने मे सफल हो गया था और ज्यों ही उसने अपनी विचारमग्न माँ का ध्यान उसकी रिसती चूत के मुहाने पर केंद्रित किया, इससे पहले कि वैशाली अपनी टाँगों को यथावत नीचे कर वास्तव मे अपनी चूत का मुआयना कर पाती अकस्मात् वह अपना सम्पूर्ण चेहरा अपनी माँ के वर्जित अंग से रगड़ना आरंभ कर देता है। कोई घिन नही और ना ही कोई दुर्गंध, अब तो मानो उसे अपनी माँ को अपनी जिह्वा व होंठों से मुखमैथुन का अतुलनीय सुख पहुंचाने भर से सरोकार रह गया था।

"उफ्फ् मन्यु! अगर ऐसा कर तुम्हारा मन अपनी माँ की चूत से खेलना भर है तो मैं विनती करती हूँ, मुझे वहाँ मत छेड़ो ...मैं तुम्हारी छेड़खानियां और बरदाश्त नही कर पाऊँगी बेटा" वैशाली पीड़ा के स्वर मे बुदबुदाई। एकबार पुनः अपने बेटे के चेहरे को अपनी स्पंदनशील चूतमुख पर दबते महसूस कर सहसा उस माँ की जिह्वा लड़खड़ा गई थी, अपने यौवनांग पर बेटे की गर्म साँसों के असंख्य झोंके उसे अतिप्रबलता से उन्माद भरी सीत्कार भरने पर मजबूर कर गए थे, उसके निचले नंगे धड़ में अचानक अकल्पनीय लचक आने लगी थी।

"आँऽऽहाँ!" अपनी माँ की विनती के जवाब मे अभिमन्यु गुनगुनाया और अतिशीघ्र उसके लचकते निचले धड़ को स्थिर करने के उद्देश्य से वह उसकी मांसल गांड के दोनों पटों का कंकपकपाता मांस अपनी विशाल हथेलियों मे बलपूर्वक जकड़ लेता है। माना मुखमैथुन संबंधी क्रियाओं मे उस नवयुवक की परिपक्वता ना के बराबर थी मगर दृढ़ता, एकाग्रता और विश्वास उसमे कूट-कूट कर भरा हुआ था और यही कारण रहा जो वह अपने मन के घोड़ों का रुख तीव्रता से इंटरनेट पर अबतक देखे पोर्न की ओर मोड़ देता है। उसने कहीं पढ़ा था कि जो लोग रतिक्रिया की परिभाषा से अंजान रहते हैं, उत्सुकतावश उनकी पहली चुदाई ही उनके जीवन की यादगार चुदाई बन जाती है।

अभिमन्यु जानता है कि उसकी माँ कामुत्तेजना के शिखर के बेहद करीब खड़ी है, उसकी सकुचाती चूत से अनियंत्रित रस का रिसाव अभी से इतना तीव्र हो चुका है मानो उसकी लपलपाती जीभ का पहला स्पर्श भी वह नही झेल सकेगी। उसके धुकनी समान धड़कते दिल की धड़कनें तेजी से बहुत तेज होती जा रही हैं जिन्हें वह इतनी दूर से भी स्पष्ट अपने कानों मे गूंजता महसूस कर पा रहा है और उसके बदन की तपन का तो जैसे कोई पारावार ही शेष नही है।

"मैंने कहा ना बंद करो ये छेड़छाड़ मन्यु। जानकार भी अनजान बनना अच्छी बात नही बेटा, मुझपर इस वक्त क्या बीत रही है तुम सोच भी नही सकते" अपने बेटे के चेहरे को अपनी चूत के मुहाने पर सोता--सा समझ वैशाली पुनः बड़बड़ाई। अपनी माँ की कष्टकारी अनय को दोबारा सुन अकस्मात् अभिमन्यु की खोई चेतना वापस लौट आती है और बिना कुछ सोचे-विचारे वह अपनी माँ की चूत के बेहद सूजे होंठों को पटापट चूमना आरंभ कर देता है, तात्पश्चयात अत्यंत तुरंत उसके होंठ खुल गए और उसकी लंबी जिह्वा उसकी माँ की चूत से बाहर बहते उसके गाढ़े रस को अविलंब चाटने मे जुट गई। उसने प्रत्यक्ष जाना कि उसकी माँ के बदन की सुगंध समान उसका कामरस भी उतना ही सुगंधित है और जिसका अहसास जल्दबाजी मे वह पहले नही कर पाया था बल्कि अकबकाई से उसके मस्तिष्क मे एक तरह की घृणा--सी पैदा हो गई थी मगर अब उसकी वही घृणा मंत्रमुग्ध कर देने वाले आनंद मे परिवर्तित हो चली थी।

"चाटो मन्यु उन्घ्! अब ...अब अधर मे मत लटकाना अपनी माँ को। बचपन मे मैंने तुम्हें अपना दूध पिलाया था आज मेरी दिली इच्छा है कि मेरा जवान बेटा मेरी चूत से बहती मेरी रज पिये। तुम ...तुम भी तो यही चाहते हो ना मन्यु, तो चूस लो सारा रस अपनी माँ का, आहऽऽ! सुखा दो आज पूरी तरह से उसकी चूत को" पराये मर्द का अनैतिक स्पर्श, आंतरिक पीड़ा, निराशा, अखंड उत्तेजना आदि मिले-जुले संगम से ओतप्रोत वैशाली जोरों से चिल्लाई। अपनी माँ की पापी इच्छा के सम्मान मे अभिमन्यु तत्काल अपनी जीभ से उसकी चूत के चिपके चीरे को चीरते हुए उसे उसके अत्यधिक संकुचित मार्ग के भीतर ठेलने का प्रयत्न करता है मगर ज्यादा भीतर तक अपनी जीभ घुसेड़ नही पाता और तभी उसे ख्याल आया कि नीली फिल्मों मे उंगलियों का भी हरसंभव प्रयोग किया जाता है, इसी विचार से वह अपनी माँ की गांड के दाएं पट को छोड़ फौरन उसकी जांघ अपने दाहिने कंधे पर टिकाने के उपरान्त अपनी दाहिनी मध्य दो उंगलियां एकसाथ कठोरतापूर्वक उसकी चूत के भीतर गहरायी तक ठूंस देता है।

"आईऽऽ! तुम्हारे पापा ने मेरी चूत का ऐसा तिरस्कार किया है मन्यु कि पिछले बीस दिनों से इसका सूनापन मैं चाहकर भी भर नही पाई, मेरी ...मेरी उंगलियां छोटी हैं, अंदर तक नही जा पातीं। उफ्फ्! तुम ...अब तुम ही इसका सूनापन मिटा सकते हो मेरे लाल, उफ्फ्ऽऽ! और ...और अंदर, जबरदस्ती पूरा हाथ घुसेड़ दो अपनी माँ की चूत मे मन्युऽऽऽ" बीते एकांत समय को सोच वैशाली हाहाकार करने पर विवश हो जाती है, जिसके साथ ही अभिमन्यु अपनी उँगलियों को अपनी माँ की संकीर्ण चूत के भीतर विपरीत दिशा मे चौड़ा देता है। अकस्मात् उसे चूत की अंदरूनी बेहद लाल त्वचा स्पष्टरूप से नजर आने लगी, उसकी माँ की साँसों के लगातार उतार-चढ़ाव से उसकी चूत का अत्यंत नाजुक मांस जीवंत फड़फड़ाता महसूस होता है, जिसपर तीव्रता से होते कंपन ने उस नवयुवक के मुलायम होंठ स्वतः ही कठोर कर दिए और वह अपने होंठों की कठोरता से चूत के भीतर छुपी उसकी माँ की गाढ़ी स्वादिष्ट रज सुड़कते हुए उसे अपने मुँह मे एकत्रित करने लगता है। बिस्तर पर तड़पती वैशाली अपने बेटे के इस ज्वलंत कार्य पर अचानक रुआंसी हो पड़ी थी, उस माँ का रोम-रोम चीख-पुकार मचाने लगा था और मदहोशीवश वह अपने दांतों के मध्य अपना निचला होंठ दबाते हुए अपने दोनों मम्मों को बलपूर्वक गूंथना शुरू कर देती है।

"और ...और जोर से मन्यु, ओहऽऽ! चूसकर सुखा डालो मेरी चूत को। आईईईऽऽऽ पागल ...मैं पागल हो जाऊंगीऽऽ" वैशाली की निरंतर कामुक सिसकारियों से अभिमन्यु को अपने अपरिपक्व कार्य की इतनी मनमोहक प्रतिक्रिया मिल रही थी जिससे अभिभूत वह अपनी जीभ पहले से कहीं अधिक उत्साह से अपनी माँ की चूत के भीतर लपलपाने लगा, जल्द ही उसकी लंबी जीभ चूत को पूरी गहराई तक चाटने मे सफल होने लगी थी। उसके मुँह से संतुष्टिपूर्वक रज सुड़कने की मधुर आवाजें भी कमरे के अशांत वातावरण मे गूंजने लगी थीं। वह देख नही सकता था पर जानता था कि उसकी माँ के गोल-मटोल मम्मे उसके निप्पलों सहित स्वयं उसी के द्वारा गूंथे, मसले, ऐंठे व खींचे जाने की वजह से बेहद सुर्खियत पा चुके थे। उसकी टांगों मे होते अविश्वसनीय कंपन से उसकी अधेड़ तिरस्कृत माँ की चूत का लावा अपने आप पिघलकर उसके मुँह के भीतर किसी फुहार-सा बरसने लगा था, उसकी चूत के अंदर घुसी उसके जवान बेटे की उंगलियां भी उसके चिपचिपे रस से पूरी तरह तर-बतर हो चुकी थीं।

"उफ्फ् मऽन्युऽऽ! चूत चटवाने का सुख ..." कहते हुए एकाएक वैशाली की आँखें नटियाने लगती हैं, वह अपना कथन तक पूरा नही कर पाती क्योंकि ठीक उसी क्षण उसका बेटा उसकी चूत की दोनों फांकें बारी-बारी अपने होंठों के मध्य कठोरता से भींचते हुए अपनी दोनों उंगलियों से उसकी चूत की संकीर्ण परतें अत्यधिक तीव्रता से चोदना शुरू कर देता है, साथ ही साथ वह अपनी खुरदुरी जीभ को भी उसकी चूत के अत्यंत गीले छिद्र मे पूरी जड़ तक अविलंब ठेलने का बचकाना प्रयास कर रहा था ताकि छिद्र के भीतर उमड़ते सुगंधित रस को वह सीधे अपने गले के नीचे उतार सके।

"आहऽऽ मन्यु! माफ ...माफ करना, तुम अपनी माँ को झड़वाने के लिए कितना ...ओह! कितना जतन कर रहे हो और मैं ...ओहऽऽ! मैंने तुम्हारे झड़ने के बारे मे एक भी बार सोचा ...सोचा तक नहीऽऽऽ" वैशाली पूर्व से ही बेहद उत्तेजित थी और यह सोचकर हैरान भी की उसके बेटे ने मात्र अपनी जीभ, होंठ और उंगलियों के प्रयोग से ही उसे उसके मनभावन स्खलन के कितने नजदीक पहुँचा दिया है मगर अपने बेटे के स्खलन संबंधी विषय मे उसने वाकई जरा भी विचार नही किया था। अभिमन्यु खुद उसे चोदना नही चाहता था और उसका लंड चूसने से वह काफी देर पहले ही इनकार कर चुकी थी, इसी कारणवश वह माँ अबतक अपने बेटे का भरपूर लाभ उठाती रहने के लिए बारम्बार उससे माफी की गुजारिश करने लगी थी। सहसा अभिमन्यु का ध्यान भी अपने लंड की असीमित कठोरता पर गया मगर अतिशीघ्र वह बड़ी ललचायी नजरों से अपनी माँ की चूत की ऊपरी सतह पर चमचमाते उसके मोटे भांगुर को घूरने लगता है।

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हमेशा ऐसे मौकों पर ही तुम्हारी गांड का कीड़ा ज्यादा कुलबुलाता है माँ। अरे इतने प्यार से तुम्हारा फटा भोसड़ा चाट रहा हूँ, उसे पूरे मन से चूस रहा हूँ और अपनी उंगलियों से चोद भी रहा हूँ पर तुम हो कि ...अब बकवास की तो याद रखना अपने लंड की सारी गर्मी सीधे तुम्हारी चूत चोदकर ही बाहर निकालूँगा" यह पहली बार था जो मुखमैथुन की शुरुआत करने के उपरान्त अभिमन्यु के मुँह से कोई स्वर फूटे थे, अपने झूठे क्रोध से अपनी माँ को निरुत्तर करने के पश्चयात वह अपनी जीभ को फौरन उसकी चूत की ऊपरी सतह पर घुमाने लगा, उसने पोर्न देखते हुए सैकड़ों बार नायिकाओं को अपने भग्नासे से खेलते देखा था, अपने पार्टनरों से भी चीख-चीखकर वह फिल्मी रंडियां उनके भग्नासे को चाटने व चूसने की गुहार लगाती नजर आती थीं। तत्काल वह किसी पारंगत मर्द की भांति हौले-हौले अपनी माँ के सूजे व नाजुक भांगुर को चाटने लगा, अपनी जीभ की नोंक से उसे सहलाने लगता है, खरोचने लगता है, बारम्बार उसे छीलने लगता है और जिसके प्रभाव से बिस्तर पर अपनी पीठ के बल लेती उसकी नंगी माँ अत्यंत तुरंत अपनी गुदाज गांड हवा मे उछालते हुए अपनी स्पंदनशील चूत को तीव्रता से उसके मुँह पर रगड़ने लगती है, अविलंब अपनी सकुचाती चूत से उसका मुँह चोदना आरंभ कर देती है।

"य ...यहीं मन्यु यहीं उफ्फ्ऽऽ! यहाँ ...यहाँ मुझे बहुत दर्द उठता है आईईऽऽ! जोर से ...जोर से चूस मेरे जवान मर्द, दांतों से चबा जा अपनी माँ के दाने को ...हाय! उखाड़ के थूक दे इसे फर्श पर"
अभिमन्यु की नुकीली जीभ का तरलता से भरपूर स्पर्श, उसकी लपलपाहट, प्राणघातक थिरकन अपने अतिसंवेदनशील नर्म भांगुर पर पाकर वैशाली की चीख अचनाक उसके बैडरूम की सीमित सीमा को भी लांघ जाती है और जिसके मूक जवाब में उसका बेटे ने उसके मोटे भांगुर को पलभर को चूम अत्यधिक प्रचंडता से उसकी चुसाई करना शुरू कर दी। बेटे की लार से भीगने के पश्चयात उस माँ का भांगुर पूर्व से कहीं ज्यादा चमकने लगा था, कहीं ज्यादा सूज गया था और जिसे चूसने मे अभिमन्यु ने मानो अपनी सारी ताकत झोंक दी थी, साथ ही साथ उसकी दोनों उंगलियां भी पूरे बल से उसकी माँ की कामरस से लबालब भर चुकी चूत की संकीर्ण परतों के धड़ाधड़ अंदर-बाहर होती जा रही थीं।

"आहऽऽ! बहुत ...प्यार करती है तुम्हारी माँ तुमसे। चूसो मेरे दाने को मेरे लाल, उफ्फ्! पियो जितनी रज पी सको अपनी माँ की। मेरी इच्छा नही ...मेरी आज्ञा है मऽन्युऽऽ" रुआंसे स्वर मे ऐसा कहते हुए वैशाली का संपूर्ण बदन थरथरा उठा, सिर से पांव तक वह कंपकपाने लगी। उसकी चूत की आतंरिक गहराई मे अकस्मात् जैसे भूचाल-सा आ गया था, अंदरूनी ऐंठन एकाएक उसके नियंत्रण से बाहर हो चली थी और जिसके नतीजन उसकी चूत से रज बहने की मात्रा में भी सहसा बढ़ोतरी हो गयी। पूर्व मे अपनी माँ से किए वादे को निभाते हुए अभिमन्यु उसकी स्वादिष्ट रज का कतरा-कतरा अपने गले से नीचे उतरते हुए बेहद आनंदित होने लगा था, अपने बायीं हथेली से उसके बालों को नोंचती एवं दाएं से अपने कड़क निप्पलों को उमेठती उसकी माँ जोरों से रोते हुए अपनी दोनों चिकनी जांघें उसकी गर्दन के इर्द-इर्द लपेट लेती है।

"आईईईऽऽ अभि ...मन्यु, मैं आईईईऽऽऽ" वैशाली की गांड के छेद मे संसनाहट की तीक्ष्ण लहर दौड़ते ही उसका छेद सिकुड़ कर रह गया और आखिरकार भर्राए गले से बारम्बार अपने जवान बेटे का नाम पुकारती उसकी अत्यंत सुंदर अधेड़ माँ उसी क्षण अनियंत्रित ढंग से स्खलित होने लगती है। उसके गदराए बदन मे झटके पर झटके लग रहे थे, अजीब--सी सिरहन से खलबली मच गयी थी। जबड़े स्वतः ही भिंच गए थे, कमर धनुषाकार हो बिस्तर से ऊपर उठ गयी थी। मांसल जाँघों ने बेटे की नाजुक गर्दन को बेरहमी से जकड़ लिया था, जिसके पार निकली उसकी पिडलियों के साथ उसके पैरों की उंगलियां तक अकड़ गयी थीं। मनभावन स्खलनस्वरूप उसकी चूत की फूली फांकों से लगातार बाहर आती अतिगाढ़े कामरस की लंबी-लंबी फुहारें अभिमन्यु सीधे अपने कठोर होंठों की सहायता से सुड़क-सुड़ककर निरंतर अपने गले से नीचे उतारता रहा, तबतक पीता रहा, चूसता रहा, चाटता रहा जबतक उसकी माँ की चूत से बहती रज के बहाव का पूर्णरूप से अंत नही हो गया। अंततः निढाल होकर बिस्तर पर पसर चुकी, जोरदार हंपायी लेती अपनी माँ की सुर्ख नम आँखों मे प्रेमपूर्वक झांकते हुए वह उसकी कोमल जाँघों को अपनी हथेलियों सहलाने लगता है, उसकी माँ की आँखों मे उसे अखंड संतुष्टि की झलक दिख रही थी और जिसे देख तत्काल वह नवयुवक गर्व से मुस्कुरा उठता है।

"ऐसे ...ऐसे क्या देख रहे हो? अब छोड़ो मेरी टांगों को" जोरदार स्खलन की प्राप्ति के उपरान्त वैशाली अपने बेटे की आँखें, उसके मुस्कुराते चेहरे का तेज बरदाश्त नही कर पाती, वह बेहद धीमे स्वर मे फुसफुसाती है। उसकी उत्तेजना का कण-कण अभिमन्यु इतने प्रेमपूर्वक ग्रहण कर गया था जैसे उसकी रज रज ना होकर किसी दिव्य मूरत का चरणामृत था।

"अपनी माँ की सुंदरता को आँखों से पी रहा हूँ, उसकी शर्म का आनंद ले रहा हूँ, उसकी खुशी मे झूम रहा हूँ, उसके प्यार मे खो गया हूँ। उफ्फ् मम्मी! तुम इतनी प्यारी कैसे हो? मेरी खुशकिस्मती पर रस्क है मुझे" उत्साहित स्वर में ऐसा कहकर अभिमन्यु उसकी अत्यन्त कोमल मांसल जाँघों को बारी-बारी चूमने लगता है, उसकी आँखों का जुड़ाव उसकी माँ की कजरारी आँखों से अब भी अपलक जुड़ा हुआ था।

"तो क्या अपनी इस प्यारी माँ के सीने से नही लगोगे? तुम्हें अपने आँचल मे समाने के लिए मैं मरी जा रही हूँ मन्यु, फर्क इतना है कि इस वक्त मैं नंगी हूँ, तुम्हें अपने आँचल मे समाऊँ भी तो कैसे भला" विह्वल वैशाली सिसकते हुए बोली।

"चलो खिसको ऊपर, आज तुम्हारे सीने से लगकर सोऊंगा माँ और रही बात तुम्हारे आँचल की तो तुम्हारा यह नंगा बदन भी मेरे लिए किसी आँचल से कम नही" गंभीर स्वर में ऐसा कहकर अभिमन्यु ने अपनी गरदन से लिपटी अपनी माँ की जाँघों को बिस्तर पर रख दिया, वैशाली पीछे सरकती हुयी पुनः बिस्तर की पुश्त तक पहुँच चुकी थी और जल्द ही वह भी अपनी माँ के समानांतर लेट जाता है।

"तुम मुझसे नाराज तो नही हो ना? मैंने जाने-अनजाने आज तुम्हें बहुत बुरा-भला कहा, तुम्हारे पति की बेज्जती की और तो और अपनी बड़ी बहन तक को नही छोड़ा मगर सच तो यह है माँ कि चाहे तुम्हें कपड़ों से लदा देखूँ या नंगी, तुम मुझे देवी--सी नजर आती हो, तुम्हारी पूजा करने को दिल कहता है" कहते हुए अभिमन्यु ने अपनी माँ की हृष्ट-पुष्ट छाती के बीच अपना चेहरा छुपा लिया, उसकी माँ के मानसिक व शारीरिक भावों को परखने से मानो उसे अब कोई सरोकार नही रहा था।

"मैं नाराज नही हूँ मन्यु, हैरान हूँ। कहाँ से सीखी तुमने ऐसी बड़ी-बड़ी बातें? तुम्हारे शब्द, तुम्हारी हरकतों को देखकर कौन मानेगा कि तुम एक इन्जनिरिंग स्टूडेंट हो। तुम्हारी कुछ-कुछ बातें तो मेरे भी सिर के ऊपर से गुजर गई थीं पर एक नई बात जरूर समझ आई और वह यह कि सेक्स जितना खुला हो, जितना गंदा हो उतना ही मजा देता है। मुझ जैसी लाखों औरतें चारदीवारी के अंदर कैद होकर चुदने को ही असली चुदाई समझती हैं मगर बंदिशों को तोड़कर आजादी से चुदवाने का सुख शब्दों मे भी बयान नही किया सकता" वैशाली बिना किसी अतिरिक्त झिझक के कहती है, उसकी बाएं उंगलियां कब उससे चिपककर लेटे बेटे के बालों मे चहुंओर विचरण करने लगी थीं वह स्वयं अंजान थी। पूर्व मे अभिमन्यु की गरम साँसों के झोंके जो उसे घड़ी-घड़ी उत्तेजित पर उत्तेजित कर रहे थे, तात्कालिक क्षणों मे उस माँ को सुकून से भर दिया था।

"तो तुम्हारी इसी आजादी के नाम, तुम्हारे बेटे का कलाम ...बहुत हुआ सम्मान तुम्हारी माँ का चोदें, सुबह से हो गयी शाम तुम्हारी ..." एकाएक अभिमन्यु की जयघोष से पूरा बैडरूम गूँज उठा, वह चिल्लाता ही जाता यदि उसके बचकाने पर खिलखिला पड़ी वैशाली जबरन उसके मुँह को अपनी दोनों हथेलियों से बंद नही करती।

"पागल कहीं के ...अब सो जाओ, बाद मे मुझे खाना भी बनाना है" जोरों से हँसती बैशाली अपने बेटे को स्वयं अपनी छाती से चिपकाते हुए बोली और अतिशीघ्र उसकी नग्न पीठ पर थपकियाँ देते हुए उसे सुलाने के अपने ममतामयी कार्य मे जुट जाती है। थका-हारा अभिमन्यु पलों मे नींद के आगोश मे पहुँच गया था और उसके सोते मासूम चेहरे के दाहिने कोण को टकटकी लगाए निहारती उसकी माँ भी गहन निद्रा की गहराइयों में खो जाती है।

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